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lockdown diaries: नर्स गायत्री बोलीं, कोरोना के आगे बेबस है पूरा अमेरिका, जब खत्म होगा वायरस तभी आएंगी भारत-lockdown diaries nri nurse gayatri told experience how america fighting with covid 19 attack india lockdown government new york city dlnh | delhi-ncr – News in Hindi

नई दिल्ली. अमेरिका के ओरेगन प्रान्त के यूजीन (Eugene) शहर में रह रहीं गायत्री देवी वहीं के रिवरबेंड हॉस्पिटल में बतौर नर्स सहायक के रूप में काम करती हैं. जबकि उनकी बेटी रति वहां कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट में नर्स हैं. पिछले 25 साल से अमेरिका में रह रहीं गायत्री का आधा परिवार और दोस्त भारत (India) में रहते हैं. लिहाजा उन्हें यहां की भी चिंता है.

गायत्री बताती हैं कि जैसे ही अमेरिका (America) में कोरोना (Covid-19) के केस आने लगे तो लोगों ने इसे बहुत खतरनाक समझने के बजाय साधारण मौसमी तबीयत बदलना समझा, यही वजह रही कि बीमारी ने पैर पसार लिए. एक वक्त ऐसा आया कि जिंदगी पहले से 100 फीसदी बदल गई. हालांकि अब स्थिति एकदम अलग है. गायत्री ने कोरोना वायरस (Cobid19) से जूझ रहे अमेरिका और वहां के लोगों को लेकर News18Hindi से अपने अनुभव साझा किए.

न्यूयॉर्क सिटी में सबसे ज्यादा खराब हालात हैं, वायरस ने लाचार और बेबस बना दिया

अमेरिका में यूजीन की बात करें तो यहां कोविड के सिर्फ 55 मामले आए, दो की मौत हो गई. पूरे ओरेगन में भी केस कंट्रोल में रहे, लेकिन न्यूयॉर्क सिटी इस वायरस का सबसे ज्यादा शिकार हुआ. गायत्री बताती हैं, ‘पिछले करीब 15 साल से मेरी साथी नर्स रहीं ट्रेवा रिशर कोविड 19 के रोगियों को देखने के लिए चार हफ्ते के लिए न्यूयॉर्क गई हैं. जहां बहुत ज्यादा हालात खराब हैं. काफी साहसी ट्रेवा भी उस वक्त टूट गईं जब कोविड की मरीज उनकी मां को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी और वे मदद नहीं कर पाईं. इतना ही नहीं कोरोना पीड़ितों को मरते हुए देखना काफी दुखद है. वे मदद मांगते रह जाते हैं और हम नर्स होते हुए भी बहुत कुछ नहीं कर पाते.ट्रेवा ने बताया कि कोविड अटैक के दौरान न्यूयॉर्क में करीब 16 मरीजों पर एक नर्स है. जबकि अमेरिका में दो मरीजों पर अमूमन एक नर्स होती है. लेकिन इतनी बड़ी पेंडेमिक है कि हॉस्पिटल में कई बार हौसला साथ छोड़ जाता है. ये वायरस बहुत ज्यादा खतरनाक तो है ही इसने रिश्तों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. इस बीमारी में हर व्यक्ति बेबस और लाचार है.’

कोरोना के बाद हो गए लॉक्ड लेकिन जिंदगी रहेगी तो फिर सब ठीक होगा

कोविड के अटैक के बाद अमेरिका में सभी की लाइफ बदल गई है. मैं एक नर्स हूं तो अब हॉस्पिटल्स में ज्यादा समय तक काम करना पड़ रहा है. मास्क, ग्लव्स, सैनेटाइजर और रोजाना दो बार स्कैनिंग आदत बन गए हैं. आमलोग अब सड़कों पर नहीं घूम रहे. मैं खुद रोजाना हाइट्स पर जाती थी, लेकिन सब ठप है. अमूमन लॉकडाउन के ही हालात हैं. सभी से मिलना-जुलना बन्द है. रेस्टोरेन्ट खुल रहे हैं लेकिन वहां खाना नहीं खा सकते, बस पैक करा के घर ले जा सकते हैं. निजी वाहन इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह बंद है. मॉल्स में जरूरी दुकानें खुली हैं लेकिन करीब 10 फुट का सोशल डिस्टेंस रखना पड़ता है. सरकारी और प्राइवेट दफ्तर बन्द हैं. सिर्फ इमरजेंसी सेवाएं खुली हैं.

मुझसे करीब 300 मील दूर सिएटल में रह रही मेरी भतीजी पुष्पा ने अभी 8 मई को शादी की है, लेकिन कोरोना की वजह से मैं नहीं जा पाई. यहां तक कि यूजीन में ही रह रही मेरी बहन और भांजे से भी पिछले 3 महीनों से मिलना नहीं हो पाया.

अस्पतालों में अन्य बीमारियों का इलाज है लगभग बन्द

यहां कोविड के पेशेंट के लिए अस्पतालों के कुछ फ्लोर खोले गए हैं. जहां कोविड संदिग्धों को क्वारंटाइन किया जाता है. सभी अन्य बीमारियों के लिए ओपीडी बन्द है. हालांकि इमरजेंसी में कोई आता है तो उसे लिया जाता है. वहीं कोरोना से इतनी मौतों के बाद बीमारी का खौफ भी इतना बढ़ गया है कि सामान्य रूप से बीमार लोग अस्पताल जाने से भी घबरा रहे हैं. सभी डॉक्टर, नर्स, नर्स सहयोगी पूरी तरह जुटे हैं.

फेडरल सरकार ने दी है 1200 डॉलर की मदद, लीव की भी मिली सेलेरी

यहां सरकार से ज्यादा लोग आपस मे मदद करते हैं. कोविड अटैक के बाद मैंने खुद नोटिस किया कि यहां के और अन्य जगहों से यहां आकर रह रहे लोगों ने सेनेटाइजर, मास्क, पीपीई किट, राशन और तमाम चीजों का इंतजाम किया. यहां की फेडरल गवर्नमेंट ने टैक्स जमा करने वाले सभी लोगों के खातों में अप्रैल के दूसरे हफ्ते में 1200 डॉलर की मदद दी है. साथ ही किसी की भी सेलेरी नहीं काटी गई. छोटे बिज़नेस करने वालों को भी मदद दी गयी है. मुझे खुद ही घण्टे के हिसाब से पे मिलती है लेकिन जिस दिन मुझे काम पर नहीं बुलाया गया, उस दिन की भी सेलेरी दी गयी.

भारत के बारे में सुना है कि लोगों की पिटाई हो रही है, मजदूर पैदल घर जा रहे हैं

मैं रोजाना भारत मे रह रहे अपने सगे सम्बन्धियों से बात करती हूं. वे वहां के हालात बताते हैं, वीडियो भेजते हैं, खबरें भेजते हैं. जैसा आउटब्रेक अमेरिका में हुआ है इतना भारत में नहीं है. लेकिन भारत के लोग समझते नहीं हैं और बीमारी की गम्भीरता समझे बिना घूम रहे हैं और पुलिस की लाठियां खा रहे हैं. वहीं मजदूर भी अपने अपने घर जा रहे हैं. मुझे बहुत ज्यादा नहीं पता लेकिन इतना तो कह सकती हूं कि वे जहां भी रह रहे होंगे उन्हें दो वक्त का खाना तो मिल रहा होगा, आखिर पहले भी तो वे वहां ठहरे हुए थे, हालांकि पहले कमाई थी.

लेकिन ऐसे कठिन समय में उन्हें परिवार की जान को जोखिम में डालकर पैदल अपने अपने घरों को नहीं जाना चाहिए. उन्हें जहां हैं वहां रुकना चाहिए. ये बीमारी बहुत भयानक है. यहां की खास बात है कि यहां पुलिस को किसी को जबरन कोरोना वायरस के बारे में नहीं समझाना पड़ रहा, लोग खुद समझ रहे हैं और एहतियात भी बरत थे हैं.

अमेरिका में सब सुविधाएं फिर भी ये हाल, सब ठीक होने पर ही आएंगी भारत

गायत्री साल में दो से तीन बार भारत आती हैं. वे कहती हैं, ‘मेरा आधा परिवार यहीं रहता है. लेकिन अमेरिका में सब कुछ सेटल है. हर सुविधा है. इसके बावजूद कोरोना ने हाल बेहाल कर दिया है. अब जब कोरोना पूरी तरह खत्म हो जाएगा तभी भारत आउंगी.

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