धर्म

. “षटतिला एकादशी” तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान- ये तिल के 6 प्रकार हैं। इनके प्रयोग के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। पूजन सामग्री श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, पुष्प, पुष्पमाला, नारियल, सुपारी, अनार, आंवला, लौंग, बेर, अन्य ऋतुफल, धूप, दीप, घी, पंचामृत (कच्चा दूध, दही, घी, और शक्कर का मिश्रण), अक्षत, तुलसी दल, चंदन-लाल, मिष्ठान (तिल से बने हुए), शहद गोबर की पिंडीका-108 (तिल तथा कपास मिश्रित) विधि पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाना चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए। उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें। स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन करें और एकादशी व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण करना चाहिए। उसके दूसरे दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगाएं। तत्पश्चात पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी का अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए- ‘हे भगवान! आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फंसे हुओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष! हे विश्वभावन! हे सुब्रह्मण्य!हे पूर्वज! हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ अर्घ्य को ग्रहण करें।’ इसके पश्चात जल से भरा कुंभ (घड़ा) ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को श्यामा गौ और तिल पात्र देना भी उत्तम है। तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है, उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है। कथा एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से यही प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का माहात्म्य नारदजी से कहा- सो मैं तुमसे कहता हूँ। भगवान ने नारदजी से कहा कि हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो। एक ब्राह्मणी हमेशा एकादशी व्रत किया करती थी। हर एकादशी पर वो मेरा (भगवान विष्णु) की पूजा अर्चना करती थी। एक बार उसने भक्ति के भाव को एक माह तक कठिन व्रत कर प्रस्तुत किया। व्रत के वजह से ब्राह्मणी का शरीर तो शुद्ध हो गया। लेकिन ब्राह्मणी की आदत थी कि वो कभी किसी को भोजन या अन्न दान नहीं किया करती थी। जिसके बाद खुद एक बार मैं (विष्णुजी) ने साधारण साधु का भेष धारण कर ब्राह्मणी के आश्रम जा पहुँचे। उस दिन ब्राह्मणी ने मुझे साधारण सा मनुष्य समझ कर एक मिट्टी का टुकड़ा हाथ में दे दिया। जिसके बाद मैं (विष्णुजी) बिना कुछ बोले चला आया। लेकिन जब ब्राह्मणी कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी नारी शरीर को त्याग कर जब वैकुण्ठ धाम आई तब उसे एक खाली आश्रम और आम का एक वृक्ष मिला। तब ब्राह्मणी चितिंत होकर बोलीं कि हे ईश्वर मैंने सदैव आपकी पूजा पाठ किया है लेकिन आप मेरे साथ ऐसा अन्याय कैसे कर सकते हो। तब बड़े ही निर्मल स्वर में मैंने (विष्णुजी) कहा, ब्राह्मणी तूने सदैव पूजा भक्ति तो की लेकिन तूने कभी किसी को अन्न व भोजन दान नहीं किया। उसके बाद मैंने अपनी पूरी कहानी बताई कि कैसे मैं धरती पर आया था और उस समय ब्राह्मणी ने उन्हें मिट्टी का टुकड़ा देकर वापस लौटा दिया था। इस गाथा के सुनने के बाद ब्राह्मणी को अपने किये पर खूब पछतावा हुआ और मुझसे (विष्णुजी) से इस संकट से मुक्ति पाने के लिये उपाय पूछा। जिसके बाद मैंने (विष्णुजी) ने पटतिला एकादशी व्रत करने का उपाय बताया। तभी से षटतिला एकादशी व्रत करने की परंपरा चली आ रही है। ———-:::×:::———- “जय जय श्रीहरि”

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