दुर्ग लोस चुनाव में कांग्रेस-भाजपा ने कुर्मी समाज के प्रत्याशियों पर लगाया दांव
प्रतिमा चंद्राकर व विजय बघेल होंगे आमने-सामने
दुर्ग। साहू बाहुल्य दुर्ग संसदीय सीट पर इस बार कुर्मी समाज के दो प्रत्याशियों के बीच जर्बदस् मुकाबला होगा। भाजपा द्वारा विजय बघेल को प्रत्याशी बनाने के बाद कांग्रेस ने भी दुर्ग लोकसभा से कुर्मी समाज की प्रतिमा चंद्राकर को प्रत्याशी बनाया है। लंबे समय के बाद दुर्ग सीट पर कुर्मी समाज के दो प्रत्याशी आमने-सामने होंगे। इससे पूर्व वर्ष 1989 के चुनाव में कुर्मी समाज से कांग्रेस प्रत्याशी चंदूलाल चंद्राकर और जनता दल और भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी पुरूषोत्तम कौशिक के बीच मुकाबला हुआ था। जिसमें कौशिक ने कांग्रेस से इस परंपरागत सीट को छीन लिया था। यहां वर्ष 1996 तक के कुर्मी समाज का दबदबा रहा। वर्ष 1977 के चुनाव के अलावा वर्ष 1971 से 1996 तक लगातार 6 बार कुर्मी प्रत्याशी जीतते रहे। इस सीट को कांग्रेस की परम्परागत सीट माना जाता था। कुर्मी समाज व कांग्रेस के इस वर्चस्व को वर्ष 1996 में साहू समाज के भाजपा प्रत्याशी ताराचंद साहू ने खत्म किया था। इससे बाद से वर्ष 1998 से 2014 तक यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। वर्ष 2009 के अलावा इस सीट पर साहू समाज का कब्जा रहा। 2009 में सरोज पांडेय जीती। इसके बाद ताम्रध्वज साहू जीते। दुर्ग संसदीय सीट पर प्रतिमा चंद्राकर के अलावा मंत्री ताम्रध्वज साहू के बेटे जितेन्द्र साहू, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी राजेंद्र साहू भी दावेदार थे। साहू समाज की सर्वाधिक आबादी वाले इस सीट पर कांग्रेस आलाकमान ने दोनों साहू प्रत्याशियों को दरकिनार कर प्रतिमा चंद्राकर पर भरोसा जताया। राजनीति के जानकारों की मानें तो इन वजहों से प्रतिमा चंद्राकर दोनों दावेदारों पर भारी पड़ीं। विधानसभा चुनाव में दुर्ग ग्रामीण से कांग्रेस का बी फार्म जारी होने के बाद टिकट काट दिया गया था। इसे लेकर कुर्मी समाज का आक्रोश भी सामने आया था। प्रतिमा ने इस पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने आपत्ति भी दर्ज कराई थी। माना जा रहा है तब राहुल गांधी ने उन्हें टिकट का आश्वासन दिया था। दुर्ग संसदीय सीट क्षेत्र में 30 फीसदी साहू मतदाता है। इनमें से अधिकतर का झुकाव भाजपा के पक्ष में माना जाता है। भाजपा द्वारा कुर्मी प्रत्याशी विजय बघेल को उतारे जाने से साहू के साथ कुर्मी समाज का भी ध्रुवीकरण भाजपा की ओर होने की संभावना बन गई थी। कांग्रेस प्रत्याशी प्रतिमा चंद्राकर ने चुनौती से जुड़े सवालों पर कहा कि हर चुनाव चुनौती पूर्ण होता है। किसी को हल्के में नहीं लेना चाहिए। जो चुनौतियों के साथ बेहतर संघर्ष करता है, उसकी जीत होती है। विधानसभा में टिकट कट गई थी, इस बार उन्होने कहा कि टिकट काटा नहीं गया था, बल्कि परिवर्तन किया गया था। प्रदेश में सरकार बनाने की बड़ी चुनौती थी, इसलिए बड़ी जिम्मेदारी के रूप में टिकट बदलकर प्रत्याशी उतारा गया था। हर नेता व कार्यकर्ता को पार्टी की ओर से जरूरत के हिसाब से जिम्मेदारी दी जाती है। टिकट के दावेदारों के साथ तालमेल बैठाने के प्रश्न पर श्रीमती चंद्राकर ने कहा कि टिकट मांगना सभी का अधिकार है, इसमें प्रतिस्पर्धा सिर्फ टिकट बंटवारे तक रहती है। सभी ने टिकट की मांग की। पार्टी आलाकमान ने सबमे श्रेष्ठ को चुना। टिकट के फैसले के बाद सब एकजुट होकर पार्टी हित में काम करते हैं। उन्होने कहा कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने तीन महीनें में ही कई ऐतिहासिक कार्य किया है। इससे जनता का विश्वास कांग्रेस के प्रति बढ़ा है। जनता मानने लगी है कि कांग्रेस जो कहती है वह करती है। इसका फायदा लोकसभा के चुनाव में जरूर मिलेगा।