छत्तीसगढ़

अग्नि कुंड रखने का संस्कार

 

।। अग्नि कुंड रखने का संस्कार ।।

प्रकृति के पंच तत्वों में एक तत्व अग्नि भी है, जिसे सदैव प्रज्वलित और प्रखंडता का रूप माना गया है। अग्नि का एक ओर दाहकता है तो वहीं दूसरी ओर उनके असंख्य रूपों में सृजनात्मकता भरी कार्य भी है।
अग्नि मानव जीवन के सोलह संस्कारों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, कहीं अग्नि को प्रखंड काल के रूप में देखा गया है, तो वही अग्नि घर परिवार से लेकर देश देशांतर में एकता का धोतक भी है । पुराने जमाने में प्रत्येक घरों में अग्नि कुंड रखने का संस्कार और प्रचलन था कालांतर में यह प्रथा पूर्णतः लुप्त हो चुका है । फिर भी कहीं-कहीं जो इसके उपयोगिता और महत्व को जानते हैं वे लोग अपने घरों में अग्नि कुंड जरूर रखते हैं।

।। आइए जानते हैं अग्नि कुंड के वर्तमान रूप ।।

हाल ही में क्षेत्र में जानकारी के पश्चात पता चला है कि जिला कबीरधाम विधानसभा क्षेत्र पंडरिया के कुंडा क्षेत्र में स्वर्गीय श्री बैजनाथ जी चंद्राकर मालगुजार रापा के सुपुत्र नंदलाल चंद्राकर के घर में अग्नि कुंड देखने को मिला है। आखिर अग्निकुंड बनता कैसे है पुराने समय में जब मालगुजारी का प्रथा था इन्हीं दिनों में मालगुजार अपने पुत्र के विवाह कर घर परिवार में नई नवेली दुल्हन लाते थे तो संस्कार के पालन करते हुए दुल्हन अपने घर के आंगन में पली बढ़ी और खेली कूदी रहती है ,उसी आंगन में सील मानो भगवान शंकर के जलहरी एवं लोढा मानो भगवान के ही रूप । जिसके नीचे दबे अग्नि के सात फेरे लेकर भगवान एवं घर परिवार पितरों को साक्षी मानकर इस वचन से बहुएं ससुराल को आती थी कि वे अपने जीवन काल में परिवार को एक सूत्र के रूप में बांधकर रखेगी एवं एक ही चूल्हे के बने भोजन को परिवार को कराएगी। यही कारण है कि प्राचीन काल में एवं कुछ दिनों पहले तक संयुक्त परिवार देखने को मिलता रहा।

।। स्वर्गीय मालगुजार बैजनाथ चंद्राकर रापा के घर में आज भी है अग्निकुंड।।

हम बात कर रहे हैं विधानसभा क्षेत्र 71 पंडरिया के कुंडा क्षेत्र के थाना मुख्यालय से पश्चिम की ओर 6 किलोमीटर की दूरी में बसे ग्राम रापा की जहां नंदलाल चंद्राकर के घर आज भी अग्निकुंड देखे जा सकते हैं। इसका महत्व नवविवाहित वधू जिस अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेकर ससुराल आई रहती है । उस अग्नि को एक कांसे के बर्तन में प्रज्वलित कर मायके से ससुराल ले आती है और ससुराल में वास्तु शास्त्र के अनुसार अग्नि कोण अथवा अग्नि के स्थान में अग्निकुंड पर स्थापित कर दिया जाता है, एवं प्रतिदिन इसी अग्निकुंड से अग्नि निकालकर सुबह भोजन पकाती है एवं भोजन पकाने के बाद उस अग्नि को उसी अग्निकुंड में रख देती है। इसी तरह से प्रत्येक शाम को भी इसी अग्निकुंड से अग्नि निकालकर भोजन पकाने के बाद उनके विधि विधान से पूजा कर उसी अग्निकुंड में रख देती है जिससे परिवार में एकता और अखंडता बना रहता है।

।।अग्नि कुंड का तांत्रिक महत्व ।।

हिंदू देवी देवताओं एवं शास्त्रों के अनुसार जिस घर में अग्निकुंड रहता है, वहां बूरे तंत्र मंत्र का प्रभाव नहीं पड़ता। परिवार उतरोत्रर मंगलकारी वृद्धि करते रहता है, उस घर में जहां अग्निकुंड हो वहां किसी भी प्रकार के टोटके आदि का प्रभाव नहीं पड़ता एवं उस घर में बसने वाले लोगों को किसी भी प्रकार के रोग लंबे समय तक ग्रसित नहीं कर सकते। खासकर ऐसे घरों में जहां अग्निकुंड होते थे वहां जठरागनी के मंद होने संबंधी बीमारी देखने को नहीं मिलता था । गौटिया और मालगुजार लोगों के यहां ही अग्निकुंड देखे जाते थे। पूर्व काल से लेकर के कुछ समय पहले तक यह अग्निकुंड केवल क्षेत्रीय गौटीया एवं मालगुजार लोगों के यहां ही देखे जाते थे और यह संस्कार स्वर्गीय बैजनाथ चंद्राकर मालगुजार रापा के यहां चला जिसे उनके सुपुत्र नंदलाल चंद्राकर आज भी अपने पूर्वजों के सभ्यता का पताका फहराते हुए पालन करते हुए दिखाई दे रहे हैं। आज भी ग्राम रापा में हम नंदलाल चंद्राकर के यहां जाकर अग्निकुंड देख सकते हैं एवं एक लंबी श्रृंखला भरी संयुक्त परिवार भी आज के इस विषाक्त वातावरण में देख सकते हैं।
जहां परिवार के मुखिया को केवल मुखिया ही नहीं देवतुल्य माना जा रहा है ।।
हरिभूमि संवाददाता
बाबूलाल रजक
कुंडा (पण्डरिया)

Related Articles

Back to top button