जानिए नवरात्रि के बारे में-मनोज शुक्ला महामाया मन्दिर रायपुर
ज्योति कलश के साथ जंवारा
व
छत्तीसगढ़ का महोत्सव पर्वनवरात्रि विशेष
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सबका संदेस न्यूज छत्तीसगढ़ रायपुर- नवरात्रि पर्व में माँ भगवती के साक्षात ज्योति स्वरूप की आराधना की जाती है।
आईये आज आपको ज्योति के साथ जवारां क्योँ बोया जाता है तथा छत्तीसगढ़ में इस महापर्व को कैसे मनाया जाता है इसके बारे में बहुत ही नजदीक से अवगत कराता हूँ। पण्डित मनोज शुक्ला
नवरात्रि पर्व शक्ति आराधना का महापर्व है।
इस पर्व के माध्यम से हर जगह हर रूप में माँ भगवती की शक्ति स्वरूप की अखण्ड दीप जलाकर आराधना की जाती है।
जंवारा क्यों??
जैसे भगवान विष्णु जी को तुलसी,
शिव जी को बिल्वपत्र,
गणेश जी को दूर्वा,
कृष्ण जी को माखन-मिश्री व
हनुमान जी को सिन्दूर प्रिय है उसी तरह माँ भगवती को हरी भरी फुलवारी प्रिय है।
इसलिये मातेश्वरी की उपासना में ज्योति कलश के साथ जवारा अवश्य बोयी जाती है।
शक्ति की उपासना पूजा के लिये जहाँ कही भी ज्योति जलायी जाती है वहाँ उस ज्योति कलश के चारों तरफ फुलवारी बगिया बनाकर , सप्तधान्य
( जौं,गेहूँ,अरहर,मूँग,मसूर,उड़द,तिल)
को बोकर उसमें पानी सींचा जाता है।
छत्तीसगढ़ की परम्परा में नवरात्रि आरंभ होने के एक दिन पहले ही मिट्टी के एक कूड़ेरा (एक पात्र) में पानी भरकर इस सप्तधान्य को बराबर मात्रा में मिलाकर उसमे डुबो कर रात भर के लिये रख दिया जाता है। अगली सुबह नवरात्रि के पहले दिन इसे पानी से निकालकर साफ नये कपड़े में ढक कर रखते है जिससे ये सप्तधान्य अंकुरित हो जाता है। इस अंकुरित सप्तधान्य को क्षेत्रीय लोकभाषा में “बिरही” कहा जाता है। इस बिरही को एक बड़े झेंझरी ( बाँस की टोकरी) और पलास पत्ता के नव नग दोना में बो करके नवरात्रि व्रत को आरम्भ करते है।
सारा वातावरण भावमय हो जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन से ही माँ शक्ति के यशोगान को लोकगायन (जसगीत) के रूप में लय पूर्वक गाये जाने की परम्परा है।
जसगीत छत्तीसगढ़ लोक जीवन के आस्था का प्रतीक है। इस गीत में माँ भगवती के सिंगार व महिमा का वर्णन किया जाता है।
जस गीत में प्रमुख रूप से जिस लोक वाद्य का प्रयोग होता है उसे “मांदर” कहते है। यह मिट्टी का बड़ा ढोल है जो मृदंग से बड़ा और दोनों और से चमड़े से ढका होता है। एक,दो या अनेक मांदर के साथ जसगीत गाया जाता है। इसके साथ कांसे का बना झाँझ भी होता है जो मंजीरे के आकार का पतला व बड़ा होता है।
जसगीत इतने भाव प्रवाह होते है कि सुनते ही रोम रोम खड़े हो जाते है। जसगीत गाने वाले सेवादल जब नवरात्रि बैठाने वाले घर या मन्दिर के पास आते है तो कलश-जंवारा के सेवा में लगा हुआ पण्डा पानी परछन करके उनको सम्मान पूर्वक आरती उतारते हुए जंवारा स्थान पर लेकर आते है।
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में शक्ति आराधना के इस पर्व को महोत्सव के
रूप में मनाते है।
ग्रामीण क्षेत्रों के सभी देवी मन्दिरों के आलावा घरों में भी ज्योति कलश जलाकर जंवारा बोने की परम्परा है। जिसे “जंवारा बैठाना” भी कहते है।
घर के मुखिया को पण्डा तथा उसकी पत्नी को पंडाइन कहते है।
किसी परिवार में तीन साल -पांच साल तो किसी परिवार में तीन पीढ़ी या पांच पीढ़ी तक जंवारा बोने की प्रथा है।
ज्योति कलश की बत्ती , रुई की बनी हुई रहती है । इसे वेणी की तरह गूँथ कर शुद्ध घी या तेल में ही जलाया जाता है ।
नवरात्रि आरम्भ वाले दिन आवाहित सभी देवी देवताओ का आवाहन पूजन कर प्रधान कलश को जलाने के लिये चकमक गोटा नाम के पत्थर का प्रयोग किया जाता है।( माचिस , लाईटर आदि आधुनिक वस्तुओं का नही)
दो पत्थरों को आपस में रगड़ कर निकले चिंगारी को सेमहल पेड़ के फल से निकली रुई को जलाकर उसके द्वारा कलश को प्रज्ज्वलित किया जाता है। यह कलश अखण्ड 9 दिन रात तक जलता है।
नवरात्रि पर्व की दो तिथियां पंचमी व सप्तमी को बहुत ही शुभ और कल्याण प्रद मानी जाती है।
पंचमी के दिन प्रधान (माई) कलशा के ऊपर कांसे का लोटा रखकर ज्योति को ऊपर उठाया जाता है। जिसे कलशा चढ़ाना कहते है। प्रतीक रूप में यह देवी का सिंगार होता है इस दिन से ही माता के जसगीत में सिंगार को जोड़कर गायन किया जाता है ।
सप्तमी के दिन कलश के ऊपर एक और कलशा चढ़ाया जाता है। अष्टमी के दिन हवन आदि के द्वारा देवी माता के प्रखर आभा को शांत करने की प्रथा है। नवमी के दिन सरवर स्नान की परम्परा है ।
9 दिन तक माता सेवा में मुख्य भूमिका निभाने वाली पंडाइन अपने सिर पर माई कलशा को रखकर बाजे गाजे के साथ जसगीतों की स्वर लहरियों के साथ अन्य दोनो व झेंझरी आदि में बोयें जवारों को घर परिवार के अन्य सुहागिन माताये व कन्याये सिर में रख कर विसर्जन करने तालाब की और कतारबद्ध होकर चल पड़ते है। तालाब में पहुँचकर आराधक जंवारा विसर्जन कर स्वयं सर्वांग डुबकी लगाते हैं। जंवारा के कुछ पौधों को धोकर सम्मान पूर्वक वापस लेकर आते है और एक दूसरे को आदान प्रदान कर परस्पर आत्मीयता प्रकट करते है।
इस तरह से छत्तीसगढ़ के गाँव गाँव में शक्ति आराधना के इस महापर्व नवरात्रि को बहुत ही श्रद्धा भाव पूर्वक धूमधाम से मनाया जाता है।
जय माता की।
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