छत्तीसगढ़

जो व्यक्ति आपकी सेवा से लाभ नहीं उठा सकता, उसको सेवा देना बुद्धिमत्ता नहीं – ज्योतिष

*जो व्यक्ति आपकी सेवा से लाभ नहीं उठा सकता, उसको सेवा देना बुद्धिमत्ता नहीं – ज्योतिष*

बल्कि मूर्खता है। जैसे अंधों के आगे नाचना और बहरों को गीत सुनाना मूर्खता है।
संसार में कुछ लोग मूर्ख हैं, और कुछ दुष्ट अतिस्वार्थी तथा दुरभिमानी। मूर्ख लोग, बुद्धिमानों से लाभ नहीं उठा पाते, क्योंकि उनमें लाभ उठाने की क्षमता नहीं होती। और दुष्ट अतिस्वार्थी दुरभिमानी लोग, अपने स्वार्थ दुरभिमान आदि दुर्गुणों के कारण, लाभ उठाना तो दूर, बल्कि दूसरों को परेशान ही अधिक करते हैं। इतना ही नहीं, बल्कि अन्य लोगों को भी, बुद्धिमानों से लाभ उठाने नहीं देते। इस बात का ज्वलंत उदाहरण है, आजकल के आतंकवादी लोग। आतंकवादी लोग छोटे बड़े सब प्रकार के होते हैं।
सामान्य स्वार्थ तो सभी लोग, एक दूसरे से पूरा कर लेते हैं। परंतु वे मूर्खों और दुष्ट अतिस्वार्थी लोगों के वर्ग में नहीं आते।
सामान्य लोग, सभ्यता और नम्रतापूर्वक अपना स्वार्थ पूरा कर लेते हैं। जैसे स्कूलों के विद्यार्थी, बुद्धिमान अध्यापकों से विद्या का लाभ ले लेते हैं। और रोगी लोग, बुद्धिमान डॉक्टरों से अपना चिकित्सा का लाभ ले लेते हैं। ऐसे लोग सामान्य रूप से अच्छे माने जाते हैं, जो सभ्यता और नम्रता से लाभ उठाते हैं।
परंतु जो मूर्ख स्तर के लोग होते हैं, वे बुद्धिमानों से कुछ सीखते नहीं, बल्कि उनका समय नष्ट करते हैं। और दुष्ट लोग तो बुद्धिमानों को परेशान करते हैं, झगड़े करते हैं। तथा अपना और दूसरों का समय भी नष्ट करते हैं।
किसी ने पूछा, कि “वे दुष्ट लोग ऐसा क्यों करते हैं?” इसका उत्तर है – कि उनकी बुद्धि भ्रष्ट होती है। उनमें दुष्टता के संस्कार बहुत अधिक होते हैं। उनमें मूर्खता, राग द्वेष की मात्रा बहुत अधिक होती है।
कभी-कभी उनका मन थोड़ा शुद्ध भी हो जाता है। जिससे वे लोग कुछ अच्छे काम भी कर लेते हैं। फिर भी बुरे संस्कार बलवान् होने से, प्रायः वे अधिकतर मन की उस शुद्धता की उपेक्षा ही करते हैं।
कुछ समय के बाद, फिर उन पर बुरे संस्कार हावी हो जाते हैं, और अपनी दुष्टता से दूसरों को परेशान करने लगते हैं। अपनी चालाकी से छल कपट से सत्ता और अधिकार का दुरुपयोग करके, दूसरों को अनुचित रूप से दबाते, अन्याय पूर्वक उनकी हानि और शोषण करते हैं।
ऐसे मूर्ख और दुष्ट लोगों की सेवा नहीं करनी चाहिए। उन्हें कोई लाभ नहीं देना चाहिए। क्योंकि न तो उनकी लाभ उठाने की कोई इच्छा होती है, न वे लाभ उठाने में कुछ प्रयत्न करते; बल्कि दूसरों के लिए दुखदायक भी होते हैं। ऐसे लोगों की सेवा करने से तो, सेवा करने वाले की ही मूर्खता मानी जाती है। जैसे कोई अंधों के आगे नहीं नाचता और बहरों को गीत नहीं सुनाता। यही बुद्धिमत्ता है।
जैसे अंधों के आगे नाचना और बहरों को गीत सुनाना मूर्खता है। समय तथा शक्ति का दुरुपयोग है। ऐसा दुरुपयोग किसी भी व्यक्ति को किसी भी क्षेत्र में नहीं करना चाहिए।
यदि कोई रोगी सभ्यतापूर्वक डॉक्टर के पास आता है, नम्रता पूर्वक निवेदन करता है, तो जैसे डॉक्टर उस रोगी की चिकित्सा करता है। इसी प्रकार से कोई जिज्ञासु व्यक्ति भी सभ्यता पूर्वक, नम्रतापूर्वक, किसी बुद्धिमान् के पास विद्या प्राप्ति के लिए आता है, तो वह बुद्धिमान् भी उसको विद्या का लाभ देता है। यह तो एक दो उदाहरण मात्र हैं। ऐसा ही सबको सभी क्षेत्रों में करना चाहिए। ऐसा करने से सब का सुख बढ़ता है, और सबकी उन्नति होती है। यही मनुष्यता और सभ्यता है।

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