राजभाषा हिंदी के प्रभावी कार्यान्वयन में दस ‘प्रÓ की भूमिका -डॉ. सुमीत जैरथ :Role of ‘ten’ in effective implementation of Official Language Hindi – Dr. Sumit Zarath
भिलाई। राजभाषा अर्थात राज-काज की भाषा, अर्थात सरकार द्वारा आम-जन के लिए किए जाने वाले कार्यों की भाषा। राजभाषा के प्रति लगाव और अनुराग राष्ट्र प्रेम का ही एक रूप है। संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया था। वर्ष 1975 में राजभाषा विभाग की स्थापना की गई और यह दायित्व सौंपा गया कि सभी केंद्र सरकार के कार्यालयों/मंत्रालयों/उपक्रमों/बैंकों आदि में अधिक से अधिक कार्य हिंदी में किया जाना सुनिश्चित किया जाए। तब से लेकर आज तक देश भर में स्थित केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों एवं विभागों आदि में सरकार की राजभाषा नीति का अनुपालन तथा सरकारी काम-काज में हिंदी के प्रयोग को बढावा देने में राजभाषा विभाग की अहम् भूमिका रही है। राजभाषा विभाग अपने क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों और नगर राजभाषा कार्यान्वयन समितियों के माध्यम से सभी स्तरों पर राजभाषा का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। उक्त बातें गृह मंत्रालय भारत सरकार के सचिव डॉ. सुमीत जैरथ ने कही है।
डॉ. जैरथ ने आगे कहा कि हम सभी जानते हैं कि जब हमारे संविधान निर्माता संविधान को अंतिम स्वरूप दे रहे थे, इसका आकार बना रहे थे, उस वक्त कई सारी ऐसी चीजें थी जिसमें मत-मतांतर थे। देश की राजभाषा क्या हो?, इसके विषय में इतिहास गवाह है कि तीन दिन तक इस संदर्भ में बहस चलती रही और देश के कोने-कोने का प्रतिनिधित्व करने वाली संविधान सभा में जब संविधान निर्माताओं ने समग्र स्थिति का आकलन किया, दूरदर्शिता के साथ अवलोकन, चिंतन कर एक निर्णय पर पहुंचे तो पूरी संविधान सभा ने सर्वानुमत से 14 सितंबर 1949 के दिन हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया।26 जनवरी 1950 को लागू भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में यह प्रावधान रखा गया कि संघ की राजभाषा ‘हिंदीÓ व लिपि ‘देवनागरीÓ होगी।
अनुच्छेद 351 के अनुसार भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यत: संस्कृत से, और गौणत: अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए हिंदी की समृद्धि सुनिश्चित की जानी है।
महान लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी की पंक्तियां ‘आप जिस प्रकार बोलते हैं, बातचीत करते हैं, उसी तरह लिखा भी कीजिए। भाषा बनावटी नहीं होनी चाहिए।Ó को ध्यान में रखते हुए राजभाषा हिंदी को और सरल, सहज और स्वाभाविक बनाने के लिए राजभाषा विभाग ढृढ़ संकल्प है। केंद्र सरकार के कार्यालयों/मंत्रालयों/उपक्रमों/बैंकों आदि में राजभाषा हिंदी में काम करने को दिन-प्रति-दिन सुगम और सुबोध बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए प्रभावी रणनीति किस प्रकार की होनी चाहिए, इसका मूल सूत्र क्या होना चाहिए?, इस पर विचार करने के दौरान मुझे प्रधानमंत्री द्वारा दिए जाने वाले ‘स्मृति-विज्ञानÓ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और उपयोगी नजर आती है। प्रधानमंत्री से प्रेरणा लेते हुए राजभाषा के सफल कार्यान्वयन के लिए विभाग की रणनीति में 10 ‘प्रÓ के फ्रेमवर्क और रूपरेखा लेकर आगे बढऩे की आवश्यकता है, जो निम्न प्रकार से है।
प्रेरणा:-प्रेरणा का सीधा तात्पर्य पेट की अग्नि को प्रज्ज्वलित करने जैसा होता है। हम सभी यह जानते हैं कि प्रेरणा में बड़ी शक्ति होती है और यह प्रेरणा सबसे पहले किसी भी चुनौती को खुद पर लागू कर दी जा सकती है। प्रेरणा कहीं से भी प्राप्त हो सकती है लेकिन यदि संस्थान का शीर्ष अधिकारी किसी कार्य को करता है तो निश्चित रूप से अधीनस्?थ अधिकारी/कर्मचारी उससे प्रेरणा प्राप्त करते हैं ।
प्रोत्साहन:-मानव स्वभाव की यह विशेषता है कि उसे समय-समय पर प्रोत्साहन की आवश्यकता पड़ती है। राजभाषा हिंदी के क्षेत्र में यह प्रोत्साहन अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अधीनस्थ अधिकारियों/कर्मचारियों को समय-समय पर प्रोत्साहित करते रहने से उनका मनोबल ऊंचा होता है और उनके काम करने की शक्ति में बढ़ोतरी होती है।
प्रेम:- वैसे तो प्रेम जीवन का मूल आधार है किंतु कार्य क्षेत्र में अपने शीर्ष अधिकारियों द्वारा प्रेम प्राप्त करना कार्य क्षेत्र में नई ऊर्जा का संचार करता है। राजभाषा नीति सदा से ही प्रेम की रही है यही कारण है कि आज पूरा विश्व हिंदी के प्रति प्रेम की भावना रखते हुए आगे बढ़ रहा है।
प्राइज अर्थात पुरस्कार
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा प्रत्येक वर्ष राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार दिए जाते हैं। राजभाषा कीर्ति पुरस्कार केंद्र सरकार के मंत्रालयों/विभागों/बैंकों उपक्रमों आदि को राजभाषा के उत्कृष्ट कार्यान्वयन के लिए दिए जाते हैं और राजभाषा गौरव पुरस्कार विभिन्न मंत्रालयों/विभागों/उपक्रमों बैंकों आदि के सेवारत तथा सेवानिवृत अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा हिंदी में लेखन कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए प्रदान किए जाते हैं। यह पुरस्कार 14 सितंबर, हिंदी दिवस के दिन माननीय राष्ट्रपति महोदय द्वारा प्रदान किए जाते हैं। पुरस्कारों का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि देश के कोने-कोने से इन पुरस्?कारों के लिए प्रविष्टि आती है। जब मैंने राजभाषा विभाग का कार्यभार संभाला उस समय स्मृति आधारित अनुवाद टूल ‘कंठस्थÓ के अंदर डेटाबेस को मजबूत करने के लिए सचिव(रा.भा.) की ओर से प्रशस्ति पत्र देने का निर्णय किया। इस कदम का यह परिणाम हुआ कि लगभग डेढ़ महीने के अंदर ही कंठस्थ का डाटा 3 गुना से ज्यादा बढ़ गया। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि प्राइज यानि पुरस्कार का महती योगदान होता है।
प्रशिक्षण:-राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान तथा केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो के माध्यम से प्रशिक्षण का कार्य करता है। पूरे वर्ष अलग-अलग आयोजनों में सैकड़ों की संख्या में प्रशिक्षणार्थी इन संस्थानों के माध्यम से प्रशिक्षण पाते हैं। कहते हैं आवश्यकता, आविष्कार और नवीकरण की जननी है। कोरोना महामारी ने हम सभी के सामने अप्रत्याशित संकट और चुनौती खड़ी कर दी। समय-समय पर प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधित कर हम सभी को इस महामारी से लडऩे के लिए संबल प्रदान किया। इससे प्रेरित होकर राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय ने आपदा को अवसर में परिवर्तित कर दिया। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का आश्रय लेते हुए ई-प्रशिक्षण और माइक्रोसॉफ्ट टीम्स के माध्यम से हमारे दो प्रशिक्षण संस्थान -केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान तथा केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो ने पहली बार ऑनलाइन माध्यम से प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया।
यह सर्वविदित है कि किसी भी संस्थान को उसका कुशल प्रबंधन नई ऊचाइयों तक ले जा सकता है इसे ध्यान में रखते हुए संस्था प्रमुखों को राजभाषा के क्रियान्वयन संबंधी प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। राजभाषा नियम, 1976 के नियम 12 के अनुसार केन्द्रीय सरकार के प्रत्येक कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान का यह उत्तरदायित्व है कि वह राजभाषा अधिनियम 1963, नियमों तथा समय-समय पर राजभाषा विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का समुचित रूप से अनुपालन सुनिश्चित कराएं, इन प्रयोजनों के लिए उपयुक्त और प्रभावकारी जांच-बिंदु बनवाएं और उपाय करें।
प्रयास:-राजभाषा कार्यान्वयन को प्रभावी रूप से सुनिश्चित करने की दिशा में यह अंतिम ‘प्रÓ सबसे महत्वपूर्ण है। इसके अनुसार हमें लगातार यह प्रयास करते रहना है कि राजभाषा हिंदी का संवर्धन कैसे किया जाए। यहां कवि सोहन लाल द्विवेदी जी की पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं कि
संघ की राजभाषा नीति के अनुसार हमारा संवैधानिक दायित्व है कि हम राजभाषा संबंधि?त अनुदेशों का अनुपालन तत्?परता और पूरी निष्?ठा के साथ करें। हम स्?वयं मूल कार्य हिंदी में करते हुए अन्?य अधिकारियों / कर्मचारियों से भी राजभाषा अधिनियमों का अनुपालन सुनिश्चित कराएं ताकि आमजन सभी सरकारी योजनाओं व कार्यक्रमों का लाभ निर्बाध रूप से उठा सके। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इन दस ‘प्रÓ को ध्यान में रखकर राजभाषा हिंदी का प्रभावी कार्यान्वयन करने की दिशा में सफलता प्राप्त होगी और हम सब मिलकर माननीय प्रधानमंत्री जी के ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारतÓ के सपने को साकार करने में सफल होंगे।
डॉ सुमीत जैरथ का परिचय
उल्लेखनीय है कि सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के शिक्षा विभाग द्वारा संचालित सीनियर सेकंडरी स्कूल, सेक्टर-10 में डॉ सुमीत जैरथ ने शिक्षा प्राप्त की है। उनके पिता भिलाई इस्पात संयंत्र में सेवा प्रदान कर चुके है। तत्पश्चात् उन्होंने सेंट स्टीफन महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए (निष्णात अर्थशास्त्र), दिल्ली स्कूल आफ इकोनामिक्स, दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए (अर्थशास्त्र) तथा प्रबंधन अध्ययन संकाय (एफएमएस) दिल्ली विश्वविद्यालय से एमबीए (विपणन एवं वित्त)/पूर्णकालीन डिग्री हासिल की। इसके बाद डॉ सुमीत ने भारतीय और विदेशी स्वामित्व धारी कंपनियों की विपणन कार्य नीति विषय पर प्रबंधन अध्ययन संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। विदित हो कि डॉ सुमीत असम कैडर से 1985 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग के आईएएस हैं। वर्तमान में डॉ सुमीत भारत सरकार के गृह मंत्रालय में सचिव, राजभाषा के पद पर कार्यरत हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा में उनका वृहद् कार्य अनुभव है। इसके तहत उन्हें केन्द्र और राज्य सरकार के इकोनॉमिक और इंफ्रास्ट्रक्चर मंत्रालयों में कार्य करने का 34 वर्ष का व्यापक अनुभव, स्टील, पॉवर, इकोनॉमिक अफेयर (वित्त), भारी उद्योग और लोक उद्यम कार्य व्यापार (विदेश व्यापार) में अपर महानिदेशक के पद पर कार्य करने का चार वर्ष का अनुभव है। इसके अलावा उन्हें रशियन फेडरेशन मॉस्को में भारतीय दूतावास के भारतीय चाय बोर्ड में काउंसलर (कॉमर्शियल और निदेशक) के पद पर कार्य करने का तीन वर्ष का अनुभव है। इसके अतिरिक्त उन्हें विदेश मंत्रालय में मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ)- वित्तीय सलाहकार के पद पर तीन वर्ष एवं छ: महीने का अनुभव तथा मंत्रिमंडल सचिवालय में विशेष सचिव के पद पर कार्य करने का एक वर्ष का अनुभव प्राप्त है।