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जानें बीजू पटनायक ने कैसे कश्मीर में भारत की जीत में निभाई थी अहम भूमिका – know how Biju Patnaik played an important role in victory of India against pakistan in Kashmir | knowledge – News in Hindi

उड़ीसा (अब ओडिशा) के दो बार मुख्‍यमंत्री रहे बिजयानंद पटनायक उर्फ बीजू पटनायक (Biju Patnaik) को शानदार राजनेता के साथ ही साहसी पायलट और बेहतरीन कारोबारी के तौर पर भी पहचाना जाता है. राजनीतिक गलियारों में भी उनके पायलट के तौर पर किए गए साहस भरे कामों की चर्चा आम थी. उन्‍होंने दूसरे विश्‍वयुद्ध (World War-2) और बंटवारे के बाद 1948 में पाकिस्‍तान के खिलाफ कश्‍मीर युद्ध के दौरान पायलट के तौर पर साहसी कार्यों को अंजाम दिया था. कहा जाता है कि अगर बीजू पटनायक जोखिम उठाकर भारतीय सेना की टुकड़ी को श्रीनगर में नहीं उतारते तो आज जम्‍मू-कश्‍मीर पाकिस्‍तान के कब्‍जे में होता.

बतौर कारोबारी बीजू पटनायक ने कलिंगा एयरलाइंस की शुरुआत की थी. उड़ीसा (Odisha) के गंजम जिले में 5 मार्च 1916 को जन्मे बीजू पटनायक ने राजनीति में क्रांति लाने के साथ-साथ अंग्रेजों के छक्के भी छुड़ाए थे. उन्‍हें साहसी पायलट के तौर पर इंडोनेशिया में आज भी याद किया जाता है. उनके पिता उडि़या आंदोलन के प्रमुख सदस्य थे. बीजू पटनायक ने अपनी शुरुआती पढ़ाई कटक में मिशन प्राइमरी स्कूल और मिशन क्राइस्ट कॉलेजिएट से की. इसके बाद 1927 में वह रेवेनशॉ विद्यालय गए.

जोखिम उठाकर भारतीय सेना की टुकड़ी को श्रीनगर में उतारा
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (PM Narendra Modi) ने जब जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद-370 हटाकर दो केंद्रशासित राज्‍यों में बांटा तो बीजू जनता दल (BJD) के सांसदों ने सरकार के पक्ष में वोट किया. इस दौरान सांसद पिनाकी मिश्रा ने बीजू पटनायक को याद करते हुए कहा था कि उन्होंने कश्मीर को पाकिस्तान (Pakistan) के हाथों में जाने से बचाया था. दरअसल, बंटवारे के बाद 1948 में जब पाकिस्तानी हमलावरों ने कश्मीर पर कब्‍जा करने की कोशिश की तो बीजू पटनायक पायलट थे. वह डकोटा डीसी-3 विमान उड़ाते थे.उन्होंने 27 अक्टूबर 1948 को अपने विमान से श्रीनगर (Sri Nagar) की हवाई पट्टी के लिए उड़ान भरी. उनके साथ सिख रेजिमेंट के 17 जवानों की टुकड़ी थी. उन्‍होंने विमान को हवाई पट्टी के बहुत नजदीक उड़ाया ताकि देख सकें कि वहां दुश्‍मनों का कब्‍जा तो नहीं है. डीसी-3 जैसे विमान को हवाई पट्टी के नजदीक उड़ाना काफी जोखिमभरा था. उन्‍होंने पट्टी के आसपास किसी दुश्‍मन को नहीं देखते हुए विमान को सुरक्षित लैंड कराया. इसके बाद भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों को वहां से खदेड़ दिया.

वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के कहने पर इंडोनेशिया के स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जकार्ता से बचाकर दिल्‍ली ले आए थे.

इंडोनेशियाई स्‍वतंत्रता सेनानियों को जकार्ता से बचाकर लाए
बीजू पटनायक ने बतौर पायलट भारत के साथ ही कई देशों में साहसी अभियानों को अंजाम दिया था. ऐसे ही एक अभियान के दौरान इंडोनेशियाई नेताओं को बचाने के कारण उन्‍हें इंडोनेशिया (Indonesia) ने भूमिपुत्र के सम्‍मान से नवाजा था. दरअसल, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) उपनिवेशवाद के खिलाफ थे. उन्होंने इंडोनेशिया को डच षड्यंत्रकारियों से मुक्त कराने में मदद करने की जिम्‍मेदारी बीजू पटनायक को सौंपी.

नेहरू ने पटनायक से कहा कि वह इंडोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानियों को डचों से बचाकर भारत लाएं. इसके बाद बीजू पटनायक 1948 में ओल्ड डकोटा एयरक्राफ़्ट लेकर सिंगापुर (Singapore) से होते हुए जकार्ता पहुंचे. डच सेना ने पटनायक को इंडोनेशियाई हवाई क्षेत्र में घुसते ही मार गिराने कोशिश की. इस अभियान में उनकी पत्नी ज्ञानवती सेठी भी उनके साथ थीं. इस समय उनके बेटे नवीन पटनायक महज एक महीने के थे.

इंडोनेशिया ने बीजू पटनायक को मानद नागरिकता से नवाजा
बीजू पटनायक और उनकी पत्‍नी ज्ञानवती (Gyanvati Sethi) ने जर्काता के पास आनन-फानन विमान उतारा. वहां से वह इंडोनेशिया के प्रमुख स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी सुल्तान शहरयार और डॉ. सुकर्णो को लेकर दिल्ली आ गए. इसके बाद पीएम नेहरू के साथ उनकी गोपनीय बैठक कराई. इसके बाद डॉ. सुकर्णो आजाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने. इस बहादुरी के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई.

उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान भूमि पुत्र से नवाजा गया. इसके बाद 1996 में इंडोनेशिया की आजादी की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर उन्हें सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बिनतांग जासू उतमा’ से सम्‍मानित किया गया. पटनायक ने 1940 के दशक की शुरुआत में रॉयल इंडियन एयर फोर्स में पायलट रहते हुए म्यांमार समेत कई युद्धग्रस्‍त क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दी थीं. म्‍यांमार से वह ब्रिटिश सैनिकों को बचाकर लाए थे.

शुरू की कलिंगा एयरलाइंस, जो बनी इंडियन एयरलाइंस
बीजू पटनायक को एविएशन इंडस्ट्री में इतनी दिलचस्पी थी कि दिल्ली फ्लाइंग क्लब और एयरनॉटिक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में पायलट का प्रशिक्षण लेने के लिए पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. ट्रेनिंग के बाद उन्होंने प्राइवेट एयरलाइंस के साथ काम शुरू किया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रॉयल इंडियन एयरफोर्स (Royal Indian Air force) को सेवाएं दीं. वायुसेना की नौकरी के बाद बीजू पटनायक ने भारत की सबसे पहली एयरलाइन कंपनियों में एक कलिंगा एयरलाइंस (Kalinga Airlines) शुरू की.

कलिंगा एयरलाइंस मुनाफे ने साथ चल रही थी. इसी बीच, 1953 में भारत सरकार ने बीजू पटनायक से कलिंगा एयरलाइंस खरीदकर उसे इंडियन एयरलाइंस (Indian Airlines) बना दिया. बीजू पटनायक ने अपनी मौत को लेकर एक बार कहा था, ‘किसी लंबी बीमारी के बजाय मैं विमान दुर्घटना में मरना चाहूंगा. नहीं तो फिर ऐसा हो कि मैं तुरंत ही मर जाऊं. मैं गिरूं और मर जाऊं.’ हालांकि, ऐसा हो नहीं पाया. उनका हार्ट और सांस से जुड़ी बीमारी के चलते 17 अप्रैल 1997 को निधन हुआ.

बीजू पटनायक ने पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ. एपीजे अब्‍दुल कलाम से पांच द्वीप के बदले चीन तक मार करने वाली मिसाइल बनाने का वादा लिया था.

ज्ञान सेठी को टेनिस कोर्ट में देखकर हुआ प्‍यार, फिर की शादी 
बीजू पटनायक ने अपनी पत्नी ज्ञानवती सेठी को पहली बार लाहौर में टेनिस कोर्ट में देखा था. वह टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं. बीजू उनसे प्यार कर बैठे. दोनों की शादी 1939 में हुई. उनकी शादी में टाइगर मोट विमान की फ्लीट लाहौर पहुंची थी. एक प्लेन को बीजू खुद उड़ा रहे थे. बीजू पटनायक और ज्ञानवती सेठी के तीन बच्चे हुए, जिसमें बेटा नवीन (Naveen Patnaik) और बेटी गीता शामिल हैं. बेटी गीता मेहता प्रसिद्ध लेखिका हैं.

बीजू की पत्नी ज्ञानवती सेठी भारत की पहली कॉमर्शियल पायलट भी थीं. बीजू उन्हें विंटर वाइफ कहते थे. दरअसल, ज्ञानवती उड़ीसा की जबरदस्त गर्मियों के कारण दिल्ली में रहती थीं और सर्दियों में भुवनेश्वर जाती थीं. बीजू पटनायक ने 1975 के आपातकाल का विरोध किया. अन्य नेताओं के साथ उन्हें भी जेल में बंद रहना पड़ा. जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो बीजू को केंद्र में इस्पात मंत्री बनाया.

डॉ. कलाम से लिया चीन तक मार करने वाली मिसाइल बनाने का वादा
भारत के पास आज बेशक एक से बढ़कर एक मिसाइलें हैं, लेकिन वर्षों पहले इनका सपना बीजू पटनायक ने देखा था. पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (APJ Abdul Kalam) ने भी एक बार इसका जिक्र किया था. डॉ. कलाम डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैबोरेट्री में काम कर रहे थे. उन्हें मिसाइलों के परीक्षण के लिए उड़ीसा के तट पर एक द्वीप चाहिए था. इस पर डॉ. कलाम बीजू पटनायक से मिले.

पटनायक ने उनसे कहा था कि वह उन्हें पांच द्वीप देने को तैयार हैं, लेकिन बदले में वह उनसे ऐसी मिसाइल बनाने का वादा करें, जो चीन तक मार करे. पटनायक ने तिब्बत पर 1951 में चीन के कब्‍जे से पहले ही तिब्बत और भारत को हवाई संपर्क से जोड़ने की कोशिश भी की थी. हालांकि, सरकार की ओर से पूरी मदद नहीं मिलने के कारण वह इस काम को पूरा करने में असफल रहे. नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन के दिनों में भी 50 के दशक में उहोंने बहुत काम किया था.

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