छत्तीसगढ़ में आई0पी0एस0 अवार्ड की रेवड़ी
छ ग पुलिस विभाग में प्रमोशन और नियुक्ति का खेल गंभीर होता जा रहा
है। विगत कुछ समय से लगातार छ ग राजपत्रित पुलिस अधिकारी संघ ऐसे ही एक व्यक्तिके नियुक्ति संविलयन और पदस्थापनाओं को अलग अलग मंचो पर चुनौति दे रहा है। लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बनी हुई है।
पिछले महीने छ0ग0 से आई0पी0 एस0 अवार्ड होने वाले पुलिस अधिकारियोंकी छ: चयनित अधिकारियों में दो का संबंध बहुत से विवादों से रहा है। छ: की सूची मेंपहले स्थान पर नामित श्री धमेंद्र सिंह छनई दो वर्ष पहले ही मध्यप्रदेश से छ ग पुलिस मेंअचानक शामिल हुए | जब यहां नयी बेच आई०पी०एस० की कतार में शामिल है। इसके पहले उन्हें छ ग आने में भारी समस्या थी लेकिन ips होने के लालच में छत्तीसगढ़ दोड़े चले आये इनको मध्यप्रदेश में भ्रष्ट और धूर्त अधिकारी माना जाता है और
इनके विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मध्यप्रदेश लोकायुक्त में नवम्बर 2018 में अपराध दर्ज हुआ रखा है फिर भी इनका नाम विचारण सूची में रखा जाना आश्चर्यजनक है।
अगर किसी व्यक्ति का 151सी आर पी सी में एक पार चालान भी हो जाता है तो फिर उसको पुलिस विभाग किसी सरकारी सेवा में शामिल होने का पात्र नहीं मानता और यहाँ ऐसे दागी भ्रष्ट और संदिग्य अधिकारी को आईपीएस जैसे सर्वोच्च सेवा के लिए पात्र मानकर उसे केन्द्र में प्रस्तावित कर रहे है। इससे सीधे तौर पर प्रभावित होने वाले अधिकारी में दो तो ऐसे भी है जिनको भविष्य में कभी विचारण भी नहीं किया जा सकेगा। ऐसे में छत्तीसगढ़ राजपत्रित पुलिस अधिकारी संघ माननीय मुख्यमंत्री सहित संभावित मंचों में इसका विरोध कर रहे है।
हमारा चैनल भी उत्तीसगढ़ के स्थानीय कर्मठ अधिकारियों के हक मारे जाने का विरोध करताहै।
इसी सूची में शामिल एक, और अधिकार की तो कथा और महिमा भी
अपार है। फतेपुर, उत्तरप्रदेश के मूल निवासी या पान सिंह नामक यह अधिकारी न तो छ0ग0 न म0प्र0 न पुलिस से संबंधित है बल्कि ये अर्थसनिक कल बीएसएफ के अधिकारी है।ये तो पुलिस ही नही है जिसे आईपीएस बनाने में phq तुला हुआ है।
जो 2010 में छ0ग0 प्रतिनियुक्ति पर आये थे काम था नक्सल मामलों मे छ0ग0 पुलिस कासहयोग करना लेकिन आने के बाद से पीछले 11 वर्षों में ये कभी किसी मेदान या संघर्ष क्षेत्र में जमीनी योजना में शामिल ही नहीं रहे बल्कि जिला मुख्यालय राजनांदगांव में अपने कार्यालय में बैठकर ही तथाकथित रुप से अभियानो को संचालन करते रहे और अपनी
राजनितिक पहुंच और अधिकारियों की चापलूसी के कागजों में बड़े काम कर अपनी तिजोरी भरते रहे अधिकारियों को खुश करते रहे और खुद को पूर्व मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह जी सहगल का रिश्ते में साला बताकर हमेशा
मुख्यालयों में ही डटे रहे और श्रीमती वीणा सिंह का भाई बनकर स्वयं की प्रतिनियुक्ति की तिथियां बढ़वाते रहे और जब केन्द्र से और तिथि बढ़ाने की मंजुरी नहीं मिली तो सीधे संविलियन का रास्ता अपनाया।
यहां से आगे की कहानी बहुत रोचक और सनसनीखेज है इनको तमाम नियम कायदों को ताक में रखकर बीएसएफ से जिसका पुलिस और पुलिस की कार्यविधि से कोई रत्तीभर का भी वास्ता नहीं उसमे से सीचे छत्तीसगढ़ पुलिस में 2010 में शामिल कर लिया गया और नाम दिया गया संविलियन का इसमें भी बहुत आश्चर्यजनक रूप से इनको छाग पीएससी और सामान्य प्रशासन विभाग के लिखित विरोध के बावजुद नियमो के विरुद्ध 2016 में शामिल करते हुए 1997 से पुलिस में शामिल मानने का प्रस्ताव श्री रमन सरकार की केबिनेट से पास करवाया गया, निःसंदेह यह बहुत उच्च स्तर पर राजनैतिक पहुंच, प्रभाव और किसी भी नियम कायदे को ना मानने वाले अधिकारियों एवं नेताओ के गठजोड़ का
परिणाम था।
प्रश्न यह है कि ऐसा क्यो किया गया ? जो व्यक्ति विभाग में शामिल ही
2016 में हुआ उसे 19 साल पहले 1997 का शामिल हुआ क्यो बताया गया ? जबकि तब छत्तीसगढ़ नामक उस प्रदेश का अस्तित्व नहीं था, जिसके पुलिस विभाग में इस अधिकारी को शामिल किया जा रहा था।
उत्तर यह है कि अगले ही साल जोर 2017 में उसी 1997 के मध्यप्रदेश
के बैच के इन अधिकारियों का जो अब वर्तमान छत्तीसगढ़ के अधिकारी है का आईपीएस की चयनित सूची में नाम था, इस तरह केवल एक वर्ष की तथाकथित छत्तीसगढ़ पुलिस की सेवा के बदले बीएसएफ का एक अधिकारी सीधे आईपीएस बन जाता है और फिर वो केन्द्र या कही भी इस सम्मान जनक पद का लाभ लेता। ज्ञातव्य है कि बीएसएफ की स्थापना के आज तक के कुल 55 वर्षों के इतिहास में कभी कोई सहायक कमांडेड (जो यशपाल है।) स्तर काअधिकारी आईपीएस नहीं हुआ।
इस तरह आईपीएस के तमगे के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा को पिछले
दरवाजे की तरह इस्तेमाल करने की कुटिल चाल रची गई। जिसके कैडर में यशपाल सिंह उसके समर्थक उ0प्र0, हरियाणा, पंजाय आदि के उच्चतम पुलिस अधिकारी और छ0ग0 के कुछ प्रभावशाली नेतागण शामिल था। संघ लोकसेवा आयोग जो प्रदेश में उचित अर्हता प्राप्त
कर चुके अधिकारियों को यह अवार्ड देती है। उसने उस समय यसपाल सिंह को पात्र नहीं माना लेकिन उसके समर्थक अधिकारी पुनः उसे यह अवार्ड दिलाने कटिबद्ध है।
कुछ प्रभावशाली नेताओं और वर्तमान सरकार के नेताओं का प्रथप प्राप्त है।यशपाल सिंह के भाई उत्तरप्रदेश कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेता है और उसी के माध्यम से इन्होंने वर्तमान सरकार में भी पहुंच बनाई है और छत्तीसगढ़ के अधिकारियों का हक वंचित कर उस अधिकारी को छत्तीसगढ़ पुलिस सेवा की ओर से आईपीएस दिलाने का प्रयास हो
रहा है जिसने आज दिनांक तक छत्तीसगढ़ प्रदेश के किसी थाने का मुंह नहीं देखा, न कोई जानकारी, न प्रशिक्षण, न परीक्षा दी न ही किसी फिल्ड में रहा जबकि जिन अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ बनने के पूर्व से इस प्रदेश को मिट्टी में अपना खून बहाया और पसीनो से सीचा है उनको वंचित करके एक घुसपैठिये को उपकृत करने का खेल खेला जा रहा है।यहाँ यह भी बताते चले गये कि यशपाल सिंह को जो नक्सल क्षेत्रों में कार्य
किये होने का दावा करते है उनके द्वारा आज तक किसी सफल नक्सल अभियान में भाग नहीं लिया गया आज तक उनके द्वारा कभी किसी नक्सल मुठभेड़ में किसी प्रकार का न तो कोई हथियार जप्त, न ही कभी नक्सली पकड़ा गया है, न ही कभी कोई नक्सली मारा गया है। लेकिन फिर भी किसी न किसी बहाने उनके द्वारा वीरता पदक की मांग की जाती रही। न जाने किस कार्य के लिए। गनीमत की इनकी ऐसी 3 मांग को इनके खुद के विभाग बीएसफ मुख्यालय ने रद्द कर दिया क्योकि वो इनकी लुटेरी और फरेबी फितरत बखुबी वाकिफ है ।मजे की बात है अगर यह छ ग में पुलिस मुख्यालय के हाथ मे होता तो यह भाड़े का टट्टू ,अपने खास चापलूस परस्त अधिकारियो के आशीर्वाद से अपने सीने में ना जाने कितनो ही तमगे लगाए छत्तीसगढ़ियों को मुह चिढ़ाता रहता।
इसलिए इनको भेजकर बीएसएफ ने एक तरह से इनसे मुक्ति ही पायी थी इनकी लुटेरी और शोषक प्रवृत्ति का ही उदाहरण है कि पिछली कार्यकाल में इन्होने लगभग 10 करोड़ की बेनामी सम्पत्ति राजधानी रायपुर के प्रमुख ईलाको,कानपुर,लखनऊ में खड़ी की है इसकी भी शिकायत और जांच संबंधित विभाग में लंबित है आश्चर्य है ऐसे अधिकारी को किस उपादेयता के लिए एसबी द्वारा सोर्स मनी के रूप में पिछले 10 वर्षों से 40000/- (चालीस हजार रुपये)प्रतिमाह भुगतान किया जा रहा है ये इनके द्वारा छत्तीसगढ़ के साथ की जा रही लूट खसोट का ही एक और प्रमाण है।
अभी कुछ दिनो पूर्व ही यशपाल सिंह की पदस्थापना अतिरिक्त पुलिस
अधीक्षक बीजापुर के रूप में की गयी । लेकिन एक पखवाडा बीतने पर भी उनसे मुख्यालय की वातानुकुलित कक्ष छोड़ी नहीं जा रही, जाए भी कैसे पुलिस और फिल्ड का कोई अनुभव जो नहीं है। ड्रायवर के बगल में पूरा जीवन बैठे रहने वाला व्यक्ति भले गाड़ी चलाने की जानकारी जितना रखे लेकिन अनुभव न होने पर उस दुर्घटना करना अवश्यंभावी है यही हाल
यशपाल का आईपीएस तो बनना है लेकिन पुलिस का काम न आता है, नही सीखना है बाकी राजनैतिक और प्रशासनिक आका तो है ही नैया पार लगाने।
छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ियों की भूपेश सरकार के समक्ष छ ग के मातीपुत्र अधिकारियों ने कई बार माथा टेका की उत्तरप्रदेश के इस लुटेरे यशपाल सिंह से बचा लीजिये ।परंतु छ ग के लाल बघेल जी छत्तीसगढ़िय्या अधिकारियों की ही बली चढ़ाकर उपकार का रक्त तिलक कर मानेंगे।