लॉकडाउन में मजदूरों की दुर्दशा को दूर करने और श्रमिक अधिकारों की रक्षा के लिए आरपी शर्मा ने लिखा पीएम को पत्र
भिलाई। आचार्य नरेंद्र देव स्मृति जन अधिकार अभियान समिति के संयोजक एवं समाजवादी जनता पार्टी चन्द्रशेखर के प्रदेश अध्यक्ष आर पी शर्मा ने कोरोना महामारी के दौर में मजदूर वर्ग की दुर्दशा को दूर करने और श्रमिक अधिकारों की रक्षा के लिए देश के प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। श्री शर्मा ने पत्र में उल्लेखित करते हुए कहा है कि कोरोना की वैश्विक महामारी के चलते भारत के 28 राज्यों एवं 9 केंद्र शासित प्रदेशों में मजदूर वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित और प्रताडित हो रहा है। कोरोना महामारी को लेकर आम जनता भय व्याप्त है। जरूरत इस जनमत को भय से निकालने की है। एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जीवन यापन के लिए एवं राष्ट्र की अधोसंरचना के निर्माण में सहभागिता दे रहा कुशल,अर्धकुशल, कामगार एवं दिहाडी मजदूर का करोडों की संख्या में एक विशाल समूह है। इस वर्ग की जो दुर्दशा आज हमारे देश के पटल पर देखने को मिल रही, वह अमानवीय है। सरकार का दायित्व बनता है कि विपत्ति की इस घड़ी में धैर्य और संयम का परिचय दे। जो मजदूर विभिन्न प्रांत में गए हैं, उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने और हालात सामान्य होने तक उन्हें अस्थाई रोजगार दिलाने की जवाबदारी सरकार की है। कोरोना महामारी के दौर में जो हाल मजदूरों का देखने मिला उसकी मिसाल इतिहास में दूसरी नहीं मिलती है। आज यह कामगार भयावह अव्यवस्था के शिकार हो गए हैं और उनके कार्यस्थल पर फैक्ट्री मालिक एवं अन्य व्यवसाय के मालिक न पैसा द रहे हैं न ही काम में रख रहे हैं। ना ही भोजन-स्वास्थ्य परीक्षण की व्यवस्था कर रहे हैं।
केंद्र सरकार विदेशों में फंसे भारतीय नागरिकों को तो हवाई जहाज में वंदे भारत मिशन चला कर वापस ला रही है लेकिन बेबस एवं लाचार मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी के लिए अब तक कोई ठोस योजना सामने नहीं आ पाई है। इससे मजदूरों के भी दिल में यह बात बैठ गई कि राज्य और केंद्र की सरकारें अमीरों की है, गरीबों की नहीं। ऐसी परिस्थिति में भूखे-प्यासे इन मजदूरों ने महात्मा गांधी का तरह रास्ता अपनाया। जिसमें माताएं-बहनें एवं बच्चे-बुजुर्ग पैदल ही निकल पड़े। इनमें बहुत से श्रवण कुमार जैसे पुत्र अपने माता एवं पिता को पीठ पर लादे भी चल रहे हैं। यह बेहद दुखद है कि इनमें से कुछ लोग तो सुरक्षित पहुंच रहे हैं लेकिन कुछ रास्ते में ही दम तोड़ रहे हैं। औरंगाबाद का हादसा 16 मजदूरों की बेबसी कहिए या उस पर सरकारी तंत्र की बेरुखी। आरोप प्रत्यारोप अपनी जगह लेकिन जिस परिवार का सदस्य चले गया वो तो वापस नहीं आ सकता। अजीब विडंबना देखने में आई कि जो मजदूर घर जाना चाहते हैं उनसे ऑन लाइन फार्म भरने कहा गया उसमें भी आर्थिक हेराफेरी सामने आई है। मुंबई, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान एवं अन्य प्रदेशों में भूखे मजदूरों पर पुलिस द्वारा लाठी भांजी गई एवं आंसू गैस छोड़ा गया। निहत्थे मजदूर पर बर्बरता का दर्दनाक दृश्य पूरे देश में देखने को मिला। आज लोग जानना चाहते हैं कि केंद्र एवं राज्य सरकार ने यह आदेश क्यों पारित नहीं किए कि मजदूरों से जो संस्थान/मिल/कारखाना कार्य करवाते थे उनके द्वारा दैनिक वेतन भोगी एवं उनकी घर वापसी की व्यवस्था क्यों नहीं करवाई गई? इस वजह से भी मजदूरों में कोरोना महामारी का भय व्याप्त हुआ है। अगर अभी इन सब बातों का ध्यान नहीं रखा गया तो भविष्य और भी भयावह परिस्थिति निर्मित होगी, जब आज किसी तरह अपने घरों को लौटने वाले मजदूर सामान्य परिस्थिति में वापस अपने काम के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करेंगे।
हमारी मांग है कि राज्य सरकार मजदूरों के मामले में गंभीरता बरते। इन मजदूरों के सारे रिकार्ड सरकारी स्तर पर रखे जाएं। इसके लिए राज्य सरकारों को भी इन मजदूरों का उनका लेखाजोखा रखना चाहिए। हम यह बात इसलिए कह रहे हैं कि राज्य सरकारों ने मजदूरों की घर वापसी के लिए फार्म भरवाया है। उसी प्रकार सरकार को चाहिए कि ऐसा कानून लाए जिसमें एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले मजदूरों का पूरा विवरण अनिवार्य रूप से उपलब्ध होना चाहिए। यह राज्य सरकारों की जानकारी में होना चाहिए कि हमारे राज्य से कितने मजदूर गए हैं। किस रियल स्टेट, मल्टी नेशनल कंपनी में गए हैं अथवा संबंधित राज्य में जाकर कौन सा रोजगार कर रहे हैं। इन सभी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो जिसकी सूचना सरपंच, नगर निगम एवं उसी क्षेत्र के थाना में दर्ज होनी चाहिए। इसके बाद जिला मुख्यालय द्वारा राज्य शासन को सूचित हो और उसकी सूची अपडेट रखी जाए। मजदूर जिस राज्य में काम करें उस क्षेत्र के थाना अंतर्गत उसकी सूचना होनी चाहिए। जिससे यह पता चल सके किए किस राज्य का मजदूर अन्य राज्यों में किस मद में कार्यरत हैं। इन तमाम कदमों को उठा कर ही हम मजदूरों के आंख के आंसू पोंछ सकते हैं।