MSP पर सरकार और किसान संगठनों के दावे अलग-अलग क्यों हैं? – What is C2 formula to decide MSP-Minimum Support Prices-CACP-modi government-ministry of agriculture-dlop | business – News in Hindi

देश के 62 किसान संगठनों के समूह राष्ट्रीय किसान महासंघ ने हर राज्य की मुख्य फसलों की वास्तविक लागत मूल्य खुद निकालकर उसके आंकड़े पीएमओ और कृषि मंत्रालय को भेजने का फैसला किया है. इसके बाद भी दाम नहीं बढ़ाया गया तो वो फसल लागत के सरकारी आंकड़ों को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेगा.
महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद कहते हैं कि फसलों की लागत तय करने का सरकारी फार्मूला ठीक नहीं है. सरकार लागत को बहुत कम दिखाती है जबकि किसान को उससे कहीं ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. असली सवाल यही है कि सरकार लागत किस आधार पर तय कर रही है.

फसल लागत के सरकारी आंकड़ों चैलेंज करेंगे किसान
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री सोमपाल शास्त्री (Sompal Shastri) भी न्यूज़18 हिंदी से बातचीत में कह चुके हैं कि केंद्र सरकार किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं दे रही. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को उसकी मूल भावना के साथ लागू नहीं किया गया है. असल में किसानों को सी2+50 प्रतिशत लाभ के फार्मूले से एमएसपी देने की जरूरत है. जिसमें खाद, पानी, बीज, दवा, मशीन की मरम्मत और उसके पारिवारिक श्रम आदि की भी लागत जुड़ती है.
लागत में इतना अंतर कैसे?
मोदी सरकार ने 1 जून को जो एमएसपी घोषित की है उसमें 2020-21 के लिए प्रति क्विंटल लागत 1,245 रुपये बताई गई है. जबकि फरवरी 2029 में ही केजरीवाल सरकार ने लागत की गणना कुछ और ही की थी. उसके मुताबिक प्रति क्विंटल धान की पैदावार पर लागत 1778 रुपये आ रही थी. आखिर लागत में इतना अंतर कैसे हो सकता है.
कौन तय करता है समर्थन मूल्य
केंद्र सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर कुछ फसलों के बुवाई सत्र से पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है. इससे किसानों को यह सुनिश्चित किया जाता है कि बाजार में उनकी फसल की कीमतें गिरने के बावजूद सरकार उन्हें तय न्यूनतम समर्थन मूल्य देगी. इसके जरिए सरकार उनका नुकसान कम करने की कोशिश करती है.
एमएसपी तय करने का आधार
कृषि लागत और मूल्य आयोग न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश करता है. वह कुछ बातों को ध्यान में रखकर दाम तय करता है.
– उत्पाद की लागत क्या है.
– फसल में लगने वाली चीजों के दाम में कितना बदलावा आया है.
– बाजार में मौजूदा कीमतों का रुख.
– मांग और आपूर्ति की स्थिति.
-राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्थितियां कैसी हैं
…तो फार्मूला सटीक कैसे
कहीं का किसान अपनी फसल में ज्यादा खाद और दवा डालता है और कहीं पर बहुत कम, ऑर्गेनिक खेती करने वाला किसान खाद नहीं खरीदता. एक ही फसल की लागत किसी प्रदेश में ज्यादा तो किसी में कम हो सकती है इसलिए कोई भी फार्मूला सटीक नहीं हो सकता.

धान का एमएसपी 1868 रुपए तय किया गया है
फसल लागत निकालने के तीन फार्मूले
ए-2: किसान की ओर से किया गया सभी तरह का भुगतान चाहे वो कैश में हो या किसी वस्तु की शक्ल में, बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई का खर्च जोड़ा जाता है.
ए2+एफएल: इसमें ए2 के अलावा परिवार के सदस्यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना भी जोड़ा जाता है.
सी-2 (Comprehensive Cost): यह लागत ए2+एफएल के ऊपर होती है. लागत जानने का यह फार्मूला किसानों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. इसमें उस जमीन की कीमत (इंफ्रास्ट्रक्चर कॉस्ट) भी जोड़ी जाती है जिसमें फसल उगाई गई. इसमें जमीन का किराया व जमीन तथा खेतीबाड़ी के काम में लगी स्थाई पूंजी पर ब्याज को भी शामिल किया जाता है. इसमें कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है.
हालांकि, डबलिंग फार्मर्स इनकम कमेटी (DFI-doubling farmers income) के सदस्य विजय पाल तोमर ने न्यूज18 हिंदी से कहा कि कोई कुछ भी कहे सरकार तो सी2+50 प्रतिशत फार्मूले से ही फसलों का एमएसपी दे रही है. जो लागत तय करने का फार्मूला है वो आजादी के बाद से चल रहा है. उसके ऊपर स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर 50 फीसदी और उससे अधिक मुनाफा तय करके सरकार एमएसपी दे रही है.
बीजेपी से राज्यसभा सदस्य तोमर ने कहा कि मोदी सरकार से पहले किसान को उसकी फसल का इतना मुनाफा नहीं मिलता था.
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