महाराष्ट्र: सरकारी समिति का फैसला जेलों से रिहा किए जायें 50% कैदी । Maharashtra Government committee decides to release 50 per cent of prisoners from jails | nation – News in Hindi
इन जेलों में 35 हजार से ज्यादा कैदी बंद हैं (सांकेतिक फोटो)
महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) की इस समिति (Committee) ने हालांकि कैदियों की रिहाई के लिये जेल अधिकारियों (Jail Officers) के समक्ष कोई समय-सीमा नहीं रखी है.
समिति ने हालांकि कैदियों (Prisoners) की रिहाई के लिये जेल अधिकारियों (Jail Officers) के समक्ष कोई समय-सीमा नहीं रखी है.
गंभीर अपराधों के तहत दोषी पाए गए कैदियों को नहीं किया जाएगा रिहा
समिति ने सोमवार को फैसला लेते हुए यह भी कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गंभीर आरोपों में दोषी ठहराये गए और मकोका, गैर कानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम, धनशोधन (निरोधक) अधिनियम जैसे सख्त कानूनी प्रावधानों के तहत दोषी ठहराये गए कैदियों को अस्थायी जमानत या पैरोल पर रिहा नहीं किया जाएगा.उच्चतम न्यायालय (High Court) द्वारा मार्च में, कोरोना वायरस के मद्देनजर देश भर की जेलों में भीड़ कम किये जाने की बात कहे जाने के बाद इस समिति का गठन किया गया था. समिति में बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए ए सैयद, राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजय चहांडे और महाराष्ट्र के महानिदेशक कारागार एस एन पांडेय शामिल थे.
ऑर्थर रोड जेल में 100 से ज्यादा कैदियों-कर्मचारियों के संक्रमित पाए जाने के बाद फैसला
समिति ने प्रदेश भर की जेलों से 50 प्रतिशत कैदियों को अस्थायी जमानत या पैरोल पर छोड़ने का फैसला सोमवार को किया. समिति ने कहा, “इससे जेलों में भीड़ कम हो जाएगी और जेल के कुल 35,239 कैदियों में से करीब 50 प्रतिशत को छोड़े जाने की उम्मीद है.”
मध्य मुंबई की ऑर्थर रोड जेल (Arthur Road jail) में 100 से ज्यादा कैदियों और कर्मचारियों के कोविड-19 संक्रमित पाए जाने के बाद समिति का यह फैसला आया है.
रिहाई से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन करें जेल अधिकारी
समिति ने कहा कि जेल अधिकारी (Jail Officers) कैदियों की रिहाई से पहले तय कानूनी प्रक्रिया का पालन करें. समिति ने कहा कि जो कैदी उन अपराधों में दोषी ठहराये गए हैं या मुकदमे का सामना कर रहे हैं जिनके तहत सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान है, वही कैदी अस्थायी जमानत या पैरोल पर रिहा किये जाने के लिये योग्य होंगे.
समिति ने अधिवक्ता एस बी तालेकर के उस प्रतिवेदन को भी खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि विशेष कानूनों के तहत दोषी या आरोपी कैदियों को रिहा न करना भेदभावपूर्ण और मनमाना है.
समिति ने कहा कि जो कैदी अस्थायी जमानत (Temporary bail) या पैरोल के हकदार नहीं हैं उन्हें नियमित जमानत के लिये संबंधित अदालत में अर्जी देनी होगी.
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First published: May 12, 2020, 4:40 PM IST