मनरेगा योजना बनी कृषक श्रमिकों की उन्नति का आधार: MNREGA scheme became the basis for the advancement of agricultural laborers
जिनके घर पर खाने को अन्न नहीं था, आज वही श्रमिक बीज उत्पादन कर दे रहे हैं अन्न उपजाने वाले किसानों को
बकरी पालन कर अतिरिक्त आमदनी के लिए भी किया जा रहा प्रेरित
दुर्ग। कहते हैं संकट के समय ही सामथ्र्य की असली परीक्षा होती है। कोरोना संकट के साये में साल 2020 चला गया। दे गया बहुत से दर्द और बहुत सी सीख। साल 2020 में कोरोना महामारी को रोकने के प्रयासों के बीच प्रदेश के हजारों श्रमिकों को अपने रोजी रोटी से हाथ धोना पड़ा था जिसके कारण हजारों लोगों के सामने अपने परिवार के सामने जीवन यापन का संकट आ गया। लेकिन राज्य शासन और प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल की दूरगामी सोच और जन हितैषी फैसलों से संकट के समय में भी लाखों परिवार बे सहारा होने से बच गए। देश भर में उस वैश्विक संकट का असर था। छत्तीसगढ़ से बाहर गए लाखों श्रमिक घर वापिस आना चाहते थे। घर वापसी से लेकर इन मजदूरों को काम दिलाकर आजीविका संकट दूर करना बड़ी जिम्मेदारी थी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर सभी को रोजगार से जोड़ा गया, ताकि छत्तीसगढ़ प्रदेश में हर हाथ को काम मिले और कोई भूखा न सोए। मुश्किल समय में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना एक उम्मीद की किरण बनी और हजारों श्रमिकों के जीवन में रोशनी की। ये कहानी है ग्राम पंचायत अंजोरा (ख) के सैकड़ों मजदूरों की, जिनको बीज उत्पादन कार्यक्रम से जोड़ कर आजीविका उपलब्ध कराई गई। खुशी इस बात की है कि जिन मजदूरों के घर में दो वक्त की रोटी के लिए अनाज नहीं था, आज वही मजदूर बीज उत्पादन कर अन्नदाता किसान को खेती के लिए उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध करा रहे हैं।
पति को खो चुकी पांचों बाई को मिला सहारा-ग्राम अंजोरा में सैकड़ों परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। उन्हीं में से एक परिवार था पांचों बाई का। ग्राम अंजोरा की श्रीमती पांचों बाई निर्मलकर के पति और बेटे के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। पांचों बाई ने बताया कि घर मे कोई पुरुष सदस्य नहीं होने के कारण आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। घर में विधवा बहु और 3 बच्चों का भरण पोषण कैसे करूँ समझ नहीं आ रहा था। मनरेगा से जुडऩे के पहले गांव मे ही लोगों के घरों में काम करने जाती थी। बड़ी मुश्किल से भरण पोषण हो पाता था। और कोरोना संकट में यह भी बंद हो गया। अपने परिवार की न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति के लिए भी कर्ज लेना पड़ रहा था। लेकिन महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना ने उनके कष्ट दूर किए। योजना के तहत पांचों बाई एवं उनकी बहु को कृषि विज्ञान केन्द्र अंजोरा द्वारा बीजोत्पादन का काम मिला। प्रतिदिन 190 की मजदूरी मिलने से आर्थिक बोझ कम हुआ और कर्ज चुकाने में भी मदद मिली।
ग्राम पंचायत से मिली 20 एकड़ जमीन को खेती युक्त बनाकर उन्नत किस्म के 150 क्विंटल धान बीज का किया उत्पादन- गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे मजदूर परिवारों को बीज उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया। इस कार्य के माध्यम से मनरेगा के 353 श्रमिकों को कुल 3831 दिन का रोजगार भी प्राप्त हुआ। जिला पंचायत दुर्ग द्वारा लीक से हटकर इस बार ने दाऊ श्री वासुदेव चन्द्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय कृषि विज्ञान केन्द्र अंजोरा के माध्यम से धान बीज उत्पादन एवं उद्यानिकी पौध कार्यक्रम चलाया गया। पहली बार कृषि विज्ञान केंद्र को कार्य एजेंसी के रूप में शामिल किया गया। रोजी रोटी के लिए परेशान हो रहे परिवारों के लिए वर्ष 2019-20 में बीज उत्पादन कार्यक्रम के लिए 6 लाख 30 हजार रुपए की राशि स्वीकृति गई ग्राम पंचायत अंजोरा (ख) में प्रस्ताव पारित कर 20 एकड़ की जमीन उपलब्ध कराई गई। इसके बाद जमीन को समतलीकरण, मेड़ निर्माण खेती लायक बनाया गया जिसमें ग्राम अंजोरा के बीपीएल परिवारों को रोजगार का अवसर दिया गया। इसके बाद कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा श्रमिकों को कतार बोनी विधि सिखाई गई। समय मुश्किल था कोरोना संकट की दौरान लॉक डाउन में सैकड़ों मजदूरों को रोजगार से जोडऩा आसान नहीं था। मगर ये शासन-प्रशासन की प्रतिबद्धता थी कि श्रमिक परिवारों में भुखमरी की स्थिति न आने पाए। कोविड 19 की समस्त गाइडलाइन जैसे सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क सेनेटाइजेशन इत्यादि का पालन करते हुए कार्य शुरू हुआ। कड़ी मेहनत रंग लाई और 150 क्विंटल धान बीज का उत्पादन हुआ। जिसे 20 हेक्टेयर पर खेती करने के लिए किसानों को उपलब्ध कराया गया।
ऑन द स्पॉट होता था मजदूरी का भुगतान-सैकड़ों मजदूरों को इस काम से जोड़ कर उन्हें कार्यस्थल पर ही उचित पारिश्रमिक का भुगतान किया गया। बड़ी बात यह थी कि किसी भी श्रमिक को मजदूरी का पैसा लेने के लिए भटकना नहीं पड़ा बैंक सखियों की माध्यम से उनको अपने काम करने की जगह पर ही पूरे रुपए मिल जाते थे। सही समय पर रुपए मिल जाने से आर्थिक संकट तो दूर हुआ ही, वे अपने परिवार का भरण पोषण आसानी से कर पाए।
नर्सरी, बकरी पालन और केंचुआ खाद बनाना भी सिखाया-
कृषि विज्ञान केन्द्र अंजोरा द्वारा इन मजदूरों को ज्यादा से ज्यादा काम दिलाने के लिए उन्हें बकरी पालन और केचुआ खाद बनाने की तकनीक भी सिखाई गई। ताकि बीजोत्पादन का काम पूरा हो जाने के बाद साथ ही उनके सामने आर्थिक संकट न आए। आज ये सभी परिवार खुशहाली से अपनी जिंदगी जी रहे हैं। उनके पास काम की कमी नहीं। शासन और प्रशासन की कर्तव्यनिष्ठा से ही यह मुमकिन हो पाया।