भाजपा के ‘झांसा कारोबार‘ को ठप करने की ताकत लोकतंत्र में जनता के पास सुरक्षित: अखिलेश यादव | | lucknow – News in Hindi


सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा पर उठाए सवाल (फाइल फोटो)
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने सेंटर फार मानिटरिंग इण्डियन इकॉनोमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि रिपोर्ट बताती है कि 3 मई 2020 तक बेरोजगारी दर बढ़कर 27.1 प्रतिशत पर पहुंच गई जबकि मार्च 2020 में यह 8.74 प्रतिशत थी. देश में 24.95 फीसदी मजदूरों के पास कोई काम नहीं है
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने कहा है कि ‘झूठ के पैर नहीं होते है‘ इस कहावत का सच जगजाहिर है पर भाजपा को इस पर यकीन नहीं। https://t.co/8IWuB3cEyv
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) May 6, 2020
श्रमिकों के साथ यह धोखा शर्मनाक
अखिलेश यादव ने सेंटर फार मानिटरिंग इण्डियन इकॉनोमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि रिपोर्ट बताती है कि 3 मई 2020 तक बेरोजगारी दर बढ़कर 27.1 प्रतिशत पर पहुंच गई जबकि मार्च 2020 में यह 8.74 प्रतिशत थी. देश में 24.95 फीसदी मजदूरों के पास कोई काम नहीं है. फिर रोजगार किसे और कहां मिल रहा है? क्या भाजपा ने भ्रमित करने का ठेका ले रखा है? मुख्यमंत्री जी के गृह जनपद गोरखपुर के श्रमिकों ने ही बताया कि भिवंडी से गोरखपुर आने के लिए उनसे 745 रूपये ट्रेन किराया वसूला गया. भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को बाहर से मुफ्त वापस लाने का दावा करते नहीं थकती पर सच तो सच है. श्रमिकों के साथ भी यह धोखा शर्मनाक है. प्रदेश के अन्य जनपदों के श्रमिक भी अपनी टिकटें दिखा रहे हैं. लोग कह रहे है कि अगर ये रेल टिकट नहीं है तो क्या बंधक श्रमिकों को छोड़ने पर ली गई फिरौती की सरकारी रसीद है? देशभर के मजदूरों को लग रहा है कि अब वो भाजपा सरकार के बंधक बन गए हैं.
पूरे देश में भाजपाई ये कहते घूम रहे हैं कि सरकार ने मज़दूरों से टिकट के पैसे नहीं लिए हैं जबकि देशभर में बेबस मज़दूर अपनी टिकट दिखा रहे हैं. लोग कह रहे हैं कि अगर ये टिकट नहीं है तो क्या बंधक मज़दूरों को छोड़ने पर ली गयी फिरौती की सरकारी रसीद है.
ग़रीब विरोधी भाजपा का अंत शुरु! pic.twitter.com/f6UsOLq9Lp
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) May 5, 2020
अखिलेश ने कहा ‘श्रमिकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है. भाजपा सरकार में मजदूर बेबस और मजबूर हैं जिनके पास एक जोड़ी कपड़ा, खाने का ठिकाना नहीं और बेहद दूर है जाना. जो फ्री ट्रेन सेवा के नाम पर लूटे गए. उन असहाय गरीबों को बेदर्दी से सड़क पर सैनिटाइज करना संवेदनशून्यता की पराकाष्ठा है. किसी की आंख जली तो किसी का शरीर. गीले कपड़ों के साथ सफर करने को मजबूर. डरी हुई सरकार जनता को सताने में अपनी बहादुरी समझती है’. उन्होंने कहा संकट के समय मजदूर भावनात्मक रूप से अपने घर और घरवालों से दूरी महसूस कर रहे हैं. उन्हें अपने गांव-घर में ही सुरक्षा की उम्मीद है वे जहां निराश्रित और बेरोजगार होकर पड़े हैं वहां से जल्दी से जल्दी निकलना चाहते है. असंवेदनशील सरकार इनकी पुकार कब सुनेगी? भाजपा का ‘झांसा कारोबार’ को ठप्प करने की ताकत लोकतंत्र में जनता के पास सुरक्षित है, बस समय का इंतजार है.
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First published: May 6, 2020, 8:38 PM IST