Inter Caste Marriage: क्या अपनी जाति से बाहर लव-मैरिज करना पाप हैं?.. प्रेमानंद महाराज ने दिया सटीक जवाब.. बताया क्या हैं सनातन के नियम
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Thoughts of Premanand Maharaj on Inter Caste Marriage : वृन्दावन: 21वीं सदी में जब पूरी दुनिया आधुनिकता की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रही हैं तो फिर विकासशील देश भारत का भारतीय समाज इसे कैसे अछूता रह सकता हैं? आज भारत का हर वर्ग रूढ़िवाद को पीछे छोड़ आधुनिक जनजीवन में खुद को ढाल रहा हैं। शहरों के अलावा अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी रूढ़िवादी नियम और कायदों में युवाओं को बांध पाना मुश्किल हैं। खासकर जाति, धर्म या फिर समाज के बनाये गये पुराने कायदों से आज का युवा खुद को मुक्त करना चाहता है।
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Thoughts of Premanand Maharaj on Inter Caste Marriage : आधुनिक और स्वतंत्र होते विचारों का सबसे ज्यादा असर लोगों के वैवाहिक रिश्तो में देखने को मिलता हैं। इस युग का युवा अपने विवाह के लिए सामजिक या जातीय रीती रिवाजों को मानने को तैयार नहीं हैं। बड़े शहरों और यहां रहने वाले परिवार भी अपने बच्चों के बेहतरी के लिए उन्हें इस फैसले के लिए मुक्त रखते है लेकिन ग्रामीण जनजीवन में यह स्वतंत्रता अब भी नहीं मिल सकी हैं। बात शादी की ही करें तो इसके लिए जाति, समाज और धर्म मायने रखता हैं। इन शर्तों को नहीं मानाने पर उन्हें पारिवारिक, सामजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता हैं और फिर युगल का जीवन कठिनाइयों से गुजरता हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या प्रेम विवाह कोई पाप है? आखिर सभ्य समाज इसकी इजाजत क्यों नहीं देता? और सनातन की दृष्टिकोण से यह कितना सही हैं। इन तमाम सवालों का जवाब दिया हैं विख्यात कथावाचक प्रेमानंद महाराज ने। आप भी सुने इस संबंध उनके अमृत विचार