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अपनो की याद आती हैं ये सीमाएं रुलाती है

अपनो की याद आती हैं ये सीमाएं रुलाती है

बागनदी बार्डर से लौटकर सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-

डोंगरगढ- इस कोरोना महामारी ने जहां एक ओर पूरी देश और दुनिया को हिलाकर रख दिया है तो वहीं दूसरी ओर अपनो को अपनों से जुदा कर दिया है। अपने परिवार के अच्छे भविष्य एवं लालन पालन के लिए अपनों से जुदा होकर मुंबई, सूरत,

 

 

हैदराबाद जैसे बड़े बड़े शहरों में कोई अपने परिवार के साथ तो कोई अपने परिवार से दूर होकर रोजी रोटी के जुगाड़ में जाने वाले आज अपने ही परिवार से मिलने की चाह में दर दर भटक रहे हैं। कोई बसों व ट्रेनों के चक्कर लगा रहा है तो कोई सरकारी दफ्तरों के आखिर कोई तो उनकी पुकार सुन ले और उन्हें उनके अपनों से मिला दे।

छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा पर बने चेकपोस्ट बागनदी पर इन दिनों कुछ इसी तरह के हालात हैं मुंबई, पुणे, नागपुर सहित अन्य महानगरों व राज्यों से जैसे तैसे शासन की निशुल्क बस सेवा के माध्यम से महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सीमा बागनदी तक पहुंचने वाले मजदूर व उनके परिवार अब छत्तीसगढ़ सरकार की ओर उम्मीदों से निहार रहा है कि अब वे अपनो से मिल पायेंगे। इन मजदूरों में छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों के अलावा उड़ीसा, झारखंड,पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों के मजदूर भी शामिल है।

प्रवासी मजदूरों के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा की गई व्यवस्थाओ की जमीनी हकीकत जानने सबका संदेश के संवाददाता बागनदी बार्डर पहुंचे और प्रवासी मजदूरों से बातचीत की तो पता चला कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा उन्हें निशुल्क बस सेवा के माध्यम से भोजन के पैकेट के साथ छत्तीसगढ़ की सीमा में लाकर छोड़ दिया गया है और यहाँ पर भी उन्हें भोजन के पैकेट मिल रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भी निशुल्क बस सेवा के माध्यम से डोंगरगढ रेलवे स्टेशन तक लाकर छोड़ा जा रहा है और यहां से श्रमिक स्पेशल ट्रेन के माध्यम अन्य शहरों व राज्यों की सीमा तक छोड़ा जा रहा है।

कोई पैदल तो कोई सायकल में- चूंकि बसों की संख्या कम और मजदूरों की संख्या अधिक है इसलिए बार्डर पर अफरा तफरी का माहौल है हर कोई जल्दी से जल्दी अपने घर पहुँचना चाहता है इसलिए कोई ज्यादा देर इंतजार नहीं करना चाहता परिणामस्वरूप बस में नम्बर नहीं लगने पर कई मजदूर पैदल ही अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े हैं।
इसी बीच कुछ लोग ऐसे भी मिले जो महाराष्ट्र भंडारा में काम करने गये थे लेकिन कोरोना ने उन्हें अपनों की याद दिला दी जिसके बाद उन्होंने ऑनलाइन आवेदन किया किन्तु कोई जवाब नहीं मिलने पर आखिरकार उन्होंने सायकल यात्रा करना ही उचित समझा और निकल पड़े भंडारा से उड़ीसा की लंबी यात्रा पर। कुछ परिवार ऐसे भी मिले जिनके साथ महिलाएं व छोटे बच्चे भी थे लेकिन उनका बस में आज नम्बर नहीं लगा कल लगेगा इसलिए वे पैदल ही निकल पड़े जिन्हें सबका संदेश के संवाददाता द्वारा समझाईश देकर वापस बागनदी चेक पोस्ट भेजा गया।

 

 

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