नरवा,गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना से मिल रही जैविक खेती को मजबूती

धमधा और दुर्ग में महिला स्वसहायता समूह कर रहे हैं जैविक कीटनाशक तैयार
दुर्ग। नरूवा, गरूवा, घुरूवा बाड़ी योजना के माध्यम से हमारा प्रदेश जैविक खेती की दिशा में आगे बढ रहा है। सही मायनों में जैविक खेती ही सस्टेनेबल एग्रीकल्चर के एकमात्र उपाय के रूप में सामने आया है। जिसमें गौठानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। गौठानों में स्थापित वर्मी कम्पोस्ट टैंक, नाडेप टैंक, अजोला टैंक में जैविक खाद बन रही। जिसका उपयोग खेतों और बाडिय़ों में किया जा रहा है। कृषि, पशुपालन, उद्यानिकी और पंचायत विभाग के समन्वय से यह कार्य हो रहा है। ग्रामीण अंचलों में लोगों को खासकर महिलाओं को आजीविका मिल रही है। लगभग 18 महीनों की मेहनत अब नजर आने लगी है। गौठानों में निर्मित जैविक खाद से लेकर जैविक कीटनाशक भी ट्रेंड कर रहे हैं। जैविक खेती से फल.सब्जी और अनाज न केवल अधिक स्वादिष्ट हैं बल्कि उनमें पोषक गुण भी भरपूर हैं। किसान जैविक खेती का महत्व समझ चुके हैं और उपभोक्ता जैविक उत्पादों का। ऐसे में जैविक उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार तैयार हो रहा है।
इसलिए जिला पंचायत दुर्ग द्वारा बिहान योजना के तहत स्व:सहायता की महिलाओं को जैविक खेती का महत्व सिखाते हुए जैविक खाद और जैविक कीटनाशक बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिले के धमधा ब्लॉक के 30 ग्राम पंचायतों और दुर्ग ब्लॉक के चंदखुरी ग्राम पंचायत में महिलाओं द्वारा जैविक कीटनाशक बनाया जा रहा है। आने वाले कुछ दिनों में पाटन ब्लॉक में भी महिलाओं को इसके लिए प्रशिक्षण देकर उत्पादन शुरू करने की योजना है।
बिहान की संवहनीय कृषि सस्टेनेबल एग्रीकल्चर परियोजना के तहत महिलाओं को खेती से जुड़े जैविक उत्पादों को तैयार करने का प्रशिक्षण दिया जाता है वहीं महिला किसान सशक्तिकरण योजना के माध्यम से महिला किसानों को सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। बिहान योजना के तहत धमधा और दुर्ग जनपद पंचायत ने स्व सहायता समूहों को जैविक कीटनाशक बनाने का प्रशिक्षण दिया गया एआज धमधा में 30 और दुर्ग के चंदखुरी में समूह जैविक कीटनाशक बनाकर विक्रय किया जा रहा है। किसानों के बीच इसकी अच्छी मांग है। एक तरफ जैविक खाद व कीटनाशक से जमीन की उर्वरता बढ़ रही है दूसरी ओर उत्पादित भोज्य सामग्री की पौष्टिकता में भी वृद्धि हो रही। यह मानव स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी अच्छा है। सभी किसानों का मानना है कि जैविक खेती ही भविष्य की खेती है। जैविक कीटनाशक से उनकी फसल भी सुरक्षित रहती है और पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
जैविक खाद बेचकर कमाए 6.50 लाख रुपए. जिले के गौठानों में मनरेगा के तहत 1147 नाडेपए 1093 वर्मी कम्पोस्ट और 1007 अजोला टंकियों में बन रही है जैविक खाद बनाई जा रही है। महिलाओं ने वर्मी कम्पोस्टए गोबर खादए अजोला आदि विक्रय कर करीब 6ण्50 लाख रुपए कमाए हैं। वहीं मनरेगा के तहत निर्मित सामुदायिक बाडिय़ों में ओर्गेनिक सब्जियां उगाकर भी महिलाओं ने अच्छी आमदनी अर्जित की है। लॉक डाउन में शासन की मुस्तैदी के कारण हर हाथ को रोजगार मिला है।