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रूआबांधा में मनाया गया देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद का जन्मदिन

पोरबंदर और इलाहाबाद जैसा महत्व नहीं मिला जीरादेई को-आर पी शर्मा

भिलाई। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद की 134 वीं जयंती पर इस्पात नगरी भिलाई के बौद्धिक वर्ग ने उन्हें याद किया। भारत रत्न जयप्रकाश नारायण स्मारक प्रतिष्ठान, आचार्य नरेंद्र देव स्मृति जन अधिकार अभियान समिति एवं चंद्रशेखर फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में एचएससीएल कालोनी रूआबांधा में गुरुवार की सुबह आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने बाबू राजेंद्र प्रसाद के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। सभा को संबोधित करते हुए संयोजक आर पी शर्मा ने कहा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद और उनसे जुड़ी स्मृतियों को सहेजने में देश और देश के नीति निर्धारक विफल रहे हैं। महात्मा गांधी की जन्मस्थली पोरबंदर और जवाहरलाल नेहरू की जन्मस्थली इलाहाबाद को पर्याप्त महत्व मिला लेकिन बाबू राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली जीरादेई (बिहार) को आज भी वैसा महत्व नहीं मिल पाया है। उन्होंने भिलाई से जुड़ा प्रसंग उल्लेखित करते हुए कहा कि 4 फरवरी 1959 को बाबू राजेंद्र प्रसाद ने भिलाई स्टील प्लांट की पहली धमन भट्टी से उत्पादन की शुरूआत की थी और दूसरे दिन 5 फरवरी की सुबह उसी फर्नेस में ढला लोहे का पहला टुकड़ा तत्कालीन जनरल मैनेजर निर्मलचन्द्र श्रीवास्तव ने ससम्मान डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भेंट किया था।

उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए भिलाई में उनकी स्मृति को अक्षुण्ण रखने पहल होनी चाहिए। त्रिलोक मिश्रा ने कहा कि बाबू राजेंद्र प्रसाद ने जिस भिलाई स्टील प्लांट का उद्घाटन किया था, आज उस पर निजीकरण का खतरा मंडरा रहा है और इसके खिलाफ हम सभी को एकजुट होना पडेगा। किताबुद्दीन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद की सादगी का उल्लेख करते हुए कहा कि भिलाई में 32 बंगले में तब जैसी व्यवस्था थी, उसमें भी राष्ट्रपति होने के बावजूद रुकने से बाबू राजेंद्र प्रसाद ने परहेज नहीं किया। वक्ताओं ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद के संविधान निर्माण में योगदान का भी उल्लेख किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से एलके वर्मा, हरगुण राम, राजकुमार सिंह, तनवीर अहमद, फारुक खान, कपिल देव प्रसाद और लखन साहू ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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