जनप्रतिनिधि जरूरतमंदों को राशन वितरण न कर जिला प्रशासन को सौंपे और जिला प्रशासन उक्त राशन को जरूरतमंदों तक पहुंचाएं

सबका संदेश
पूरे देश भर में कोरोना संक्रमण के कारण लॉक डाउन कर दिया गया है।और धार 144 लागू कर दी गयी है जिसके कारण बाहर से आए शरणार्थी, असहाय एवं ऐसे गरीब जो रोज भीख मांगकर अपना जीवन यापन करते थे, उन लोगों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सूखा राशन एवं पका भोजन देने की व्यवस्था की थी। इसी के चलते कई स्थानीय नगरीय निकायों ने भी एक फैसला लिया था कि पार्षद निधि एवं महापौर निधि से ऐसे जरूरतमंदों को भोजन कराया जाएगा और पार्षदों एवं जनप्रतिनिधियों के माध्यम से इसका वितरण किया जाएगा। लेकिन शासन द्वारा आज आदेश जारी किया गया है, जिसमें स्पष्ट लिखा है कि जनप्रतिनिधियों द्वारा यदि भोजन बांटा जाता है, तो कहीं ना कहीं फिजिकल डिस्टेंसिंग के सिद्धांत का पालन नहीं हो पाएगा और पूर्ण लॉक डाउन का पालन कराने में भी कठिनाइयां उत्पन्न होगी। इसी के चलते शासन ने आदेश जारी किया है
कि समस्त जनप्रतिनिधि, महापौर, अध्यक्ष, पार्षद, समाज सेवी संस्था एवं अन्य दानदाता राशन सामग्री जिला प्रशासन को सौपेगी और जिला प्रशासन द्वारा उक्त सामग्री का वितरण किया।
सोशल डिस्टेंसिंग के खत्म होने के मद्देनजर सरकार की तरफ से यह आदेश जारी हुआ है कि जनप्रतिनिधि जरूरतमंदों को राशन वितरण न कर जिला प्रशासन को सौंपे और जिला प्रशासन उक्त राशन को जरूरतमंदों तक पहुंचाएं।
सम्बंधित तर्क-गरीब जरूरत मन्द तक मदद क्या पहुच पायेगा-?
लेकिन इसमें संदेह की स्थिती कुछ जगहों पर निर्मित हो सकती है,क्योंकि आम गरीब जनता तक सरकार व सरकार तक गरीब जनता पहुचे ये जरूरमन्दों को सरलता से मदद नामुमकिन लगता है क्योंकि जनप्रतिनिधियों का जुड़ाव सीधा आम जनता का है,सरकार अचानक लिए फैसले का मैं विरोधी नही हु,लेकिन सरकार का मैं ध्यान आकर्षित करना चाहता हु,जब दानदाता को सरकार को ही मदद करनी होगी तो सीधे उनके फंड में दे ही रही है,अब संस्था या समाज सेवी दल जिन लोगो का मदद कर रही है उनलोगों तक अगर सरकार मदद करती तो किसी को मदद करने की आवश्यकता ही नही थी-
अभिताब नामदेव (संपादक)व समाज सेवक
एक आम प्रेस रिपोर्टर 94255691117