छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

गेंगरिन का सेक्टर नौ हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने किया सफलतापूर्वक इलाज

भिलाई। भिलाई इस्पात संयंत्र के जवाहरलाल नेहरु चिकित्सालय एवं अनुसंधान केन्द्र के डॉक्टरों ने संयंत्र के ब्लास्ट फर्नेस विभाग से सेवानिवृत्त कर्मी गिरीश बिजोरिया की धर्मपत्नी श्रीमती अनिता बिजोरिया के दाहिने पैर में फैल रहे गेंगरिन का सफलतापूर्वक इलाज किया। इसी संदर्भ में श्री बिजोरिया ने श्रीमती बिजोरिया की जख्म के ठीक होने तक के घटनाक्रम और संयंत्र अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा इस दिशा में किए गए उपचार संबंधी योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि मेरे लिए तो संयंत्र का अस्पताल और यहाँ के डॉक्टर्स ईश्वर तुल्य हैं।

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पीडि़ता के जख्म की जानकारी

शाम को श्रीमती जी गमलों में पानी दे रही थीं, उसी दरमियान श्रीमती जी के दाहिने पैर की छोटी दो ऊंगलियों के बीच पंजे पर मुरूम का कण चुभकर अंदर चला गया था। श्रीमती जी को कोई आभास नहीं हुआ क्योंकि उनका पैर का पंजा चेतना शून्य था (सेंस नहीं था) यह मुझे बाद में पता चला। मैंने देखा कि पंजे की दोनों छोटी ऊंगलियों के बीच से पस जैसे निकल रहा था तथा मुरूम के लाल कण भी दिख रहे थे। तब मैंने श्रीमती जी से कहा आपको पैर में चोट लगी है, मुरूम चूभा हुआ दिख रहा है तथा खून की जगह पस भी आ रहा है और आपको कुछ महसूस भी नहीं हो रहा है, यह लक्षण ठीक नहीं लग रहे हंै। यह जानकारी शुगर के पेसेंट के बारे में मैंने किताबों में पढ़ी थी।

संयंत्र चिकित्सालय में त्वरित चिकित्सकीय जाँच

मैं श्रीमती जी को तुरंत सेक्टर-9 हॉस्पिटल में लेकर गया। वहाँ डॉ रमेश सर अपनी ड्यूटी पर उपस्थित थे। जेएलएन चिकित्सालय में चिकित्सकीय जाँच के दौरान यह पता चला कि श्रीमती जी के पैरों में अन्दर गेंगरिन है। डॉ रमेश ने कहा कि बिजोरिया जी मैडम को हमें तुरंत ही भर्ती करना पड़ेगा नहीं तो खतरा बढ़ता जायेगा। हम भर्ती होने की सोच में नहीं आए थे पर हमें तुरंत उन्हें एच-3 वार्ड में भर्ती करना पड़ा। डॉ रमेश का मैंने दिल से शुक्रिया किया कि इतने कम समय में ही उन्होंने बीमारी की जानकारी ढूंढ निकाली उस समय मेरे लिए डॉ रमेश सर ईश्वर से कम नहीं लग रहे थे।

गेंगरिन का इलाज चुनौतीपूर्ण

श्री बिजोरिया ने बताया कि श्रीमती जी को डॉ रमेश की सलाह पर एच-3 में भर्ती किया गया। त्वरित इलाज प्रारंभ करते हुए मरीज के दाहिने पैर के पंजे में चीरा मार कर पस निकालने का कार्य शुरू किया गया। यह प्रक्रिया कुछ दिनों तक चलती रही। श्री बिजोरिया ने बताया कि डॉक्टरों के अनुसार श्रीमती जी के दाहिने पैर में गेंगरिन हुआ है जो अन्दर तक फैला हुआ है। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए श्री बिजोरिया के अनुसार डॉक्टरों द्वारा श्रीमती जी के दाहिने पैर को शायद घुटने के पास से काटना पड़ सकता है, क्योंकि गेंगरिन अन्दर तक फैला हुआ था। श्री बिजोरिया पैर काटने के पक्ष में बिल्कुल ही तैयार नहीं थे और सभी सर्जनों से अनुरोध करते रहे कि पैर किसी भी तरह के ट्रीटमेंट से बचा लें भले ही कितना लम्बा समय क्यों न लग जाए। मेरे अनुरोध पर चीरा मार कर पस को ड्रेन किया जाता रहा। यह सिलसिला काफी महीनों तक चला।

डॉ योगेश एवं डॉ रमेश एवं उनकी टीम द्वारा चिकित्सा

श्री बिजोरिया बताते हैं कि चिकित्सकीय उपचार के दौरान डॉ योगेश और डॉ रमेश ने यह निर्णय लिया कि सिर्फ पंजा ही काटा जाए तथा उसकी प्लास्टिक सर्जरी की जाए। तत्पश्चात् डॉ उदय कुमार एवं डॉ साहू की टीम ने श्रीमती जी के दाहिने पैर का पंजा ऊँगली साइड से काटकर ग्राफ्टिंग और प्लास्टिक सर्जरी की। इस तरह से ऑपरेशन की प्रक्रिया पूर्ण हुई और एच-3 वार्ड में मैडम को रखा गया, जहाँ समुचित चिकित्सा उपचार मिला।

अस्पताल से डिस्चार्ज

अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद हर सप्ताह सेक्टर-9 हास्पिटल डॉ उदय कुमार और डॉ साहू के पास उपचार हेतु जाना पड़ता था। यह सिलसिला करीब 6 माह तक जारी रहा। तत्पश्चात् हमें सर्जिकल, प्लास्टिक सर्जरी, मेडिसिन तीनों ओपीडी में माह में एक बार उपचार के लिए वर्ष 2018 तक जाना पड़ा। इस दौरान पंजे में जहाँ प्लास्टिक सर्जरी की गई थी उसे शेप में लाने के लिए 20-20 टाँके लगाये गये। उपचार के दौरान श्री बिजोरिया की तीनों बेटियाँ अपर्णा, सोनाली और रूपाली ने अपनी माँ की खूब सेवा की। जिसकी वजह से यह जंग जीत पाए। हम सभी की यही जिद्द थी कि पेसेन्ट पूर्ण रूप से ठीक हो और वह अपने से चल सके। इसी के कारण डॉ उदय कुमार, डॉ साहू, डॉ योगेश, डॉ रमेश और मेडिसिन के डॉ प्रमोद विनायके भी जिद्द में थे और विभिन्न तरीकों से घाव को पूर्ण करने के प्रयास में लगे रहे। श्री बिजोरिया बताते हैं कि वर्ष 2018 तक और उसके बाद कभी भी श्रीमती जी को अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता नहीं पड़ी और गेंगरिन को जड़ से निकालने में सभी का प्रयास सफल हुआ।

ऑपरेशन के दौरान खून की व्यवस्था

श्री बिजोरिया बताते हैं कि श्रीमती के पैर के पंजे के ऑपरेशन हेतु करीब-6 बॉटल खून की आवश्यकता थी। तत्कालीन महाप्रबंधक ब्लास्ट फर्नेस श्री एच एन राय ने ब्लड की व्यवस्था करने में सहायता करते हुए विभाग के श्री आनंद और श्री तिवारी को ब्लड डोनेट करने के लिए भेजा।

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