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भारत देश में है 1 ऐसा गुरुद्वारा जहां कभी नहीं बनता लंगर, लेकिन फिर भी कभी भूखे नहीं रहते लोग

देश में है एक ऐसा गुरुद्वारा जहां कभी नहीं बनता लंगर, लेकिन फिर भी कभी भूखे नहीं रहते लोगकैच ब्यूरो|

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर और गुरुद्वारा है जो ना जाने कितने ही रहस्यों को छुपाए हुए है. आज हम आपको ऐसे ही एक रहस्यमयी गुरुद्वारे के बारे में बताएंगे जहां पर कभी लंगर नहीं बनता ना ही कोई गोलक है इसके बावजूद भी यहां कोई भूखा नहीं रहता है.

जी हां चंडीगढ़ के सेक्टर-28 स्थित गुरुद्वारा नानकसर की है. इस गुरुद्वारे पर न तो लंगर बनता है और नहीं गोलक है. यहां संगत अपने घर से बना लंगर लेकर आती है.जानकारी के मुताबिक लंगर में देसी घी के पराठें, मक्खन, कई प्रकार की सब्जियां और दाल , मिठाइयां और फल संगत के लिए रहता है.
संगत के लंगर खाने के बाद जो बच जाता है उसे सेक्टर-16 और 32 के अस्पताल के अलावा पीजीआई में भेज दिया जाता है, ताकि वहां पर भी लोग प्रसाद ग्रहण कर सकें. ऐसा की वर्षों से होता आ रहा है.देश में है एक ऐसा गुरुद्वारा जहां कभी नहीं बनता लंगर, लेकिन फिर भी कभी भूखे नहीं रहते लोगकैच ब्यूरो| 

हमारे देश में कई ऐसे मंदिर और गुरुद्वारा है जो ना जाने कितने ही रहस्यों को छुपाए हुए है. आज हम आपको ऐसे ही एक रहस्यमयी गुरुद्वारे के बारे में बताएंगे जहां पर कभी लंगर नहीं बनता ना ही कोई गोलक है इसके बावजूद भी यहां कोई भूखा नहीं रहता है.

जी हां चंडीगढ़ के सेक्टर-28 स्थित गुरुद्वारा नानकसर की है. इस गुरुद्वारे पर न तो लंगर बनता है और नहीं गोलक है. यहां संगत अपने घर से बना लंगर लेकर आती है.जानकारी के मुताबिक लंगर में देसी घी के पराठें, मक्खन, कई प्रकार की सब्जियां और दाल , मिठाइयां और फल संगत के लिए रहता है.

संगत के लंगर खाने के बाद जो बच जाता है उसे सेक्टर-16 और 32 के अस्पताल के अलावा पीजीआई में भेज दिया जाता है, ताकि वहां पर भी लोग प्रसाद ग्रहण कर सकें. ऐसा की वर्षों से होता आ रहा है.

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बताते चलें कि गुरुद्वारा नानकसर का निर्माण दिवाली के दिन हुआ था. चंडीगढ़ स्थित नानकसर गुरूद्वारे के प्रमुख बाबा गुरदेव सिंह के मुताबिक इस गुरुद्वारे के निर्माण के हो गए हैं.ये गुरूद्वारा पौने दो एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. इस गुरुद्वारे में लाइब्रेरी भी है, यहां पर दातों का फ्री इलाज होता है, एक लैब भी है. हर वर्ष मार्च में वार्षिक उत्सव होता है. वार्षिकोत्सव सात दिनों का होता है.

लोग देश-विदेश से संगत में शामिल होने आते हैं. इस दौरान एक विशाल रक्तदान शिविर का आयोजन होता है. कहा जाता है कि यहां पर गोलक इसलिए नहीं है कि कोई झगड़ा न हो. मांगने का काम नहीं है, सेवा करने वाले लोग यहां आते हैं.

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