सन्त दीपक के समान होते है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाशित करते हैं, और जो भक्तगण उनके प्रकाश से प्रकाशित हो जाते हैं वे सीधे प्रभु के प्रकाश से प्रकाशमान हो जाते है

सन्त दीपक के समान होते है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाशित करते हैं, और जो भक्तगण उनके प्रकाश से प्रकाशित हो जाते हैं वे सीधे प्रभु के प्रकाश से प्रकाशमान हो जाते है
कोरोना काल में हम इस प्रकाश से दूर होते जा रहे हैं परंतु पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा अपने अद्भुत ज्ञान के प्रकाश द्वारा प्रतिदिन उनके ऑनलाइन सत्संग के आयोजन से सभी को भरपूर लाभ प्राप्त हो रहा है यह ऑनलाइन सत्संग प्रतिदिन सीता रसोई संचालन वाट्सएप ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे संचालित किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं को संत श्री के ज्ञान द्वारा समाधान प्राप्त करते हैं
आप भी यदि इस सत्संग में जुड़ना चाहते है तो 9425510729 पर मैसेज करें
आज की सत्संग की परिचर्चा में बाबा जी के मधुर भजनों से, सभी को अति आनंद तो प्राप्त हुआ, साथ ही बाबा जी ने अपने भजन द्वारा सभी को प्रभु की शरण में जाने की प्रेरणा दी, उन्होंने अपने भजन में संदेश प्रेषित किया कि मानव तुम जिस शरीर के लिए इतना मोह करते हों, जिसे इतना सजाते सवारते हो, जिसके लिए इस संपूर्ण संसार की सारी वासनाओं को निछावर कर देते हो, यह शरीर भी तिनके के समान ही है यदि प्रभु ना मिले
तो प्रभु प्राप्ति हेतु यह माया रूपी शरीर को भी तिनके के समान तोड़ कर प्रभु की शरण में निछावर कर देना चाहिए
प्रभु की शरण में सब कुछ समर्पित कर देना चाहिए अपने को उन्हें समर्पित कर दो, फिर वे चाहे जैसे रखें
तन्नू साहू शिवाली साहू दाता राम साहू जी रामफल जी के मानस चौपाइयों के साथ , केशव साहू, पुरुषोत्तम अग्रवाल जी, डुबोबत्ती यादव जी के मधुर भजन, बाबाजी के अति मधुर भजनों से समाहित सत्संग की मधुर बेला को आगे बढ़ाते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की, महाराज जी चरण स्पर्श और साष्टांग प्रणाम के महत्व, लाभ तथा इसकी सही पद्धति को कृपया बताये, भारतीय हिंदू सनातन परंपरा पर प्रकाश डालते हुए, बाबा जी ने बताया कि प्रणाम करने के कई तरीके होते हैं परंतु यदि हमें प्रणाम करने का सही परंपरा या व्यवस्था का ज्ञान नहीं हो तो हम आशीर्वाद से वंचित हो जाते हैं, इनमें से एक प्रणाम है आप हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं जो कि आज पूरे विश्व में भारत को गौरवान्वित कर रही है कोरोना वायरस के समय यह भारतीय अभिवादन विश्व के लिए सर्वोत्तम तरीका सिद्ध हो रहा है
2 गज दूरी के साथ अभिवादन हाथ जोड़कर दूर से ही प्रणाम करना होता है,
मंदिर में भगवान, साधु संत सन्यासियों, को कभी भी छूकर प्रणाम नहीं करना चाहिए, जब तक संतों की अनुमति ना हो उन्हें कभी भी आप छुए ना दूर से ही साष्टांग दंडवत प्रणाम करें
और महिलाओं को दंडवत साष्टांग प्रणाम कभी भी नहीं करना चाहिए, जब भी आपको साधु-संत सन्यासी दिखे तो आप उन्हें धरती पर मत्था टेककर वही से ही प्रणाम करें और जब उनके चरण दिखे तो उनकी अभिवादन की अनुमति का इंतजार करें वह अनुमति दें तो आपको गले से तक लगा सकते हैं तो आप उनकी अनुमति को उनकी आंखों से ही देख सकते हो मुस्कुरा कर आपको अनुमति अवश्य प्रदान करते हैं और नहीं तो आप अपने भावों के साथ उन्हें धरती से ही प्रणाम कर सकते हैं और उनका आशीर्वाद ग्रहण कर सकते हैं कोई भी साधु संत जब अपनी तपस्या या साधना में लीन होता है तो तब आप उन्हें छूते हैं तो अपनी नकारात्मक उर्जा भी उन्हें प्रदान कर देते हैं ऐसे में उनकी साधना भी भंग होती है और वे भी दूषित हो जाते हैं तो वह आपको आशीर्वाद कैसे प्रदान करेंगे इसीलिए उन्हें उनकी अनुमति के बिना कभी ना छुए, आपके प्रणाम में यदि भाव हैं तो आपके प्रभु आपके प्रीयतम आपको स्वयं ही गले से लगा लेंगे
कभी भी किसी भी मंदिर में जब भगवान की आरती हो या गुरु की आरती हों तो कभी भी मूर्ति के समक्ष खड़े नहीं होना चाहिए कभी भी उनके दाहिने हाथ की ओर खड़े होकर आरती करना चाहिए या प्रणाम करना चाहिए, जब व्यवस्था ना हो तो बाई ओर भी आप खड़े हो सकते हैं या प्रणाम कर सकते हैं लेकिन उनके समक्ष खड़े होकर कभी भी उन्हें प्रणाम नहीं करना चाहिए, विवाहित बहने माताएं हैं, उनके लिए तो पति ही परमेश्वर है उन्हें यदा-कदा किसी के भी पैर छूने की आवश्यकता नहीं होती जब आपको कोई बहुत बड़ा गुरु रुप में दिखे तभी आप उनके चरण स्पर्श करें, और कन्याएं तो स्वयं ही देवी रूप है उनको तो हम ही प्रणाम करते हैं,
इस प्रकार हमारे हिंदू सनातन परंपरा में प्रणाम का बहुत अधिक महत्व है, इसमें प्रमुख दंडवत प्रणाम और साष्टांग प्रणाम है जो केवल और केवल पुरुषों के लिए है इसे महिलाएं नहीं करती महिलाओं को केवल प्रणाम अभिवादन ही करना चाहिए, आज भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव दुखद है हेलो हाय को छोड़ हमें प्रणाम की व्यवस्था को संचालित करना चाहिए जय सियाराम, जय कृष्ण, साहिब बंदगी, जय हिंद, वंदे मातरम, जय माता दी कहिए नमस्ते कहिए लेकिन हाथ हिलाकर हाय करके आप अंग्रेजों का झूठा हीं चाट रहे हैं शर्म आती है आज यह देखकर छोटे-छोटे बच्चों में आपको ही संस्कार डालना है इसके लिए आप में प्रणाम की परंपरा आनी आवश्यक है, हमें सदैव ही अपने हिंदू सनातन परंपरा पर गर्व होना चाहिए इसके लिए हमें सर्वप्रथम हिंदू सनातन परंपरा को अपनाना आवश्यक है
इस प्रकार आज का अति ज्ञानवर्धक सत्संग परिपूर्ण हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम