एक्सपर्ट बोले, कोरोना के पैटर्न पर बढ़ रहे मानसिक रोग, मरीजों का घर पर भी इलाज संभव Expert said, mental diseases are increasing on the pattern of corona, treatment of patients is possible even at home
नई दिल्ली. कोरोना महामारी के बाद पैदा हुए हालातों का मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ा है. भारत ही नहीं दुनियाभर में लोग एंग्जाइटी, डिप्रेशन, तनाव, अनिद्रा, चिंता और भय से जूझ रहे हैं. कोरोना की वजह से रिश्तों के बिखरने या कठिन हालातों में पैदा हुई दूरी की वजह से भी लोग अकेलेपन, दुख और परेशानियों की चपेट में आए हैं. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना के डर के चलते एक बड़ी संख्या में मानसिक बीमारियों के मरीज घरों में हैं और उन्होंने अस्पतालों से दूरी बनाई हुई है.दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड अलाइड साइंसेज में फैकल्टी, साइकेट्री डॉ. ओम प्रकाश ने बताया कि कोरोना शुरू होने के बाद लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंध लगाए जा रहे थे तो विशेषज्ञों का अनुमान था कि जब कोरोना खत्म होगा तो अस्पतालों में मानसिक बीमारियों या परेशानियों से जूझ रहे मरीजों की बाढ़ आ जाएगी. हालांकि ऐसा नहीं हुआ. इसकी वजह है. आज अस्पतालों के साइकेट्री विभागों में मरीज पहुंच रहे हैं लेकिन वे वही हैं जो बहुत गंभीर हैं या कुछ और जटिलताओं से घिर गए हैं.डॉ. ओम कहते हैं कि कोरोना के बाद जो खास चीज हुई है वह यह है कि मानसिक परेशानियों में भी कोरोना का पैटर्न देखा गया है. जिस तरह कोरोना के मरीज तीन श्रेणियों में बंटे थे, माइल्ड, मॉडरेट और गंभीर. ठीक उसी तरह आज मानसिक समस्याओं में भी यही श्रेणियां देखने को मिल रही हैं. आज बड़ी संख्या में लोग कॉमन मानसिक समस्याओं जैसे नींद में परेशानी, तनाव, झुंझलाहट, किसी काम में मन न लगना, अकेलापन महसूस करना और एकांत ढूंढना, किसी से बात न करना, हर बात पर निराश होना, अस्थिरता, भविष्य के प्रति डर से भरे रहना आदि बीमारियों से जूझ रहे हैं. ये मानसिक बीमारियों के माइल्ड केसेज कहे जा सकते हैं. जिन्हें घर पर रहकर भी ठीक किया जा सकता है और किया भी गया है.
मानसिक बीमारियों के मॉडरेट और गंभीर मरीज
इसके बाद जो मामले हैं वे मॉडरेट हैं जिनमें ये परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं और मरीज आतंकित होने लगता है. ये मरीज घर पर रहकर खुद भी परेशान होते हैं और परिजनों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. या कुछ मामलों में ऐसा भी है कि मरीजों को अस्पताल लाया गया है. हालांकि इनमें आत्महत्या करने जैसे मामले शामिल नहीं हैं. ऐसी दिक्कतें कोविड झेल चुके लोगों में आई है.तीसरा और सबसे गंभीर ऐसे मरीज हैं जो पहले से मानसिक बीमारियों से जूझ रहे थे और जिनकी परेशानियां इस कोविड काल में और भी ज्यादा बढ़ गईं. यहां तक कि कोरोना के दौरान भी परिजनों को ऐसे मरीजों को या तो अस्पताल में लेकर आना पड़ा या वे मरीज जो खुद को या दूसरों को नुकसान पहुंचा चुके हैं इस श्रेणी में आते हैं. डॉ. कहते हैं कि ऐसे मरीजों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं बढ़ी लेकिन कोविड के दौरान इलाज में कमी आने से इनकी स्थिति गंभीर हुई है.
कोविड की तरह मानसिक रोगों के ठीक होने की भी अवधि
डॉ. ओम कहते हैं कि कोविड की तरह ही मानसिक रोगों के ठीक होने की भी अवधि है. जैसे कोरोना में माइल्ड या मॉडरेट केसों के लक्षणों के अलावा ठीक होने का समय भी तय है ऐसे ही मानसिक बीमारियों में यह देखा जा रहा है कि जो लोग माइल्ड या सामान्य मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं वे 6 से 8 महीने के भीतर अपने आप घर पर रहकर ही ठीक हो रहे हैं. जबकि ऐसे मरीज जो मॉडरेट हैं उन्हें अस्पताल के इलाज की जरूरत पड़ रही है. थोड़ी दवा और काउंसलिंग से इन मरीजों को भी राहत हो जाती है.ऐसे मरीजों की संख्या भी काफी है जो अस्पताल से इलाज लेकर घरों में ठीक हो रहे हैं. सबसे ज्यादा परेशानियां गंभीर स्थिति में पहुंच चुके मरीजों को हो रही हैं. इनके इलाज में भी दिक्कतें आ रही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कोविड की कठिन परिस्थितियों में इनमें से सिर्फ वही लोग अस्पताल पहुंच पाए जो या तो हिंसक हो गए थे या ऐसी स्थिति में थे कि कोविड से ज्यादा भयानक उनके लिए मानसिक रोग हो गया था. वहीं जिन लोगों ने आत्महत्या जैसे कदम उठा लिए हैं उन्हें वापस लाना संभव नहीं है.
ऐसे करें माइल्ड, मॉडरेट और गंभीर मरीजों में अंतर
. सामान्य मानसिक परेशानियां जो कि कोविड के बाद पैदा हुई हैं जैसे निराशा, तनाव, चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, खीझ, चुप्पी साधना, घबराहट, डर, उदास होना, भूलना, अकेले रहना, किसी से बात न करना, नींद टूटना आदि माइल्ड केसेज में आते हैं. जैसे-जैसे चीजें सामान्य होंगी, लोगों की व्यस्तता बढ़ेगी वे ठीक होते जाएंगे.अनिद्रा, अवसाद, फोबिया, लंबे समय तक उदास रहना, अकेले बंद होकर रहना, हमेशा निराशाभरी बातें करना, खाना-पीना छोड़ना, तोड़फोड़ या मारपीट करना आदि लक्षण मॉडरेट मरीज होने की ओर इशारा करते हैं.
आत्महत्या के ख्याल आना, घबराहट और बेचैनी का बढ़ जाना, उम्मीद छोड़ बैठना, पूरी तरह चुप हो जाना, गहरे डिप्रेशन में जाना, मरने-मारने की बातें करना, हिंसक होना आदि गंभीर मरीजों के लक्षण हैं जिनका अस्पताल में ही इलाज संभव है.
अधिकांश मरीजों का घर पर इलाज संभव
डॉ. ओम प्रकाश कहते हैं कि कोरोना के बाद सामान्य बीमारियों के मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा बढ़ी है. हालांकि राहत की बात है कि इनका इलाज घरों में ही हो सकता है. मानसिक बीमारियों के माइल्ड मरीजों को घर पर ही बेहतर वातावरण और माहौल देने के साथ ही उनका साथ दिया जाए और परिजनों के द्वारा ही उनकी काउंसलिंग की जाए तो बेहतर परिणाम सामने आएंगे. कोविड के बाद डिप्रेशन में गए बड़ी संख्या में लोग घरों पर ही ठीक भी हो गए हैं. ऐसे लोगों के मन को बहलाने के लिए उनकी पसंदीदा चीजों और प्रक्रियाओं को अपनाएं, इन्हें बाहर ले जाएं. जो काम ये करना चाहें उसके लिए प्रेरित करें. इन्हें अच्छा खानपान दें और ध्यान रखें तो ये जल्दी ठीक हो सकते हैं