क्या सचमुच राजद और कांग्रेस की राहें अलग हो रही हैं Are the paths of RJD and Congress really separating?

21 साल पहले बिहार में सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के मकसद से बना राजद और कांग्रेस का गठजोड़ इन दिनों सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. कांग्रेस की बिहार इकाई बार-बार कह रही है कि अब वे किसी चुनाव में राजद के साथ गठजोड़ नहीं बनाएंगे. यह गठबंधन हमेशा के लिये खत्म हो गया. हालांकि लालू यादव यह कह रहे हैं कि उनकी बात कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से हो चुकी है. राज्य के कांग्रेस नेताओं की बातों का कोई अर्थ नहीं है. मगर, कांग्रेस नेताओं की बार-बार की जाने वाली टिप्पणी से ऐसा लगने लगा है कि शायद अब कांग्रेस अंतिम फैसला ले चुकी है.
उपचुनाव में टिकट न देने और लालू की टिप्पणियों से बिगड़े संबंध
लालू यादव जो राजद के संस्थापक हैं, ने भले ही अपनी राजनीति की शुरुआत गैर कांग्रेसवाद से की थी, मगर अपने राजनीतिक करिअर में वे ज्यादातर कांग्रेस के करीबी रहे. 2000 ईस्वी में ही दोनों के बीच गठजोड़ बना, ताकि भाजपा और जदयू को सरकार बनाने से रोका जा सकते. 2005 तक बिहार में यह गठजोड़ सत्ता में रहा, उसके बाद 2004 से 2014 तक इस गठजोड़ का असर दिल्ली की सत्ता में दिखा जब लालू जी और उनकी पार्टी के कई नेता मंत्री बने और अच्छा काम किया. इस बीच बिहार में भी कांग्रेस लगातार राजद के साथ रही.
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इसका लाभ कांग्रेस को मिला, उसकी बिहार की राजनीति में थोड़ी मजबूत वापसी हुई और कुछ दिनों उसे सत्ता सुख भोगने का अवसर भी मिला. मगर 2019 के विधानसभा चुनाव के वक़्त से दोनों के बीच संबंध खराब होने शुरू हुए. उस चुनाव में हार का एक बड़ा जिम्मेदार कांग्रेस को माना गया. और इधर जब बिहार विधानसभा उपचुनाव हुए तो यह अन्तर्विरोध सतह पर आ गया. दावे के बावजूद राजद ने कुशेश्वरस्थान की सीट कांग्रेस को नहीं दी. फिर दोनों सीटों पर दोनों दलों ने उम्मीदवार खड़े कर दिये और कांग्रेस ने अपनी तरफ से गठबंधन के खत्म होने की घोषणा कर दी.
इसकी एक बड़ी वजह यह बताई गई कि लालू जी ने लंबे समय के बाद जब बिहार की राजनीति में वापसी की तो उन्होंने पहला हमला कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास पर ही बोला. इसके बाद कांग्रेस ने बहुत नाराजगी व्यक्त की. एक तरह से उन्होंने कह दिया कि अब यह गठबंधन हमेशा के लिये खत्म हो गया. मगर क्या इस दोनों दलों के बीच में आई दूरियों की असली वजह यही तात्कालिक घटनाएं हैं?
क्या कन्हैया फैक्टर बनी है वजह?
शनिवार 30 अक्टूबर को इस मसले से बिल्कुल दूर रहने वाली भाजपा ने इस मामले में एन्ट्री लेते हुए कहा है कि इस झगड़े की असली वजह तेजस्वी यादव का कन्हैया को लेकर कॉमप्लेक्स है. यह ठीक है कि भाजपा ने यह बयान इसलिये दिया है, क्योंकि वह इस विवाद की खाई को और चौड़ी करना चाह रही है. मगर उनकी यह बात गलत हो ऐसा नहीं लगता. कन्हैया के युवा नेता के रूप में आगे बढ़ने को बिहार में तेजस्वी और उसके समर्थक पसंद नहीं करते. वे हमेशा कन्हैया की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहे हैं. उसकी जाति के नाम पर और दूसरे कई तरीकों से.
2019 के लोकसभा चुनाव में इसी तरह राजद ने कन्हैया के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा कर दिया था, जो उनकी हार की बड़ी वजह बना. उस पूरे चुनाव में राजद ने अपनी ज्यादातर ताकत खुद जीतने के बदले कन्हैया को हराने में लगा दी. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तो कन्हैया ने खुद को अंडरप्ले करके इस विवाद को रोक लिया. मगर अब जब वे कांग्रेस में मजबूती से आए हैं, यह बात राजद को अखरने लगी है. तेजस्वी जिनका लक्ष्य बिहार का मुख्यमंत्री बनना है, वे कन्हैया को एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते हैं.
क्या कांग्रेस क्षेत्रीय दलों से अब मुक्ति चाहती है?
मगर क्या इतनी सी वजहें हैं जो राजद को इस गठबंधन को तोड़ने के लिये मजबूर कर रहा है. या फिर कांग्रेस खुद राजद से या उन
तमाम क्षेत्रीय दलों से मुक्ति चाह रही है, जिनका अतीत भ्रष्टाचार या अराजकता की वजह से दागदार रहा है? क्या कांग्रेस अपने आप को अपने दम पर खड़ा करने के लिये रिस्क लेना चाह रही है? वह कन्हैया जैसे नये युवाओं के साथ नया विकल्प खड़ा करना चाह रही है? क्या वह बदलाव को थोड़ा वक़्त देना चाह रही है? यह सब आने वाले वक़्त में तय होगा.
और सवाल सिर्फ इतना नहीं है. सवाल यह भी है कि क्या राजद से दूर जाकर कांग्रेस जदयू के नजदीक जा रही है? जो जदयू इन दिनों खुद अपने सहयोगी दल भाजपा से दूर जा रही है
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए सबका संदेश डॉट कॉम किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)