धर्म

नवरात्रि में क्यों बोए जाते हैं जौ? क्या है इसका महत्व

नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस 9 दिवसीय पर्व के दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र में घट स्थापना, अखंड ज्योति, व्रत और कन्या पूजन के साथ-साथ जौ बोने की परंपरा भी सदियों से चली आ रही है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर नवरात्रि में जौ क्यों बोए जाते हैं? आइए जानते हैं इसके पीछे की मान्यता और महत्व।क्यों बोए जाते हैं जौ?
धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि में जौ बोना शुभ और मंगलकारी होता है। जौ को ‘जयंती’ और ‘अन्नपूर्णा देवी’ का स्वरूप माना गया है, इसे “जौ जयंती” भी कहा जाता है। जौ के बिना नवरात्रि अधूरी मानी जाती है क्योंकि जौ का अंकुरण घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक हैपौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जौ दुनिया का पहला अनाज माना जाता है। इसे भगवान ब्रह्मा का स्वरूप भी कहा गया है। कहा जाता है कि जैसे ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, वैसे ही बाकी अनाजों की उत्पत्ति जौ से हुई। इसी कारण नवरात्रि में इसे विशेष स्थान दिया गया है। जौ बोने की विधि
नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के साथ ही जौ बोने की प्रक्रिया शुरू होती है। सबसे पहले एक साफ मिट्टी का बर्तन लें, जिसका मुंह खुला हो। इसमें पवित्र मिट्टी डालकर उसमें जौ के दाने बो दें।हल्के हाथ से पानी छिड़कें और ध्यान रखें कि मिट्टी नम रहे, परंतु पानी ज्यादा न हो। इस पात्र को मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर के पास रखें। नौ दिनों तक रोज थोड़ा-थोड़ा पानी दें ताकि जौ अंकुरित होकर बढ़ सकेजौ के बढ़ने का महत्व
जौ का अंकुरित होना शुभ संकेत माना जाता है। यह घर में सुख-समृद्धि, शांति और देवी कृपा का प्रतीक है। यदि जौ 2 से 3 दिन में अंकुरित हो जाए, तो इसे बेहद शुभ माना जाता हैजौ के हरे और सफेद रंग आने वाले समय को अच्छा और मंगलमय बताते हैं। यदि जौ आधा हरा और आधा पीला हो तो इसका अर्थ है कि वर्ष का कुछ समय अच्छा और कुछ समय चुनौतियों से भरा होगा। जौ से जुड़ी मान्यताएं
कहते हैं कि नवरात्रि में जौ जितना ज्यादा और तेजी से बढ़ता है, उतनी ही माता दुर्गा की कृपा घर-परिवार पर बनी रहती है। नवरात्रि के अंत में उगे हुए जौ को नदी या किसी पवित्र जल में विसर्जित कर दिया जाता है। कई मंदिरों में भी यही परंपरा निभाई जाती है और इसे शुभ संकेत माना जाता है। भविष्य का संकेत
पुरानी मान्यताओं के अनुसार, जौ की बढ़त से वर्षा और फसल का अनुमान लगाया जाता था। यदि जौ उचित रूप से अंकुरित न हो तो इसे अशुभ माना जाता है।

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