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बिहार चुनाव में 10 धुरंधरों ने बचाई सियासी विरासत, शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे सहित कई हारे भी

बिहार का चुनावी इतिहास परिवारवाद और वंशवाद की राजनीति का बेहतर उदाहरण रहा है। लंबी फेहरिस्त है यहां की वंशवादी राजनीति की। इस बार का चुनाव भी इससे अछूता नहीं रहा। सभी दलों में वंशवाद की छाप दिखी। पर इस बार का चुनाव परिणाम कई मायनों में खास रहा। वंशवाद की राजनीति का मुकाबला करीबन 50-50 रहा। 16 प्रत्याशी ऐसे थे जिनकी मजबूत पारिवारिक पैठ राजनीति में रही है। इनमें से 10 प्रत्याशी चुनाव में जीत की दहलीज लांघ सके जबकि 6 अपने परिवार की विरासत को बचाने में कामयाब नहीं रहे। एक नजर ऐसे प्रत्याशियों पर..

ये नहीं बचा सके विरासत

1. लव सिन्हा : पिता शत्रुघ्न सिन्हा और मां पूनम सिन्हा भी राजनीति में हैं। भाजपा से बगावत के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया था। लव कांग्रेस के टिकट पर बांकीपुर से लड़ रहे थे। राजनीति की शुरुआत उनके लिए अशुभ रही। वो चुनाव हार गए।

. पुष्पम प्रिया चौधरी

विदेश से पढ़ाई कर बिहार में राजनीतिक पैठ बनाने में जुटी पुष्पम प्रिया चौधरी ने मार्च में ही खुद को बिहार का अगला मुख्यमंत्री घोषित कर दिया था। इनके दादा उमाकांत चौधरी जदयू के संस्थापकों में से थे। पिता विनोद चौधरी जदयू के एमएलसी रहे हैं। चाचा विनय चौधरी जदयू के टिकट पर बेनीपुर से लड़ रहे हैं। पुष्पम बांकीपुर और बिस्फी दोनों सीट से चुनाव लड़ रही थीं, दोनों ही जगह उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। उन्हें दोनों जगह से तीन हजार वोट भी नहीं मिल सके।

3. सुभाषिनी यादव: सुभाषिनी शरद यादव की बेटी हैं। शरद यादव जदयू के अध्यक्ष रहे हैं। सुभाषिनी के पति राजकमल राव का भी हरियाणा में राजनीतिक पृष्ठभूमि रहा है। सुभाषिनी कांग्रेस के टिकट पर बिहारी गंज से चुनाव लड़ रहीं थी। इन्हें हार का सामना करना पड़ा।

4. शुभानंद मुकेश : पिता सदानंद सिंह कहलगांव सीट से नौ बार विधायक रहे। विधानसभा अध्यक्ष भी बने। कांग्रेस के टिकट पर शुभानंद पिता की परंपरागत सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी थे। पर कहलगांव की जनता ने वंशवाद की राजनीति को नकार दिया। शुभानंद को हार का सामना करना पड़ा।

5. चंद्रिका राय : पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा राय 1970 में दस महीने के लिए मुख्यमंत्री रहे थे। उनके बेटे चंद्रिका राय जदयू के टिकट से परसा से चुनाव मैदान में थे। पर समधियाने से खटास उनकी जीत के सामने दीवार बन गई। वो राजद प्रत्याशी से हार गए।

6. दिव्या प्रकाश: पिता जयप्रकाश नारायण केंद्र में जल संसाधन मंत्री थे। बिहार के शिक्षा मंत्री भी रहे। दिव्या प्रकाश राजद के टिकट से तारापुर सीट से लड़ रही थीं। उन्हें जदयू के मेवालाल से हरा दिया।

इन्होंने विरासत बचाई

1. तेजस्वी यादव : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेटे और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने राघोपुर सीट पर जीत दर्ज कर ली है। उन्होंने भाजपा के सतीश कुमार को करारी शिकस्त दी

2. तेजप्रताप यादव : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादन ने हसनपुर से जीत दर्ज की है। उन्होंने जदयू के राजकुमार को 21 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है।

3. सुधाकर सिंह : पिता जगदानंद सिंह राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वे रामगढ़ सीट से 5 बार विधायक रहे हैं। राजद के टिकट से सुधाकर अपने पिता की परंपरागत सीट रामगढ़ से चुनावी मैदान में थे। हालांकि वह करीबी मुकाबले में जीत गए।

4. चेतन आनंद: पिता आनंद मोहन और मां लवली आनंद सांसद रह चुके हैं। लवली राजद के टिकट पर सहरसा से लड़ रही हैं। चेतन भी राजद उम्मीदवार के तौर पर शिवहर से चुनावी मैदान में थे। उन्होंने जीत दर्ज करते हुए राजनीतिक पारी की शुरुआत की।

5. अजय यादव: पिता राजेंद्र यादव और मां कुंती सिंह भी विधायक रहीं। अजय को राजद से टिकट मिला है। वो अपनी पारिवारिक सीट अतरी से चुनावी मैदान में थे। जीत के साथ परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने में कामयाब रहे।

6. ऋषि कुमार : मां कांति सिंह केंद्रीय मंत्री थीं। बिहार में भी मंत्री पद संभाल चुकी हैं। लालू यादव के करीबियों में कांति सिंह की गिनती होती है। ऋषि ओबरा क्षेत्र से चुनाव लड़े और जीत दर्ज की।

7. श्रेयसी सिंह : श्रेयसी के पिता दिग्विजय सिंह केंद्र में मंत्री रहे हैं। मां पुतुल देवी सांसद रही हैं। इंटरनेशनल शूटर रहीं श्रेयसी भाजपा के टिकट से जमुई से लड़ रहीं थीं। भारी अंतर के साथ जीत दर्ज करते हुए उन्होंने पिता और मां की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है।

8. राहुल तिवारी : पिता शिवानंद तिवारी और दादा रामनंद तिवारी विधायक और सांसद रहे हैं। शिवानंद तिवारी और लालू यादव गहरे मित्र रहे हैं। राहुल शाहपुर से लड़ रहे थे। राहुल ने जीत दर्ज करते हुए पिता की विरासत की लाज रखी।

9. कौशल किशोर : कौशल हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य के बेटे हैं। सत्यदेव नारायण राजगीर से आठ बार के विधायक रहे हैं। भाजपा में गहरी पैठ है, लेकिन बेटे को जदयू की सदस्यता दिलवाकर अपनी परंपरागत सीट राजगीर से चुनाव लड़वाया। जीत के साथ कौशल ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की है।

10. नीतीश मिश्रा : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बेटे नीतीश मिश्रा भी झंझारपुर से चुनाव जीत गए।

 

 

 

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