धर्म

जानिए अक्षय तृतीया के बारे में पूरी जानकारी

सबका संदेश खबर भेजने ,हमसे जुडने 9425569117

अक्षय तृतीया7 मई मंगलवार को हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं इसे आखा तीज व अकती के नाम से भी जाना जाता हैं।

पुराणों के अनुसार महराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से अक्षय तृतीया का महत्व जानने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त की थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको बताया कि यह परम पुण्यमयी तिथि है।

*यत्किंचिद्दियते दानं स्वल्पम् वा यदि वा बहु। तत्सर्वमक्षयं यस्मात्तेनेयमक्षया स्मृता ।।*

इस दिन स्नान, जप, तप, होम (यज्ञ), स्वाध्याय, पितृ-तर्पण, और दानादि करने वाला व्यक्ति अक्षय पुण्यफल का भागी होता है।
यह सनातन धर्मियों का प्रधान पर्व त्यौहार है। नाम के अनुरूप इस दिन दिए हुए दान और किये हुए स्नान, यज्ञ, जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त और अक्षय (जिसका क्षय या नाश न हो) होता है। इसलिए इस त्यौहार का नाम अक्षय तृतीया रखा गया है।

पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्‍णु के 24 अवतारों में से 3 अवतार हुए थे,

भगवान विष्‍णु के 24 अवतारों में से चौथा अवतार नर-नारायण का है। पुराणों में बताया गया है कि धर्म की पत्‍नी मूर्ति के गर्भ से भगवान नर-नारायण की उत्‍पत्ति हुई। धरती पर धर्म की स्‍थापना के लिए भगवान ने इस रूप में जन्‍म लिया। बदरीनाथ दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। एक पर भगवान नारायण ने तपस्या की थी जबकि दूसरे पर नर ने। नारायण ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने रूप में अवतार लिया जबकि नर अर्जुन रूप में अवतरित हुए थे।

भगवान श्रीहरि के 24 अवतारों में से 16वां अवतार है भगवान विष्‍णु का हयग्रीव अवतार। ब्रह्माजी से उनके वेदों को चुराकर मधु-कैटभ नाम के दैत्‍य रसातल में ले गए। तब ब्रह्माजी परेशान होकर भगवान विष्‍णु की शरण में गए। धर्म की रक्षा के लिए उन्‍हें हयग्रीव का अवतार लेना पड़ा। उन्‍होंने दैत्‍यों का वध करके ब्रह्माजी को उनके वेद सकुशल लौटाए।

भगवान विष्‍णु के सबसे प्रमुख अवतारों में से एक परशुराम को उनका 18वां अवतार माना जाता है।भगवान विष्‍णु ने महर्षि जमदग्नि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्‍म लिया और यह परशुराम कहलाए। परशुराम जी ने उस समय के उद्दंड आततायियों का नाश कर धर्म की रक्षा किया था।
परसुराम जी की पितृ भक्ति भी इतिहास में प्रसिद्ध है।

पुराणों के अनुसार मातंगी देवी का प्राकट्य भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।

महाभारत को वेदव्यास जी के बोलने पर गणेश जी द्वारा लिखने का आरम्भ आज ही के दिन हुआ था।

उपरोक्त समस्त शुभ महत्त्व के कारण ही इस तिथि को बहुत ही शुभ माना जाता है।

वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अक्षय तृतीया एक ऐसा अवसर है जब बांके बिहारीजी के चरणों के दर्शन होते हैं। पूरे साल भर बिहारीजी के चरण वस्‍त्रों और फूलों से ढके रहते हैं। मगर अक्षय तृतीया पर साल में एक बार प्रभु के चरणों के दर्शन होते हैं। मान्‍यता है कि इस दिन प्रभु के चरणों के दर्शन करने से भक्‍तों को विशेष कृपा मिलती है।

इसी दिन भगवान के पूरे शरीर पर चंदन का लेप किया जाता है। इसके लिए दक्षिण भारत से चंदन मंगाया जाता है और उसे महीनों पहले घिसना शुरू कर दिया जाता है। अक्षय तृतीया से एक दिन पहले तक चंदन को घिसने का कार्यक्रम चलता है और फिर उस दिन उसे और महीन किया जाता है। फिर इसमें कपूर, केसर, गुलाबजल, गंगाजल, यमुनाजल और विभिन्‍न प्रकार के इत्रों को मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। अक्षय तृतीया के दिन श्रृंगार से पहले भगवान के पूरे शरीर पर इसका उबटन लगाया जाता है।

*सर्वसिद्ध अबूझ मुहूर्त तिथि*

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी इस तिथि को बहुत शुभ माना गया है। अक्षय तृतीया एक ऐसी सर्वसिद्धि देने वाली तिथि मानी जाती है जिसमें किसी भी मुहूर्त को दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस तिथि को अबूझ मुहूर्तों में शामिल किया गया है।
इसलिये अक्षय तृतीया के दिन विवाह,उपनयन, गृह निर्माण, गृह प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, व्यापार आरंभ, अन्नप्राशन , मुंडन संस्कार आदि का शुभ मुहूर्त है।
इस बार की अक्षय तृतीया का अद्‍भुत संयोग पूरे 1 दशक बाद बन रहा है। इससे पूर्व वर्ष 2003 में 5 ग्रहों का ऐसा योग बना था। जो अब वर्ष 2019 में एक बार फिर ऐसा संयोग बना है जब 4 ग्रह अपनी उच्च राशि में गोचर करेंगे।
साथ ही मृगशिरा नक्षत्र और अतिगंड योग के संयोग से इच्छापूर्ति योग बन रहा है। इच्छापूर्ति के विशेष संयोग में अक्षय तृतीया विशेष फलदायी होगी।

इस दिन गंगा स्नान करने का भी बड़ा माहात्म्य बताया गया है। जो मनुष्य इस दिन गंगा स्नान करता है, वह निश्चय ही सारे पापों से मुक्त हो जाता है।
इस दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है। जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही-चावल, दूध से बने पदार्थ आदि सामग्री का दान अपने पितरों (पूर्वजों) के नाम से करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
इस दिन किसी तीर्थ स्थान पर अपने पितरों के नाम से श्राद्ध व तर्पण करना भी बहुत शुभ होता है।

छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश ,राजस्थान, हरियाणा, यूपी आदि क्षेत्रों में अक्षय तृतीया को किसान भी अपने धरती माँ की पूजा करते हैं। कई इस दिन हल भी चलाते हैं। मान्यता है कि राजा जनक ने अक्षय तृतीया से ही खेतों में जुताई प्रारंभ की थी।
उड़ीसा में भी किसान नई फसल बोता है। यहां भगवान जगन्नाथ की यात्रा के लिए रथों का निर्माण आरम्भ अक्षय तृतीया से ही होता है।
पश्चिम बंगाल में अक्षय तृतीया पर दीपावली सा उत्सव होता है। भगवान गणेश और लक्ष्मी के साथ खातों का भी पूजन किया जाता है।

*सत्तू का महत्त्व*

चना , गेहूँ व जौ को समान मात्रा में मिलाकर , भूनकर पीसे हुए आटा
को सत्तू कहा जाता है।
सत्तू , गर्मी के मौसम के लिये साक्षात अमृत है। शास्त्रों में जौ को देव अन्न कहा गया है इसलिये अक्षय तृतीया के दिन सत्तू का दान करना व अतिथियों को सत्तू खिलाकर ठंडे पानी पिलाना पुण्यप्रद कार्य माना जाता है।
इसी दिन जगह जगह प्याऊ खोल कर प्यासे को पानी पिलाना ।
मन्दिरों में , ब्राह्मणों को व जरूरतमंदों को मिट्टी का घड़ा , सत्तू , पंखा , छाता , आम आदि सामग्री दान करना चाहिये।

*अक्षय तृतीया व्रत व पूजन विधि*

सूर्योदय से पहले स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें। सम्भव हो तो समुद्र स्नान या गंगास्नान करें।

अपने घर के मंदिर में विष्णु जी या लड्डू गोपाल जी को गंगाजल – पंचामृत से अभिषेक करके षोडशोपचार पूजन सहित तुलसी व सुगन्धित फूलों की माला अर्पित करें। धूप दीप जलाकर –
नर नारायण के लिये सत्तू का ,
परसुराम जी के लिये ककड़ी का,
हयग्रीव के लिये भीगें चना दाल का भोग अर्पण करें।

विष्णु जी से सम्बंधित पाठ ( विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु चालीसा , पुरुषसूक्त ) करने के बाद विष्णु जी की आरती करें।
पितरों के निमित्त श्राद्ध तर्पण व ब्राह्मण भोजन करा यथाशक्ति दान देना अत्यंत पुण्य-फलदायी होता है।

पण्डित मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर 7804922620

Related Articles

Back to top button