छत्तीसगढ़

अपने को सम्मान चाहिए पर देंगे नहीं विचित्र सोच- ज्योतिष

*अपने को सम्मान चाहिए पर देंगे नहीं विचित्र सोच- ज्योतिष*
दूसरों से अपने लिए तो सम्मान चाहना, और दूसरों को सम्मान देना नहीं। कैसी विचित्र सोच है मनुष्य की!!
दूसरा व्यक्ति आपका सम्मान करे, ऐसा तो आप चाहते हैं। परंतु स्वयं दूसरे को सम्मान देना नहीं चाहते। कितने स्वार्थ की बात है यह!!!
सामान्य स्वार्थ हो तो भी कोई बात नहीं। एक हाथ दे, एक हाथ ले।इतना भी यदि व्यक्ति कर ले, तो भी व्यवहार चल जाए। परंतु यह तो अति स्वार्थ है, कि लोग मुझे तो सम्मान देवें, परन्तु मैं किसी को सम्मान नहीं दूँगा। ऐसा सोचना भी मनुष्यता से बाहर है।
न्याय की बात तो यही है, कि यदि आप समाज के लोगों के साथ उचित व्यवहार करेंगे, तो समाज के लोग भी आपके साथ वैसा ही उचित व्यवहार करेंगे। जो समाज के लोगों के साथ उचित व्यवहार नहीं करेगा, उसे समाज के लोग वैसे ही समाज में से बाहर निकाल कर फेंक देंगे, जैसे दूध में से मक्खी को निकाल कर फेंक देते हैं। *भले ही आज आपको यह अतिशयोक्ति लगती हो, परंतु कुछ समय बाद होगा यही। जब ऐसा हो जाएगा, तब आपको समझ में आएगा।
इसके साथ-साथ मनोविज्ञान ऐसा भी है, कि *जब कोई व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को उसके गुण कर्म योग्यता के अनुसार उचित सम्मान नहीं देता, तब वह दूसरा व्यक्ति, मन ही मन उस पहले व्यक्ति को मूर्ख समझता है। और उसे मूर्ख मानकर, अपने मन में हंसता रहता है, तथा वह उसके साथ नकली व्यवहार करता है। इस बात के साक्षी आप स्वयं हैं। आप स्वयं दूसरों के साथ ऐसा करते हैं। अब यही स्थिति आपके साथ भी हो सकती है। यदि आप भी दूसरे के साथ यथायोग्य व्यवहार नहीं करेंगे, उसकी योग्यता गुण कर्मों के अनुसार उसके साथ अच्छी भाषा बोलना, सम्मान से व्यवहार करना, उसकी उचित सेवा करना इत्यादि नहीं करेंगे, तब वह भी तो आपको मूर्ख ही मानेगा। वह आपको बुद्धिमान क्यों मानेगा?ये सब नियम ईश्वर द्वारा बनाए गए हैं। ईश्वर न्यायकारी है। इसलिए वह जो भी नियम बनाता है, वे सब न्यायपूर्ण होते हैं। हमारा काम है ईश्वर के नियमों को समझना, उन्हें हृदय से स्वीकार करना, और व्यवहार में उन नियमों का आचरण करके सुखी रहना। संसार में किसी में भी इतनी शक्ति नहीं है, जो ईश्वर के बनाए नियमों को तोड़ सके।
सार यह हुआ कि, आपका व्यवहार आपके हाथ में है। यदि आपको अपनी बुद्धिमत्ता और गुणों का इतना ही अभिमान हो, तो सोच समझकर कार्य करें। न तो दूसरों को मूर्ख समझकर उनका अपमान करें, और न ही स्वयं उनकी दृष्टि में मूर्ख बनकर अपमानित होवें। दूसरों को परीक्षापूर्वक बुद्धिमान मानकर उचित सम्मान देवें, जिससे दूसरे लोग भी आपको बुद्धिमान मानकर उचित सम्मान देवें।
*मनोविज्ञान तथा व्यवहार की सारी बातें आपके सामने हैं। आपको जैसा उचित लगे, वैसा करें। स्वयं को समाज में बुद्धिमान और सभ्य व्यक्ति के रूप में स्थापित करें, और सुखी रहें।

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