out of money and job gujarat tribals go back to pre independence Era to Revive Sata Pata system Amid Coronavirus crisis | कोरोना वायरस का असर: गुलामी काल में चले गए नर्मदा के आदिवासी गांव, जीवन यापन के अब कर रहे यह काम | nation – News in Hindi


गुजरात ने शुक्रवार को महाराष्ट्र से अलग होने की 60वीं वर्षगांठ मनाई. वहीं राज्य के नर्मदा जिले के ग्रामीण आजादी के समय से पहले के समय में चले गए हैं. यह उनकी पसंद तो नहीं ही होगी लेकिन महामारी के समय में उन्हें यह फैसला करना पड़ा. वर्षों पहले जब क्षेत्र में कोई विकास नहीं हुआ था, तो जिले के आदिवासियों ने व्यापार का खास तरीका अपनाया जिसे ‘सतपत’ प्रणाली कहा जाता है. मध्ययुग के बार्टर सिस्टम यानी सामन के बदले सामान का व्यापार करने का यह स्थानीय नाम था. अब यह प्रणाली एक बार फिर से प्रसिद्धि हासिल कर रहा है.
नर्मदा जिले के सीमावर्ती क्षेत्रों को राज्य के एक आदिवासी क्षेत्र के रूप में माना जाता है, जहां लोगों के पास आवश्यक संसाधन हैं. लॉकडाउन के चलते ना तो उनके पास नौकरी है और ना ही पैसे. ना ही स्थानीय लोग नौकरी के लिए बाहर जा सकते हैं. ऐसे में लोगों ने जीवनयापन के लिए बार्टर सिस्टम को अपनाने का फैसला किया है.
स्थानीय लोगों ने आपस में दाल-चावल वगैरह एक दूसरे को दिया. आदिवासी संघ एएमयू के अध्यक्ष महेश वसावा ने कहा ‘जब देश स्वतंत्र नहीं था, तब ये आदिवासी अपनी जमीन और अन्य फसलों पर चारा उगाने का काम करते थे. इस तरह उन्होंने ‘सत पत’ प्रणाली के माध्यम से माल और अनाज का आदान-प्रदान किया और व्यापार की इस पद्धति का पालन किया. आज जब आदिवासी काम के लिए बाहर नहीं जा पा रहे हैं तो यह जिले के गांवों में यह प्रथा फिर से शुरू हो गई है.’200-300 गाँवों में, ये जनजातियाँ खेती करती हैं, और जब बारिश होती है, तो वे मौसम के दौरान अन्य काम करने के लिए विभिन्न शहरों में जाती हैं. सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए खाद्यान्न उनकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही गैं तो ये आदिवासी अन्य कृषि उत्पादों और अनाज के लिए माल का आदान-प्रदान कर रहे हैं.
वसावा ने कहा कि गेहूं, चावल और छोले से इनका जीवन यापन नहीं हो सकता. उन्होंने यह भी मांग की कि आदिवासियों को आवश्यक सेवाओं की पूर्ति भी की जाए.
इस प्रकरण पर नर्मदा के अमियाली गाँव के निवासी जगु देसरिया ने कहा कि अधिकतर आदिवासी लोगों को सरकार द्वारा उन्हें दिए गए धन के बारे में जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हमारे खेत सूखे हैं और हमारी आजीविका चली गई है. हम काम पर नहीं जा सकते. इसलिए हम आजीविका के लिए ‘सत पत’ को फिर से शुरू करने के लिए मजबूर हैं.’
News18 Hindi पर सबसे पहले Hindi News पढ़ने के लिए हमें यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें. देखिए देश से जुड़ी लेटेस्ट खबरें.
First published: May 2, 2020, 9:33 AM IST