कहां और कब कैसे बोले जानिए -ज्योतिष* बोलने से लाभ हो, तभी बोलें व्यर्थ में अपनी शक्ति और समय नष्ट न करें
*कहां और कब कैसे बोले जानिए -ज्योतिष* बोलने से लाभ हो, तभी बोलें व्यर्थ में अपनी शक्ति और समय नष्ट न करें।
ईश्वर ने हमें सोचने के लिए मन दिया है। निर्णय लेने के लिए बुद्धि दी है। बोलने के लिए वाणी दी है। और कार्य करने के लिए शरीर में शक्ति भी दी है। यह सब ईश्वर ने हमें इसलिए दिया है कि हम इन सब वस्तुओं का सदुपयोग करें, दुरुपयोग न करें। जब किसी विषय पर चिंतन करना आवश्यक हो, तो उस पर चिंतन अवश्य करें, इसके लिए मन दिया।यदि कोई विषय हमारे लिए आवश्यक नहीं है, तो उस पर विचार न करें, अन्यथा हमारा समय और शक्ति व्यर्थ नष्ट होगी।
जिस विषय में निर्णय लेना आवश्यक हो, पूरा सोच विचार करके बुद्धिमत्ता से उसका निर्णय लेवें। निर्णय लेने में जल्दबाजी भी न करें, और अधिक लंबा समय भी न लगाएं। सही निर्णय लेवें, गलत नहीं। तो यह बुद्धि का सदुपयोग माना जाएगा।
इसी प्रकार से जब हम बोलते हैं, तो जिसके साथ बात कर रहे हैं, उस व्यक्ति के विषय में खूब सोच विचार कर, उसके साथ बात करें। यदि बात करने से कुछ लाभ होता हो, कुछ अच्छा परिणाम निकलता हो, तो ही बात करें, अन्यथा बात न करें।
अनेक बार हम अपनी बात कहते हैं, सामने वाला व्यक्ति हमारी बात पर ध्यान नहीं देता, हमारी बात का मूल्य नहीं समझता, हमारी बात की उपेक्षा करता है, हमें मूर्ख समझता है, हठ करता है, अच्छी और सही बात समझाने पर भी मानने को तैयार नहीं है। यदि हमें ऐसा लगता है, तो उसके साथ बात करना व्यर्थ है। वहां मौन रहना ही उचित है व्यर्थ बोलकर अपना समय और शक्ति नष्ट नहीं करनी चाहिए।
इसी प्रकार से कभी-कभी इसके विपरीत भी होता है। कुछ लोग इतने सरल बुद्धिमान सत्यग्राही एवं विनम्र होते हैं, कि यदि उनसे कभी कोई गलती हो भी जाए, और उनकी ओर आप केवल मात्र दृष्टि से देखभर लेवें, तो इतने ही से वे अपनी गलती समझ लेते हैं, स्वीकार भी कर लेते हैं। आँखों के संकेत से वे क्षमा याचना भी कर लेते हैं। और आगे न करने का आश्वासन भी आँखों से ही दे देते हैं। तो ऐसी स्थिति में भी बोलने की आवश्यकता नहीं है। वहाँ पर भी मौन रहना ही उचित है। इसे आध्यात्मिक भाषा में मौन उपदेश कहते हैं।
-ज्योतिष कुमार (सबका संदेश डॉट कॉम)