छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

मजदूर दिवस पर कर्मभूमि से जन्मभूमि का चलता रहा सफर

कोरोना संक्रमण के खतरे पर भारी पड़ रही है पेट की भूख
परिवार के साथ अनवरत जारी है हजारों किमी की पदयात्रा
चूल्हा जलाकर भोजन तैयार करने में जुटेे मजदूर
भिलाई । आज एक मई है और एक मई मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। मजदूर वर्ग के लिए आज का दिन विशेष अहमियत रखता है। मेहनतकश मजदूरों के लिए यह दिन खुशियां मनाने का होता है। इस बार कोरोना संक्रमण के चलते परिस्थितियां एकदम सी जुदा है। हजारों मजदूर आज के दिन भी कर्मभूमि से जन्मभूमि की ओर पैदल सफर कर रहे हैं। इन मजदूरों के लिए कोरोना संक्रमण के खतरे पर पेट की भूख भारी पड़ रही है। पेट की खातिर जन्मभूमि छोड़कर गए हजारों मजदूरों का परिवार सहित हजारों किमी की पदयात्रा आज मजदूर दिवस के दिन भी जारी रही।
कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने घोषित लॉकडाउन को एक महीने से भी ज्यादा समय बीतने के बाद अब मजदूरो का धैर्य जवाब देने लगा है। फोरलेन सड़क से गुजरने वाले मजदूरों के झुण्ड से यह साबित हो रहा है। मजदूर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ जरुरी सामानों की गठरी लेकर हजारों किमी की पदयात्रा कर रहे हैं। शुरुवाती दिनों में शासन-प्रशासन की टीम ऐसे मजदूरों को रोककर क्वारंटाइन सेंटर में नजरबंद कर रही थी। लेकिन अभी कुछ दिनों से कर्मभूमि से जन्मभूमि की ओर पैदल कूच कर रहे मजदूर और उनके परिवार को देखकर भी अनदेखा किया जा रहा है।
आज मजदूर दिवस है। प्रत्येक वर्ष एक मई को मनाया जाने वाला यह दिवस पूरी तरह से मजदूरों को समर्पित रहता है। लेकिन आज सुबह से ही भिलाई शहर से गुजरी फोरले सड़क पर बिना थके मजदूरों के जन्मभूमि का सफर चलता रहा। पूछने पर मजदूरों के एक समूह ने बताया कि वे अमरावती महाराष्ट्र से बिलासपुर जा रहे है। मजदूरों के इस समूह में छोटे-छोटे बच्चे पसीने से तरबतर होकर चल रहे थे। महिलाओं के चेहरे पर भी लंबे समय से पैदल चलने की थकान से साफ झलक रही थी। इस तरह की तस्वीर सुबह से दोपहर तक फोरलेन सड़क पर रह रहकर अनेक बार नजर आती रही। कोई छत्तीसगढ़ के ही अलग-अलग जिलों में जा रहा था तो कई मजदूरों का समूह छत्तीसगढ़ होकर उड़ीसा व झारखंड का सफर पर निकले हैं। मजदूर दिवस के बारे में पूछने पर पैदल जा रहे मजदूरों में से अनेक ने अनभिज्ञता जताते हए कर्मभूमि से जन्मभूमि के इस सफर में तारीखों के गुम हो जाने की मार्मिक दस्तान बयां कर दी।
घर वापसी के लिए पदयात्रा कर रहे मजदूरों ने बताया कि लॉकडाउन घोषित होने के कुछ दिनों तक तो वहां की शासन प्रशासन उनके रहने और खाने का इंतजाम करती रही लेकिन 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन बढ़ाये जाने के बाद शासन-प्रशासन से मिलने वाले सहयोग और सहायता में कमी आने लगी। जहां काम करते थे वहां से भी वेतन देने में आनाकानी होने लगी तो फिर वहां पर बने रहने का कोई औचित्य समझ नहीं आया। कोरोना संक्रमण के खतरे के आगे स्वयं और परिवार के पेट भरने की मजबूरी जब भारी पडऩे लगी तो पैदल ही हजारों किमी का सफर पैदल ही पूरा कर लेने की ठान कर निकल पड़े।

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