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बाबा घासीदास और वीर नारायण की विरासत देखी अध्ययन यात्रा में सोनाखान और गिरौदपुरी की अध्ययन यात्रा की मूलनिवासी कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल नेे

भिलाई। / इस्पात नगरी की सांस्कृतिक संस्था मूलनिवासी कला साहित्य और फिल्म फेस्टिवल की ओर से सतनाम के वाहक बाबा गुरु घासीदास की तपोस्थली गिरौदपुरी और अमर शहीद वीर नारायण सिंह की कर्मभूमि सोनाखान की अध्ययन यात्रा 13 दिसंबर रविवार को आयोजित की। जिसमें दुर्ग-भिलाई व रायपुर के अलावा पिथौरा, राजिम, बेमेतरा, तथा चांपा जांजगीर के 80 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने सपरिवार भागीदारी दी।  मूलनिवासी समाज की जागरूकता के लिए की गई इस पहल में शामिल लोगों का जत्था सबसे पहले सोनाखान पहुंचा। जहां वीर नारायण सिंह के स्मारक पर सभी लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए और वहां बनाए गए संग्रहालय को देखा।  संस्था की ओर से विशेष रूप से शहीद वीर नारायण सिंह के वंशजों राजेंद्र सिंह दीवान और कुंजल सिंह दीवान को आमंत्रित किया गया। संस्था के अध्यक्ष और भिलाई स्टील प्लांट के रिटायर जनरल मैनेजर एल. उमाकांत ने दोनों का सम्मान करते हुए सोनाखान और गिरौदपुरी के ऐतिहासिक स्थलों को सांझी धरोहर बताया। उन्होने कहा कि अजा-अजजा, ओबीसी तथा अल्पसंख्यक के लोगों को इन स्थलों पर बार बार आकर हमारे महान पुरखों के जीवन,  कार्य, त्याग और बलिदान के बारे में जानने की जरुरत पर बल दिया। उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए राजेंद्र सिंह दीवान ने बताया कि वे सभी 7 वीं पीढी के वंशज हैं। उन्होंने बहुत विस्तार से सोनाखान के सामाजिक आर्थिक जीवन, शहीद वीर नारायण सिंह के विद्रोह, गुरू घासीदास के अनुयायियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर रोशनी डाली और कुछ कथित साहित्यकारों/लेखकों द्वारा सोनाखान विद्रोह के संबंध में इतिहास में झूठी और मनग?ंत बातों को डालने पर एतराज जताया।  दीवान ने बताया कि ऐसे भ्रामक लेखन के खिलाफ उन्होंने एफआईआर भी दर्ज करवाई है। भिलाई स्टील प्लांट के अफसरों के मूलनिवासी संगठन अंबेडकर एक्जीक्यूटिव एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रभाकर खोब्रागड़ेे ने आभार व्यक्त करते हुए इसे प्रदेश के मूलनिवासी समुदाय के लिए एक आवश्यक कार्यक्रम बताया। इसके बाद संस्था का दल छातागढ पहुंचा, जहां सतनाम के वाहक बाबा घासीदास ने तप किया था। यहां से दल गिरौदपुरी पहुंचा। जहां कुतुबमीनार से ऊंचे जैतखाम को देखा और गुरुद्वारा व अमृतकुंड तक भी अपनी अपनी उपस्थिति दी। यात्रा के ग्रामीण जनों से भी मुलाकात की गई। मंड़वा धर्मशाला में समापन सभा रखी गई। इस दौरान राजिम के डा स्नेहलता और डा अमन हुमने ने अपना इतिहास जानने एक प्रेरक और शिक्षाप्रद यात्रा बताया।  पिथौरा से आए शिक्षक हेमंत खूंटे ने मूलनिवासी शिक्षकों को निजी तौर पर रुचि लेकर विद्यार्थियों को इस दिशा में प्रेरित करने का आह्वान किया तथा बताया कि संस्था इस तरह की यात्राओं के लिए मार्गदर्शन देने हमेशा उपलब्ध रहेगी। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को साधुवाद देते हुए कहा कि हमारे महान पुरखों से जुड़े ऐसे सभी ऐतिहासिक स्थलों पर हम सब बार बार जाएंगे ताकि हमारे शोषणकर्ता वर्ग वहां कब्जा कर अपना कारोबार स्थापित न कर सके। उन्होंने इन ऐतिहासिक स्थलों का प्रबंधन मूलनिवासी समाज द्वारा ही किये जाने पर बल दिया ताकि किसी भी प्रकार की मिलावट से बचा जा सके। इस यात्रा को सफल बनाने में विश्वास मेश्राम, जीडी राउत, अंजू मेश्राम,शिवचरण पानतावने, चित्रसेन कोसरे, डा एचकेएस गजेंद्र, डा एचएन टंडन, संजीव खुदशाह, डॉ. यशवंत सोना, अजय भोई,महेंद्र पटेल,पंकज मेश्राम,लखन सांगो?े,हेमंत खूटे,अशोक ढवले, डी एल भारती, डा यशवंत सोना, गौतम दास साहू, लक्ष्मीभाई कुम्भकार, राकेश बम्बार्डे, देवेंद्र पुरैना, चंद्रसिंह पैकरा और मुहम्मद जाकिर हुसैन सहित अन्य लोगों का सहयोग रहा।

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