छत्तीसगढ़

स्वतंत्रता दिवस पर आलोक शर्मा की कलम से एक कविता

देश की वर्तमान दशा पर,

 हमने एक लंबी कविता पढ़ी,

लोगों ने जिसे कानों से देखी

और आंखों से सुनी!

एक आलोचक बनाम खुजलीकर्ता ने सिर खुजाई

और हमें हमारी पिक्चर दिखाई

वो बोला- अबे आलोक शर्मा

तूने देश पर लंबी कविता पढ़ी

मगर देशभक्ति पर श्रोताओं की नानी भी नहीं मरी

ना तो जयकारे लगे

ना दोनों हाथ उठाके ताली बजी

अरे, लोग तो कविता में क्रांति जगाते हैं

पाकिस्तान में झंडा फहराते हैं

और तेरे शब्द व्यवस्था के भाव बताते हैं!

हमने कहा – महोदय, मुझे कविता में देश का धर्म निभाना है

तो फिर सच्ची तस्वीर ही दिखाना है

उनकी बात और है

उनके लिए तो क्रांति भी बहाना है

जबकि मैंने क से केवल कविता ही जाना है

तो साथ में यही समझाना है

कि देश पे मरना

देशभक्ति का शानदार व्यक्तित्व है

मगर देश के लिए जीना

राष्ट्रगीत जैसा कृतित्व है।

(आलोक शर्मा)

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