अगर ये कदम उठाया गया तो खत्म हो जाएगी ईरान और अमेरिका के बीच तनातनी!_america and iran tension can end if they agreed to finlandization knowat | nation – News in Hindi
दूसरी बार हुई गलती
इस तरह की गलती ईरान से दूसरी बार हुई है. कुछ महीने पहले भी ईरान ने एक यात्री विमान पर निशाना लगाया था. इस हमले में 169 मासूम ईरानी सैनिकों की मौत हो गई थी. दरअसल कोरोना वायरस की त्रासदी और कराहती अर्थव्यवस्था के बीच ईरान हड़बड़ाहट में कदम उठा रहा है. दूसरी तरफ अमेरिका की तरफ से भी लगातार निशाने साध रहे जा रहे हैं. परिस्थितियां ऐसी बन गई हैं कि दोनों देशों के बीच कभी भी सशस्त्र संघर्ष वाले हालात खड़े हो सकते हैं. लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि ईरान और अमेरिका के बीच ये लंबी तनातनी का दौर खत्म भी हो सकता है. अमेरिका की प्रतिष्ठित फॉरेन पॉलिसी मैगजीन के एक लेख में इसके लिए रास्ता सुझाया गया है.
ईरान ने सैन्य अभ्यास के दौरान गलती से अपने ही जहाज पर मिसाइल दाग दी है.
प्रतिबंधों के पक्ष में अमेरिकी सीनेटर
बीते सप्ताह अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में ज्यादातर सीनेटर इस बात पर सहमत हो गए थे कि ईरान के पारंपरिक हथियारों पर लगाए गए प्रतिबंध को जारी रखना चाहिए. ईरान के इन हथियारों पर पहले से प्रतिबंध लगे हुए हैं. आगामी अक्टूबर महीने में इस प्रतिबंध पर दोबारा विचार किया जाना है. डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने ईरान पर अत्यधिक दबाव बनाने की रणनीति बनाई हुई है. लेकिन इस नीति के साथ समस्या ये है कि अमेरिका एक बार फिर मिडिल ईस्ट में युद्ध के दायरे में आ सकता है. संभव है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का जवाब ईरान सीधे हमला करके दे. इसका इशारा ईरान कासिम सुलेमानी की मौत के बाद यात्री विमान पर हमला करके दे चुका है. हालांकि उस वक्त ईरान का दांव गलत पड़ा और उसे आलोचना झेलनी पड़ी. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इराक में मौजूद अमेरिकी सैनिकों को ईरान निशाना बना सकता है.
ईरान के हथियारों को लेकर डर!
अमेरिका को ये भय है कि अगर ईरान के पारंपरिक हथियारों पर से प्रतिबंध हटाए गए तो वो इराक, सीरिया और लेबनॉन में हथियार सप्लाई कर सकता है. इससे इन इलाकों में अशांति बढ़ सकती है. गौरतलब है कि ईरान पूरी दुनिया के शिया समुदाय का खुद को नेता मानता है. इराक दुनिया में सबसे ज्यादा शिया आबादी वाला देश है. सद्दाम हुसैन के सत्ता से जाने के बाद इराक में प्रभुत्व के लिए ईरान हमेशा सक्रिय रहा है. जबकि अमेरिका भी सद्दाम को सत्ता से हटाने के बाद यहां पर तकरीबन दो दशक से लगातार सक्रिय है. अमेरिका का ये भी मानना है कि ईरान पर प्रतिबंध हटाए जाने से वो परमाणु कार्यक्रम फिर से शुरू कर देगा. पारंपरिक हथियारों में पहले से मजबूत ईरान के पास अगर परमाणु हथियार भी आ जाते हैं तो उसकी सामरिक शक्ति में बेतहाशा इजाफा होगा. साथ ही अमेरिका जैसे देश को उसे रोकना भी मुश्किल होगा.
सद्दाम हुसैन
कर सकते हैं ये उपाय
लेकिन अगर अमेरिका और ईरान दोनों ही एक बात पर सहमत हों तो ये स्थिति सुधर सकती है. दरअसल इराक पर प्रभु्त्व की होड़ में अमेरिका और ईरान में ठनी हुई है. अगर दोनों ही देश इराक पर इस घातक होड़ को समाप्त कर दें तो स्थितिया सुधर सकती है. फॉरेन पॉलिसी के लेख में इसे Finlandize कहा है.
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के समय सोवियत के साथ फिनलैंड की सीमा लगती थी. सोवियत ने फिनलैंड से अपनी सुरक्षा के लिए सीमाओं के अधिकार मांगे. लेकिन फिनलैंड तैयार नहीं हुआ. वहां की सरकार की तरफ से कहा गया है कि हम युद्ध लड़ने के लिए तैयार हैं लेकिन अपने देश की स्वतंत्रता के साथ समझौता नहीं कर सकते. छोटे से देश फिनलैंड के साथ सोवियत का युद्ध हुआ. इसे विंटर वार के नाम से जाना जाता है. इस युद्ध में सोवियत को बड़ा खामियाजा उठाना पड़ा. युद्ध में लाखों की संख्या में सोवियत सैनिक मारे गए. आखिरकार सोवियत का फिनलैंड के साथ समझौता हुआ.
इसमें तय हुआ कि सोवियत कभी भी फिनलैंड की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करेगा. साथ ही फिनलैंड ने भी सोवियत को भरोसा दिया कि वो अपनी जमीन का इस्तेमाल उसके खिलाफ नहीं होने देगा. इसे ही इतिहास में Finlandization के नाम से जाना जाता है. कुछ ऐसा ही फैसला आगे चलकर अमेरिका, सोवियत, ब्रिटेन और फ्रांस ने ऑस्ट्रिया के संदर्भ में लिया था. बाद में जब अमेरिका और सोवियत में लंबा कोल्ड वॉर हुआ तब भी फिनलैंड और ऑस्ट्रिया को न्यूट्रल क्षेत्र माना गया. यानी दोनो ही पक्षों की तरफ से इन देशों को किसी पक्ष में शामिल करने का दबाव नहीं डाला गया.
इराक में प्रभुत्व की जंग खत्म करनी होगी
अब अमेरिका और ईरान के बीच भी कुछ ऐसा ही इराक को लेकर होना चाहिए. इराक में अमेरिकी सेना लंबे समय से मौजूद है. वहीं ईरान भी यहां पर कई अतिवादी समूहों को हथियार मुहैया कराता है. अब इन दोनों ही देशों को इराक की सीमाओं का सम्मान करना चाहिए. ये इराक पर छोड़ देना चाहिए कि वो किस तरह से अपना भविष्य देखता है. हालांकि ये सच है कि सद्दाम के जाने के बाद इराक में नेतृ्त्व की कमी आई है. अस्थिरता ने देश को घेर रखा है. लेकिन अमेरिका और ईरान के बीच चल रही रस्साकशी ने इस देश की हालत और खराब कर दी है.
इराक में स्थिरता अमेरिका और ईरान के संबंधों को बेहतर बना सकती है
साथ ही दोनों देशों को इस बात पर भी काम करना चाहिए कि इराक से सेना हटाई जाए. गौरतलब है कि ईरान ने इराक में सीधे तौर पर तो अपनी सेना नहीं लगाई है लेकिन ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के लड़ाके इराक में हमेशा इन्वॉल्व रहते हैं. साथ ही अमेरिका और ईरान को कोशिश करके बाहर से ही मदद देनी चाहिए. ऐसी स्थितियों में अगर इराक की स्थितियां सामान्य होंगी तो अमेरिका और ईरान के बीच भी तनाव के हालात कम होते जाएंगे.
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