मताधिकार सबका अधिकार है 1935 नही ये, जनता स्वयं निर्णय ले,- रवि मानिकपुरी*
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*मताधिकार सबका अधिकार है 1935 नही ये, जनता स्वयं निर्णय ले,- रवि मानिकपुरी*
*क्या राजनीतिक दल अपने पार्टी का किसी गरीब को चुनाव चिन्ह दे सकते हैं?*
इस देश के प्रत्येक नागरिक को प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता है परंतु क्या वह आम नागरिको के उम्मीद पर खरा उतरता है?
(पू छात्रसंघ अध्यक्ष पण्डरिया कॉलेज) जनहितैसि *रवि मानिकपुरी* ने कहा की
चाहे वह व्यक्ति ग्राम पंचायत,नगर पंचायत,या नगर निगम या विधानसभा क्षेत्र,या लोकसभा, राज्यसभा का प्रतिनिधि हो।
अगर प्रतिनिधि बन्ने से पहले वो प्रत्याशी है और नए नए वायदे उनके घोंषणा पत्र दर्शाता है और आम जनता उनसे उम्मीद भरोषा करके उस ओर आकर्षित होता है। और अपना मत उसे देता है तो जनता की सुरक्षा और उम्मीद का दायित्व न्यायपालिका का होता है। क्योंकि अपराध तो मिथ्या बोलना भी होता है।
और इस देश में न्यायपालिका ही स्वतंत्र है जो उन सभी पर अंकुश लगा सकता है।
नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के “गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट” के अनुसार केवल 13 प्रतिशत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तें थीं।
केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था।
इसमें विशेष रूप से वे ही लोग थे जिनके कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था।
राज्य के प्रत्येक नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने हेतु, अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार होता होता है।
परंतु क्या वह प्रतिनिधि क्या लोगो के विश्वास को कायम रखते है?
हमारे इस देश में जनतंत्र है मतलब लोगो का शासन।
पर कहाँ तक है क्या? यह सही लगता है!
लोकतन्त्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों के मिश्रण से बनता है, लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है।
लोकतंत्र में ऐसी व्यवस्था रहती है की जनता अपनी मर्जी से विधायिका चुन सकती है। लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं।
एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।
जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है। लोकतंत्र की नींव मताधिकार पर ही रखी जाती है। इस प्रणाली पर आधारित समाज व शासन की स्थापना के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत का अधिकार प्रदान किया जाय।
और यह भारत में लागू भी है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 एक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को निर्वाचित सरकार के सभी स्तरों के चुनावों के आधार के रूप में परिभाषित करता है। सर्वजनीन मताधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिक जो 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के हैं, उनकी जाति या शिक्षा, धर्म, रंग, प्रजाति और आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं।
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानते हुए और व्यक्ति की महत्ता को स्वीकारते हुए, अमीर गरीब के अंतर को, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के अंतर को, तथा स्त्री पुरुष के अंतर को मिटाकर प्रत्येक वयस्क नागरिक को देश की सरकार बनाने के लिए अथवा अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिए “मत” (वोट) देने का अमूल्य अधिकार प्रदान किया है।
संविधान लागू होने के बाद देश के जनता ने अपने मताधिकार के पवित्र कर्त्तव्य का समुचित रूप से पालन करके प्रमाणित कर दिया है कि उसे जनतंत्र में पूर्ण आस्था है। इस दृष्टि से भी भारतीय जनतंत्र का विशेष महत्व है।