5 जुलाई को है गुरु पूर्णिमा, जानें शुभ मुहुर्त, पूजा विधि और महत्व
गुरु पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. हिंदुओं में गुरुओं को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त है. यहां तक कि गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त हैं क्योंकि गुरु ही हमें अज्ञानता के अंधेरे से सही मार्क की ओर ले जाता है. इस वजह से देशभर में गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन आदिगुरु, महाभारत के रचयिता और चार वेदों के व्याख्याता महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास अर्थात महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था.
महर्षि व्यास संस्कृत के महान विद्वान थे. महाभारत जैसा महाकाव्य उनके द्वारा ही लिखा गया था. सभी 18 पुराणों का रचयिता भी महर्षि वेदव्यास को ही माना जाता है. साथ ही वेदों को विभाजित करने का श्रेय भी उन्हें ही दिया जाता है. बता दें गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाात है. हालांकि, इस साल भी पिछले साल की तरह गुरु पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण ।
गुरु पूर्णिमा कब है?
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक हर साल जुलाई के महीने में गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है और इस साल गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को मनाई जाएगी.
गुरु पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
गुरु पूर्णिका की तिथि: 5 जुलाई
गुरु पूर्णिमा प्रारंभ: 4 जुलाई 2020 को सुबह 11 बजकर 33 मिनट से
गुरु पूर्णिमा तिथि सामप्त: 5 जुलाई 2020 को सुबह 10 बजकर 13 मिनट तक
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुओं की पूजा करने का विशेष महत्व है. बता दें गुरुओं की पूजा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उनकी कृपा से व्यक्ति कुछ भी हासिल कर पाता है. गुरुओं के बिना किसी भी व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है. इस वजह से गुरुओं को भगवान से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है. पुराने वक्त में गुरुकुल में रहने वाले छात्र गुरु पूर्णिमा के मौके पर अपने गुरुओं की विशेष रूप से पूजा-अर्चना किया करते थे. हर साल गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आती है. इस मौसम को काफी अच्छा माना जाता है क्योंकि इस दौरान न तो ज्यादा सर्दी होती है और न ही गर्मी. इस दिन केवल गुरु ही नहीं बल्कि घर में अपने बड़ों जैसे माता-पिता, भाई-बहन आदि का आशीर्वाद लिया जाता है.
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
– गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और बाद में स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– इसके बाद घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं.
– इसके बाद ”गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये” मंत्र का जाप करें
– इसके बाद अपने गुरु या उनकी फोटो की पूजा करें.
– यदि आप गुरुओं को सामने हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं. उन्हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें.
– अब उन्हें भोजन कराएं.