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Inside Story: सचिन पायलट कैम्प की अशोक गहलोत सरकार में ‘एंट्री’ अभी मुश्किल ! जानिये 5 बड़े कारण Inside Story: ‘Entry’ in the Ashok Gehlot government of Sachin Pilot camp still difficult! Know 5 big reasons

जयपुर. पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में पैदा हुये ताजा हालात को देखते हुये हाल फिलहाल राजस्थान कांग्रेस (Rajasthan Congress) में चल रहा अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट (Ashok Gehlot Vs Sachin Pilot) विवाद जल्द दूर होगा इस पर संशय के बादल मंडराने लगे हैं. पहले ही काफी अधरझूल में चल रहा राजस्थान का मामला अब और आगे टलता नजर आ रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस आलाकमान पंजाब के सियासी संकट से उबरे बिना राजस्थान पर हाथ डालेगा इसकी संभावना कम है. वहीं पंजाब के हालिया घटनाक्रम के बाद महात्मा गांधी जयंती पर सीएम अशोक गहलोत ने सरकार को लेकर जिस तरह से पूरे आत्मविश्वास के साथ विपक्ष और अपने विरोधियों को इशारों ही इशारों में जो संकेत दिये हैं वे इस शंका को और मजबूत करते हैं.दरअसल पंजाब में अमरिंदर सिंह की जिस तरह से विदाई हुई और नवजोत सिंह सिद्धू पार्टी पर हावी हुये उससे एकबारगी पायलट खेमे में ऊर्जा का संचार हुआ था. माना जा रहा था कि पंजाब के संकट के समाधान के बाद अब आलाकमान की निगाहें राजस्थान पर हैं और जल्द ही अब राजस्थान में भी उथलपुथल का दौर आने वाला है. लेकिन कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर पार्टी को फिर पशोपेश में डाल दिया

इस कदम से दिल्ली दरबार उनसे खफा बताया जा रहा है. दिल्ली दरबार की बेरुखी से सिद्धू के तेवर भी पहले के मुकाबले नरम पड़ गये. इसका मनोवैज्ञानिक असर राजस्थान पर भी पड़ा है. वहां के हालात को देखते हुये अब कयास लगाये जा रहे हैं कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में कोई हड़बड़ी नहीं करेगा. इसके कई कारण भी गिनाये जा रहे हैं. ये वो सभी कारण हैं जो राजस्थान को पंजाब से अलग करते हैं.

 

पंजाब संकट, उपचुनाव और दिल्ली दरबार में पकड़
राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक राजस्थान संकट को दूर करने में अब हो रही देरी का सबसे बड़ा कारण पंजाब कांग्रेस में मची उठापटक है. दूसरे राजस्थान में अभी उदयपुर जिले की वल्लभनगर और प्रतापगढ़ की धरियावाद विधानसीट पर उपचुनाव होने हैं. इन उपचुनावों की घोषणा हो चुकी है. 30 अक्टूबर को वहां मतदान होगा. अभी पार्टी का ध्यान उपचुनाव वाली सीटें जीतने पर ज्यादा है बजाय दूसरे कार्यों के. तीसरे सीएम अशोक गहलोत की जड़े पंजाब के पूर्व सीएम अमरिंदर के मुकाबले दिल्ली दरबार में काफी गहरी हैं. यहां बिना गहलोत की सहमति के कुछ भी हो पाना संभव कम है

सीएम गहलोत का आत्मविश्वास बहुत कुछ बयां कर रहा है
चौथे पंजाब के घटनाक्रम के बाद भले ही पायलट की राहुल गांधी से दो दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन उसके बाद अभी तक एक भी छोटा-मोटा बदलाव भी नहीं हुआ है. इससे साफ जाहिर है कि गहलोत की सहमति के बिना पार्टी में यहां पत्ता भी हिलना मुश्किल है. पांचवां कारण भी काफी अहम माना जा रहा है. महात्मा गांधी जयंती पर सीएम अशोक गहलोत ने जिस आत्मविश्वास और अंदाज में विपक्ष तथा विरोधियों को इशारों ही इशारों में कहा कि सरकार पांच साल तक चलेगी और रिपिट भी होगी उससे जाहिर हैं कि वे हर तरफ से निश्चिंत हैं. उन्हें ना तो विरोधियों से खतरा है और ना ही दिल्ली से. लिहाजा अभी पायलट ग्रुप की सरकार में एंट्री फिलहाल मुश्किल है.

 

 

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