छत्तीसगढ़

सत्य और अच्छाई का समर्थन अवश्य करना चाहिए -ज्योतिष*

*सत्य और अच्छाई का समर्थन अवश्य करना चाहिए -ज्योतिष*

। झूठ और बुराई का खंडन भी करना चाहिए। खंडन करना बुरा नहीं है, परंतु ढंग से करना चाहिए। मंडन/समर्थन अधिक और खंडन कम करना चाहिए।*
कभी-कभी लोग मंच पर बोलते समय अथवा बातचीत करते समय, जब उन्हें दूसरे व्यक्ति की किसी बात का खंडन करना होता है, *तब वे दूसरे व्यक्ति का खंडन भी करते जाते हैं और साफ झूठ बोलते हैं, कि “मैं आप का खंडन नहीं कर रहा हूँ।”* वे ऐसा झूठ क्यों बोलते हैं? वे समझते हैं, कि यदि “मैं खंडन करूंगा, तो सामने वाला व्यक्ति बुरा मान जाएगा।” ऐसे अज्ञानी लोग या तो यह समझते नहीं, कि वे खंडन कर रहे हैं। या फिर दूसरे व्यक्ति को मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं, कि खंडन करते हुए भी साफ झूठ बोल रहे हैं, कि “मैं आप का खंडन नहीं कर रहा हूँ।”
सामने सुनने वाला व्यक्ति भी इतना मूर्ख तो नहीं है, कि वह खंडन को सुनकर भी समझ नहीं पाए, कि मेरा खंडन किया जा रहा है। जब वह समझ लेता है, कि यह व्यक्ति मेरा खंडन भी कर रहा है, और झूठ बोल कर मुझे मूर्ख भी बना रहा है। तब उसे बहुत क्रोध आता है। इसमें दोष, उस झूठ बोलने वाले खंडनकर्ता व्यक्ति का है। ऐसे लोगों को झूठ बोलने की यह मूर्खता नहीं करनी चाहिए।
“खंडन करने से आप डरते क्यों हैं?” *यदि आपको इतना ही डर लगता है, कि आपके द्वारा खंडन करने से सामने वाला व्यक्ति नाराज हो जाएगा, तो खंडन मत कीजिए। और यदि आप से रुका नहीं जाता, खंडन करना इतना आवश्यक ही लगता है, तो प्रेम से मीठे शब्दों में, बिना डरे खंडन कीजिये। कम से कम झूठ बोलकर दूसरे व्यक्ति का क्रोध तो मत बढ़ाइए, कि “मैं आपका खंडन नहीं कर रहा हूँ।”*
मुझे अनेक बार ऐसे लोग मिलते हैं, जो ऐसा कहते हैं, कि “खंडन नहीं करना चाहिए,” वे या तो खंडन का स्वरूप को जानते नहीं, अथवा जानबूझकर, ऐसा बोलकर दूसरे व्यक्ति को मूर्ख बनाने की कोशिश करते हैं। इसलिए बोलने से पहले सिद्धांत को समझ लीजिए, सिद्धांत क्या है?
*खंडन करना संविधान के विरुद्ध नहीं है। आप बिना डरे खंडन कर सकते हैं। परंतु खंडन करने की विधि आपको जाननी चाहिए। विधि को ठीक से जानकर विधिवत् खंडन करें।*
*खंडन का अर्थ होता है, किसी बात का विरोध करना, या निषेध करना। यह खंडन झूठ या बुराई का भी हो सकता है, और सत्य या अच्छाई का भी। झूठ या बुराई का खंडन अवश्य करना चाहिए, डरना नहीं चाहिए। और सत्य या अच्छाई का समर्थन भी अवश्य ही करना चाहिए। अन्यथा धर्म एवं सुख की वृद्धि नहीं हो सकती। अधर्म एवं दुख का नाश नहीं हो सकता। जो भी व्यक्ति किसी बुराई को स्वयं न करता हो, उसे उस बुराई का खंडन करने का पूरा अधिकार है। हाँ, जो स्वयं बुराइयों में फँसा हुआ हो, उसे बुराई का खंडन करने का अधिकार नहीं है।*
*खंडन करने की विधि* =
*पहली बात – झूठ या बुराई का खंडन करना चाहिए, सत्य या अच्छाई का नहीं.* जैसे किसी ने कहा, कि – “शराब मत पीओ। जुआ मत खेलो, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, अन्याय मत करो, किसी का शोषण मत करो;” आदि ये सब खंडनात्मक वाक्य हैं। इस प्रकार के वाक्यों के द्वारा बुराइयों का खंडन/विरोध तो करना ही पड़ेगा, अन्यथा आप लोगों को बुराई से बचाएंगे कैसे! और संसार में बुराई नियंत्रित कैसे होगी? वेदों में ईश्वर ने इन सब बुराइयों का खूब खंडन कर रखा है। और सारी दुनियां ऐसा खंडन करती है। संविधान में बुराई का भरपूर खंडन किया हुआ है। देश धर्म की रक्षा के लिए इन बुराइयों का खंडन करना आवश्यक है। तथा दूसरों के अच्छे विचारों का समर्थन करना भी आवश्यक है। परंतु अच्छाई का खंडन नहीं करना चाहिए। जैसे – यदि कोई ऐसा खंडन करे कि *सदा सत्य नहीं बोलना चाहिए। झूठ के बिना तो जीना संभव ही नहीं है। हमेशा प्रेम से कैसे रह सकते हैं, कभी कभी तो बच्चों आदि पर क्रोध आ ही जाता है। हम इतनी मेहनत से धन कमाते हैं, यदि दान कर देंगे, तो घर कैसे चलेगा? इसलिये दान नहीं देना चाहिए।* यह सत्य / अच्छाई का खंडन है। यह अनुचित है। *सत्य या अच्छाई का खंडन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से अच्छाई नहीं बढ़ेगी। और उससे सुख की वृद्धि नहीं हो पाएगी। आप यदि अच्छा काम नहीं कर सकते, आपकी इच्छा या सामर्थ्य नहीं है, तो न करें। कम से कम दूसरे समर्थ लोगों को तो अच्छा काम करने से न रोकें। अच्छे काम का विरोध करना, अनधिकार चेष्टा है।*
*दूसरी बात – झूठ या बुराई का खंडन, उचित अवसर देख कर, सामान्य रूप से, प्रेम से करना चाहिए, कठोरता से नहीं।* जैसे – “शराब नहीं पीनी चाहिए। इससे व्यक्ति रोगी हो जाता है। फिर वह रोगी व्यक्ति स्वयं भी दुखी होता है, और उसके परिवार के लोग भी परेशान होते हैं। रोग की चिकित्सा में बहुत सा धन भी खर्च करना पड़ता है। इसलिये शराब पीना अच्छा नहीं है।” यह प्रेम से किया गया खंडन है। कठोर खंडन –> “शराब पीने वालों का दिमाग खराब है, मूर्ख लोग रोगी होकर स्वयं तो दुखी होते ही हैं, साथ में अपने परिवार वालों को भी दुखी करते हैं।” सामान्य रूप से ऐसा कठोर खंडन नहीं करना चाहिए। *परंतु प्रेम से खंडन करने पर, यदि कोई शराब आदि बुराई का समर्थन करे, बार बार समझाने पर भी असभ्यता से शराब पीने का समर्थन ही करता जाए, तब परिस्थिति के अनुसार कठोर भाषा में भी खंडन किया जा सकता है। तब उसमें दोष नहीं है। जैसे सामान्य रोग होने की स्थिति में गोली टैबलेट से काम चल जाता है, परंतु रोग की स्थिति गंभीर होने पर, गोली से काम नहीं चलता, तब तो चीरफाड़ करके आपरेशन ही करना पड़ता है।*
*तीसरी बात – सामने वाले व्यक्ति की योग्यता को देखकर सभ्यता से खंडन करना चाहिए, असभ्यता से नहीं।* जैसे – एक ग्रेजुएट व्यक्ति के सामने,उससे अधिक योग्य, कोई पीएचडी स्तर के प्रोफेसर साहब बैठे हों, तो संयमित भाषा में बुराई का खंडन करना चाहिए, वहां भद्दे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह सभ्यता है। *यदि उस ग्रेजुएट के सामने कोई दसवीं कक्षा पास, उससे कम योग्य व्यक्ति बैठा हो, तो परिस्थिति को ध्यान में रखकर कभी कभार, यदि आवश्यकता लगे तो, खंडन करते समय कुछ लौकिक चालू भाषा (टपोरी लैंग्वेज) के शब्दों का प्रयोग चल भी सकता है। परन्तु वह भी अनिवार्य नहीं है।*
इसलिए सिद्धांत यह समझना चाहिए, कि *”ऊपर बताए नियमों के अनुसार खंडन करना उचित है। परन्तु खंडन कम (20%) और मंडन/समर्थन अधिक (80%) करना चाहिए।यही सभ्यता है, और यही व्यवहार सुखदायक है।”*

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