बलौदाबाजार जिले में अब तक 8 हजार 317 वन अधिकार पट्टा वितरित
सबका संदेस न्यूज छत्तीसगढ़ बलौदाबाजार- वन अधिकार मान्यता पत्र के संबंध में जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन रायपुर संभाग कमिश्नर जीआर चुरेन्द्र की उपस्थिति में शुक्रवार को तहसील मुख्यालय कसडोल में हुआ। जिसमें इस अधिनियम के क्रियान्वयन को लेकर पूर्व में आई शिथिलिता और इसके समाधान को लेकर मैदानी कर्मचारियों को मार्गदर्शन दिया गया। कमिश्नर श्री चुरेन्द्र ने कहा कि पूर्व में निरस्त किए गए आवेदनों पर फिर नए सिरे से विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वनवासियों को पट्टे पर मिले जमीन का विकास भी राज्य सरकार द्वारा विभिन्ना योजनाओं के तहत जोड़कर किया जाएगा। इस सिलसिले में इन भूमि पर राज्य के चार चिन्हारी-नरवा, गरवा, घुरवा, और बाकी को संरक्षित और सवंर्धित भी किया जाएगा।
जनपद पंचायत के सभागार में आयोजित कार्यशाला में बताया गया कि जिले में अब तक 8 हजार 317 वन अधिकार मान्यता पत्र वितरित किए गए हैं। इनमें 8 हजार 102 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र और 215 सामुदायिक वन अधिकार पत्र शामिल हैं। व्यक्तिगत अधिकार पत्र के अंतर्गत 6 हजार 827 पत्रक आदिवासी समूह को और एक हजार 275 अन्य परंपरागत वनवासी किसानों को दिए गए हैं। बताया गया कि जिले में कुल 10 हजार 596 लोगों ने व्यक्तिगत मान्यता पत्र के लिए आवेदन प्रस्तुत किए थे। इनमें से 2 हजार 494 लोगों के दावे विभिन्ना कारणों से निरस्त किए गए हैं। कमिश्नर श्री चुरेन्द्र ने कार्यशाला में वन अधिकार मान्यता पत्र के लिए जरूरी अर्हताओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 13 दिसम्बर 2005 तक काबिज लोगों को मान्यता पत्र प्राप्त करने की योग्यता है। यदि वह आदिवासी समूह का न होकर अन्य परंपरागत वनवासी समूह का है तो उसकी तीन पीढ़ी उस गांव में निवास करते हुए होने चाहिए। तीन पीढ़ी तक का कब्जा होना जरूरी नहीं है। इसके साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि संबंधित परिवारों को अपनी आजीविका के लिए काबिज भूमि पर आश्रित होने चाहिए।
वन अधिकार मान्यता पत्र के पट्टे को बेच नहीं सकता हितग्राही
कमिश्नर श्री चुरेन्द्र ने कहा कि वन अधिकार मान्यता पत्र प्रदान करना राज्य सरकार का महत्वपूर्ण अभियान है। लिहाजा कोई भी पात्र व्यक्ति पट्टे पाने के हक से वंचित नहीं होने चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी निजी भूमि के पट्टे और वन अधिकार मान्यता पत्र के तहत हासिल पट्टे में बुनियादी फर्क है। निजी भूमि का पट्टाधारी किसान उस भूमि का मालिक होता है, जबकि वन अधिकार मान्यता पत्र के मामले में राज्य सरकार इसका मालिक है। पट्टेधारी किसान इसे बेच नहीं सकेगा, केवल अपनी आजीविका के लिए इसका इस्तेमाल कर पाएगा। उन्होंने कहा कि पट्टा प्रदान करने के साथ-साथ इसका रिकार्ड भी दुरुस्त करते जाएं। बी-1 और खसरा इनका अलग बनाया जाए। भू-अधिकार पुस्तिका की तरह वन अधिकार पुस्तिका भी बनाकर दिया जाएगा।
फल-फूल और सब्जी की खेती पर जोर
संभागायुक्त ने परंपरागत खेती के साथ-साथ इन जमीनों के कुछ हिस्सों पर फल-फूल और साग-सब्जी की खेती पर जोर दिया जिससे वनवासियों को और ज्यादा आमदनी मिल सके। उन्होंने मनरेगा योजना के अंतर्गत इन खेतों में डबरी निर्माण कराने के भी निर्देश दिए। उन्होंने यह भी कहा कि इन जमीनों पर उगे पेड़-पौधों की कटाई नहीं की जा सकेगी। उन्होंने निकट भविष्य में बाजार चौपाल लगाने, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जीव जंतुओं के प्यास बुझाने के लिए हैंडपंपों के निकट टंकी बनाने के निर्देश भी दिए। कार्यशाला में मैदानी अधिकारियों की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया गया। कार्यशाला में अपर कलेक्टर जोगेन्द्र नायक, सहायक आयुक्त आदिवासी विकास आरएस भोई, डिप्टी कलेक्टर राकेश गोलछा, एसडीएम महेश राजपूत सहित राजस्व, वन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास और आदिवासी विकास विभाग के मैदानी अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित थे।
विज्ञापन समाचार हेतु सपर्क करे-9425569117/9993199117