शिक्षक विशेष- कृपेंद्र तिवारी

*शिक्षक विशेष- कृपेंद्र तिवारी*
गुरु का मानवीय जीवन में वह स्थान है,जो मूर्ति निर्माण में एक शिल्पकार का होता है,जिस प्रकार एक शिल्पकार पत्थरो पर चोट करता हुए एक सजीव रूपक आकृति प्रदान करता है,उसी एक शिक्षक अथवा गुरु हमारे जीवन अथवा आचरण में व्यापित गुण-दोषों का विवेचन कर उसे दूर करने में अग्रणी भूमिका निभाते है । जिस प्रकार दीपक स्वयं प्रकाशित हो अन्यत्र को प्रकाशमान करता है,लेकिन दिया तले अंधेरा तो रहता ही है,उसी प्रकार शिक्षक स्वयं की महत्वाकांक्षा को दूर रखते हुए,छात्र की सफलता अर्थात उनके जीवन को प्रकाशित करना चाहता है । लेकिन इस गुरु शिष्य परंपरा का चिंतन किया जाए तो अंतर्मन में एक प्रश्न गुंजित हो उठता है,कि क्या वर्तमान समयो में वो गुरु शिष्य परंपरा का अस्तित्व आज भी विद्यमान है,जिसे हम गुरुकुल परंपरा कहते थे,जिससे आप सभी परिचित ही होंगे…………और यह चिंता की ही बात है,कि शिक्षा के व्यवसायीकरण इस दौर में इस परंपरा की छवि गंगा-यमुना त्रिवेणी संगम की लहरों में विलुप्तप्राय माँ सरस्वती जैसा प्रतीत होती है।।
हम बड़े सौभाग्यशाली है,कि हमे गुरुकुल शिक्षण संस्थान जैसे विद्या मंदिर में अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है,जहा आज भी शिक्षक गुरुकुल परंपरा की निर्वहन करते हुए प्रत्येक छात्र को ध्यान में रखकर उनको विषयगत ज्ञान प्रदान करने के अतिरिक्त बौध्दिक,नैतिक एवं सांस्कृतिक रूप से सुदृण बनाते है। ऐसे शिक्षण संस्थान जहा आज भी हमारे सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पर्वो को धूमधाम से आयोजित कर अपने परम्परा के प्रति कृतज्ञता के भाव अर्पित करते है।।
शिक्षक,जो मानवीय जीवन के उज्जवल भविष्य की दिशा एवं दशा निर्धारित करते है।
वो शिक्षक ही होते है,जो माता-पिता के बाद हाने स्वयं से बड़ा बनाने की महत्वाकांक्षा रखते है।।
*ज्योतिष कुमार*