छत्तीसगढ़

पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी के मीडिया कंसल्टेंट रहे और सम्प्रति भाजपा प्रकाशन विभाग से जुड़े* पंकज झा * ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री रुचिर गर्ग को पत्र लिखा है. पूर्व सीएम के नाम श्री गर्ग द्वारा लिखे गए पत्र के सन्दर्भ में लिखे इस पत्र की प्रति..

*पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी के मीडिया कंसल्टेंट रहे और सम्प्रति भाजपा प्रकाशन विभाग से जुड़े* पंकज झा * ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री रुचिर गर्ग को पत्र लिखा है. पूर्व सीएम के नाम श्री गर्ग द्वारा लिखे गए पत्र के सन्दर्भ में लिखे इस पत्र की प्रति..सबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-

वार आपके स्वास्थ्य की कामना करता हूं. आशा है वैश्विक आपदा की इस घड़ी में आपने स्वयं को स्वस्थ रखा होगा. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी के नाम लिखा आपका पत्र अभी समाचार माध्यमों से पढ़ा. पढ़ कर बुरी तरह निराश हुआ हूं. आपकी भाषा वैसी नहीं बन पायी है जिसके लिए कभी आपको जाना जाता था. और तथ्यों की कमी तो हिमालयी भूल जैसी है, जिसकी उम्मीद आपके जैसे कभी पत्रकार रहे व्यक्ति से तो बिल्कुल नहीं की जा सकती. वैसे भी सलाहकार का काम अपने नियोक्ता को सलाह देने का होता है न कि उनके वरिष्ठ पूर्ववर्ती को नसीहत देने का. यह बात भरोसे के साथ मैं पूर्व मुख्यमंत्री के लम्बे समय तक मीडिया कंसल्टेंट के अनुभव और हैसियत कह रहा हूं. पत्रकारिता से इतर राजनीतिक दायित्व अलग किस्म के होते हैं और उसे पालन करने का यथोचित प्रशिक्षण आवश्यक होता है. यह एक बड़ी चूक हुई है. खैर.

एक पूर्ववर्ती सलाहकार होने के नाते आपके पत्र का बिन्दुवार जवाब देना मेरे लिए उचित होगा. समाचारों की सुर्ख़ियों में जितना पढ़ पाया उसी आधार पर आपसे मुखातिब होता हूं. सबसे पहला सवाल आपने पूर्व मुख्यमंत्री की भाषा पर उठाया है. मैं भरोसे के साथ कह सकता हं् कि यह लिखते हुए आपने स्वयं को कठघरे में पाया होगा. अपने समूचे पत्रकारिता कैरियर में शायद ही आपने ऐसा कुछ लिखा हो कभी जिसमें डा. रमन की भाषा पर आपको सवाल उठाने का अवसर मिला हो. भाषा और संस्कार कोई रातोंरात बदल जाने वाली चीज नहीं है, इसे आपके बॉस और उनके वरिष्ठ परिजन लगातार साबित करते भी रहे हैं. इधर कट्टर से कट्टर विरोधियों को कभी आपने पूर्व सीएम के भाषा की आलोचना करते नहीं सुना होगा. जिस व्यक्ति के भाषा और व्यवहार की प्रशंसा देश भर में है, या यूं कहें कि शालीनता ही जिनका वैशिष्ट्य है, उनकी भाषा पर सवाल उठाना आश्चर्यजनक है.

इसके उलट जिस कथित ‘आम किसान परिवार’ के अपने बॉस के संबंध में आपने भाषा का जिक्र किया उनकी भाषा पर कभी आप गौर करते तो आश्चर्य लगता आपको कि किसी सीएम की ऐसी भी भाषा हो सकती है! भारत के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री आदि तक के लिए जिस भाषा में आपके बॉस बोलते रहे हैं, कोई भी लजा जाए उस पर. जिस व्यक्ति के खिलाफ देश के किसी अदालत में कोई आरोप शेष नहीं है, उन्हें ‘तड़ीपार’ जैसा संबोधन देना किसी सीएम को अगर शोभा देता हो तो और क्या कहें भला? और वह भी ऐसे सीएम के द्वारा, जो स्वयं न केवल एक संज्ञेय अपराध में चार्जशीटेड हैं बल्कि अभी ज़मानत पर बाहर हैं, जेल हो आये हैं और सीबीआई जिनकी जांच कर रही है. इसके अलावा भी अन्य प्रकरण जिनपर दर्ज हैं. कांग्रेस की भाषा पर शोध हो सकता है कि ऐसे शब्द सभ्य समाज में कैसे स्वीकार्य हो सकते हैं भला? आप स्वयं उत्तर प्रदेश में छग के सीएम के साथ चुनाव प्रचार में थे. वहां उन्होंने भाजपा की सम्माननीय नेत्री के लिए जैसे शब्दों का उच्चारण किया, उसे दुहराने की ज़रूरत नहीं है, आपको स्मरण आ गया होगा. अगर आप सब सामंती नहीं होते तो पूर्व सीएम के पत्र पर, अपना अनुभव साझा करने के लिए आप धन्यवाद देते. न कि एक वरिष्ठतम नेता की भाषा पर आपको सवाल उठाना पड़ता. बहरहाल.

जहां तक वैश्विक महामारी ‘कोविड-19’ का सवाल है तो यह कहना होगा कि आपकी सरकार ने मीडिया की सुर्खी बटोरने के अलावा इस मामले में सचमुच कुछ भी नहीं किया है. अगर आज आप संपादक होते तो निश्चय ही अपने संपादकीय में छग सरकार की तारीफ के बजाय उस महान ‘एम्स’ का जिक्र करते जो आज संजीवनी साबित हो रहा है छत्तीसगढ़ के लिए. आज कोरोना जैसे गंभीर संक्रमण से ग्रस्त मरीज़ वहां जाते हैं और शत-प्रतिशत सफलता के साथ वहां से घर वापस जाते हैं. निश्चय ही आपका पत्रकार रूप कोरोना से संबंधित लेख में अटल जी, सुषमा स्वराज जी और डा. रमन सिंह जी के विजन की तारीफ़ करता, जिसके कारण आज छत्तीसगढ़ इस विपदा में भी लगभग सुरक्षित है. आज सबसे ज्यादा कमी विश्व में पीपीपीई किट की है लेकिन एम्स रायपुर को दो हज़ार किट्स केंद्र सरकार ने उपलब्ध कराये हैं, और यह भरोसा भी दिया है कि दवा, साजो-सामान जिस भी चीज़ की ज़रूरत होगी, एम्स को उपलब्ध कराया जाएगा. किसी भी चीज़ की आज इस अप्रत्याशित और दुरूह समय में भी एम्स रायपुर में कमी नहीं है, और न होने दी जायेगी, मोदी सरकार की छत्तीसगढ़ के संबंध में यह उपलब्धि है.

हां, छत्तसीगढ़ शासन का एक भी महत्वपूर्ण व्यक्ति एम्स झांकने नहीं गया है, इसलिए नहीं पता हो तो बात दूसरी है. वैसे भले गए कोई नहीं हों लेकिन रोज के स्वास्थ्य बुलेटिन में एम्स के कार्यों का जबरन क्रेडिट लेने में अवश्य कांग्रेस सरकार आगे है. जबकि स्वयं राज्य सरकार मेरी जानकारी के अनुसार एक कोरोना मरीज़ का स्वयं इलाज़ नहीं करा पायी है. तो यह श्रेय केंद्र और भाजपा को देने के बदले आप पता नहीं क्या-क्या लिख गए.

निस्संदेह बार-बार कहना होगा कि अजीब ही केजुअल एप्रोच रहा है कांग्रेस सरकार का इस वैश्विक महामारी के मामले में. कांग्रेस की सरकारों से बेहतर तो भीलवाड़ा की वह सरपंच साबित हुई है, जिसका क्रेडिट हड़पने में केन्द्रीय कांग्रेस जुट गयी थी! रुचिर जी, क्या यह तथ्य नहीं है कि कोरोना संबंधित प्राथमिक बैठकों में विभागीय यानी स्वास्थ्य महकमा के मंत्री श्री टी. एस. सिंह देव जी को ही नहीं बुलाया गया, जिस पर सरेआम नाराजगी भी जाहिर की थी उन्होंने? क्या यह सही नहीं है कि इस महामारी के दौरान स्वास्थ्य मंत्री स्वयं लम्बे समय अनुपस्थित रहे. बाद में शासकीय विशेष विमान से उन्हें लाया गया और फिर उन्हें संगरोध में रहना पड़ा. क्या इस पर सवाल उठाना मुख्य विपक्षी दल के रूप में भाजपा का अधिकार और इससे भी अधिक उसका कर्त्तव्य नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि बाकायदा पत्र जारी कर विभागों को बैठक तक करने से रोक दिया गया है कि सीएम/मुख्य सचिव की अनुमति से ही ऐसा करना होगा? ऐसे वन मैंन शो के खिलाफ भाजपा का आवाज़ उठाते रहना सामंती आचरण हो गया?

क्या भाजपा इस बात को कहना छोड़ दे कि तबलीगी ज़मात के मामले में राज्य सरकार ने आपराधिक लापरवाही का परिचय दिया गया है? क्या यह नहीं कहा जाय कि कथित ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ पर सरकार डींग हांकती रही और देखते ही देखते ‘कठघोरा मॉडल’ ने एम्स के आदरणीय चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों द्वारा जीती गयी लड़ाई को फिर से संघर्ष में धकेल दिया गया. क्या इस पर सवाल उठाना अपराध माना जाएगा आपके राज में? क्या यह सही नहीं है कि दो-दो बार हाईकोर्ट को ज़मात के संबंध में शासन को आदेश देना पड़ा. इसे अक्षमता नहीं माना जाय? क्या यह सही नहीं है कि शराब बेचने संबंधित कमिटी पर भी हाईकोर्ट को निर्देश देना पड़ा? क्या इसे शासन की विफलता नहीं कहा जाय? और तो और, समूचे प्रदेश में स्वयंसेवी संगठनों का, भाजपा जैसे दल के द्वारा अपने स्तर पर चलाये गए राहत कार्य ही दिख रहे हैं. पता नहीं किस खीझवश उसे भी बंद कराना चाहती हैं कांग्रेस सरकार. तो क्या इसका विरोध नहीं किया जाय? राज्य सरकार हर पंचायतों में चावल भेजने की ख़बरें चला कर पीठ ठोक रही है. क्या यह सही नहीं है कि पंचायतों से उस चावल की करीब 33 रूपये प्रति किलो कीमत वसूल रही है सरकार. क्या भाजपा इस ‘शासकीय कालाबाजारी’ पर सवाल नहीं करे? कितने दुर्भाग्य की बात है कि सामान्य दिनों में छत्तीसगढ़ की माननीय जनता को 1 रूपये तक किलो चावल मिलता है, वहां इस भयावह संकट के दौरान पंचायतों से इससे 32 गुना ज्यादा कीमत वसूला जा रहा है, और चावल देने का अहसान भी जताया जा रहा है. क्या मुख्य विपक्षी दल के नाते भाजपा को ये सवाल उठाने के अधिकार नहीं हैं? आज लॉकडाउन के बावजूद सब्जी आदि के बाजारों में मेला जैसा लग रहा. सब्जी विक्रेता और क्रेताओं को भी सहूलियत हो, ऐसी कोशिश करने के बदले केवल शिगूफा छोड़ते रहना कहां की बुद्धिमानी है भला? क्या-क्या कहा जाय!

जहां तक केंद्र का सवाल है तो जिस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के प्रयासों की आज ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ तक तारीफ़ कर रहा है. दुनिया भर के देश जहां ऐसी विपदा में भारत की तरफ देख रहे हैं. आज चीन का पड़ोसी होने के बावजूद (तबलीगी और केजरीवाल और कांग्रेस के बावजूद भी) हम अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में देश भर में हैं, तो इसका श्रेय भाजपा क्या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार को दे दे? जहां तक मदद का सवाल है तो पहले ही देश भर के लिए 1 लाख 70 हज़ार करोड़ का पैकेज केंद्र ने घोषित किया है, इसके अलावा तमाम आर्थिक राहतों का क्रम जारी है. छत्तीसगढ़ के लिए भी मनरेगा की राशि तुरंत ज़ारी करने की बात हो या जीएसटी में हिस्से का, ऐसी तमाम सहायता केंद्र द्वारा जारी की गयी है. ऐसे में आखिर कैसे आपने निष्कर्ष निकाल लिया कि केंद्र कुछ नहीं कर रहा है? भाजपा ने उद्योगपतियों को मना किया हुआ है कि वह छत्तीसगढ़ को पैसे नहीं दे, आखिर कैसे कूद कर आप इस नतीजे पर पहुंच गए? ऐसी बात आपके बॉस कहते तो फिर भी समझ में आती है, कहते रहते हैं वे. लेकिन आप तो कम से कम तथ्यों पर आधारित बात करते.

फिर कहना होगा कि आपदा से निपटने के लिए कुछ टिप्स अगर डा. रमन सिंह जी ने दिए हैं तो पंद्रह वर्षों के सीएम, उससे पहले के केन्द्रीय मंत्री का दायित्व समेत अन्य अनुभवों के आधार पर ही उन्होंने दिया है. यहां तक कि आपदा से भी निपटने का डॉक्टर साहब का शानदार रिकॉर्ड है. आपको स्मरण होगा- उत्तराखंड में महाप्रलय आया था. छत्तीसगढ़ के हज़ारों धर्मप्रिय लोग और परिवार वहां फंसे हुए थे. अन्य राज्य जहां अपने मंत्री के परिवार तक को सुरक्षित नहीं रख पाये थे, वहां रमन सिंह जी की सरकार ने अपने लगभग सभी प्रदेशवासियों का रेस्क्यू कर लिया था. जब तक अन्य राज्य कुछ सोच पाते तब तक तो प्रदेश के लोगों को दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में रख कर, समुचित उपचार आदि कराने के बाद उनके घर तक भेज दिया गया था. जैसे अब आपकी सरकार ने स्वयंसेवी संगठनों को राहत कार्य के लिए रोका है, वैसा ही तब उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने अंत में छत्तीसगढ़ को रोक दिया था लेकिन, तब तक छग का अपना मिशन पूरा हो गया था.

प्रसंगवश आपको याद दिला रहा हूं कि उसी समय उत्तराखंड आपदा के दौरान ही कांग्रेस की तरफ से कुछ राहत सामग्री दिल्ली से भेजी जानी थी बाकायदा सोनिया जी का फोटो लगा कर, जैसे आज आपकी सरकार सीएम का फोटो लगा रही है. लेकिन क्योंकि सोनिया गांधी जी उपलब्ध नहीं थी तो अनेक दिन तक राहत सामग्री के ट्रक कांग्रेस मुख्यालय में खड़े रह गए थे. सोचिये … समय से भेज कर आपदा पीड़ितों की कैसी सहायता की जी सकती थी. लेकिन उसके लिए नीयत चाहिए होता है. बहुत खराब रहा है कांग्रेस का रिकॉर्ड साहब इस मामले में. अविभाजित मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ भी जिसका हिस्सा था) का भोपाल गैस दुर्घटना याद तो होगा ही. शायद पत्रकार के रूप उसे आपने कवर भी किया हो. याद कीजिये, खुद प्रदेश के कांग्रेसी सीएम तब हज़ारों लोगों की जघन्य ह्त्या के अपराधी वारेन एंडरसन को विशेष विमान से दिल्ली तक छोड़ने गए थे. तब के कांग्रेसी पीएम ने उस दुर्दांत अपराधी को अमेरिका भेजा था. आज तो अमेरिका ने केवल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन क्या माँगा, इतने में भी आप सब बुरा मान गए. दुखद यह कि यह ज़रूरी औषधि भी कांग्रेस सरकार यहां उचित भंडारण नहीं कर पायी है, ऐसी खबर थी पिछले दिनों. आपदा के लिए ज़रूरी टेंडर तक निरस्त कर दिए गए हैं. यानी सामान्य खरीदी तक नहीं कर पा रही है कांग्रेस सरकार. इस पर भाजपा विरोध करेगी तो आप बुरा मान जायेंगे?खैर.

निजी तौर पर आहत करने की रत्ती भर भी अपनी मंशा नहीं है रुचिर जी. लेकिन हाथ जोड़कर आग्रह है कि वैश्विक संकट के समय में राजनीति का प्रपंच छोड़ अपने बॉस को काम करने की सलाह दीजिये प्लीज़. अभी समय राजनीति में हाथ आजमाने का नहीं है, काम करने का 

 

 

 

*पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी के मीडिया कंसल्टेंट रहे और सम्प्रति भाजपा प्रकाशन विभाग से जुड़े* पंकज झा * ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के सलाहकार श्री रुचिर गर्ग को पत्र लिखा है. पूर्व सीएम के नाम श्री गर्ग द्वारा लिखे गए पत्र के सन्दर्भ में लिखे इस पत्र की प्रति….*
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सम्माननीय श्री रुचिर गर्ग जी
सादर अभिवादन.

सपरिवार आपके स्वास्थ्य की कामना करता हूं. आशा है वैश्विक आपदा की इस घड़ी में आपने स्वयं को स्वस्थ रखा होगा. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह जी के नाम लिखा आपका पत्र अभी समाचार माध्यमों से पढ़ा. पढ़ कर बुरी तरह निराश हुआ हूं. आपकी भाषा वैसी नहीं बन पायी है जिसके लिए कभी आपको जाना जाता था. और तथ्यों की कमी तो हिमालयी भूल जैसी है, जिसकी उम्मीद आपके जैसे कभी पत्रकार रहे व्यक्ति से तो बिल्कुल नहीं की जा सकती. वैसे भी सलाहकार का काम अपने नियोक्ता को सलाह देने का होता है न कि उनके वरिष्ठ पूर्ववर्ती को नसीहत देने का. यह बात भरोसे के साथ मैं पूर्व मुख्यमंत्री के लम्बे समय तक मीडिया कंसल्टेंट के अनुभव और हैसियत कह रहा हूं. पत्रकारिता से इतर राजनीतिक दायित्व अलग किस्म के होते हैं और उसे पालन करने का यथोचित प्रशिक्षण आवश्यक होता है. यह एक बड़ी चूक हुई है. खैर.

एक पूर्ववर्ती सलाहकार होने के नाते आपके पत्र का बिन्दुवार जवाब देना मेरे लिए उचित होगा. समाचारों की सुर्ख़ियों में जितना पढ़ पाया उसी आधार पर आपसे मुखातिब होता हूं. सबसे पहला सवाल आपने पूर्व मुख्यमंत्री की भाषा पर उठाया है. मैं भरोसे के साथ कह सकता हं् कि यह लिखते हुए आपने स्वयं को कठघरे में पाया होगा. अपने समूचे पत्रकारिता कैरियर में शायद ही आपने ऐसा कुछ लिखा हो कभी जिसमें डा. रमन की भाषा पर आपको सवाल उठाने का अवसर मिला हो. भाषा और संस्कार कोई रातोंरात बदल जाने वाली चीज नहीं है, इसे आपके बॉस और उनके वरिष्ठ परिजन लगातार साबित करते भी रहे हैं. इधर कट्टर से कट्टर विरोधियों को कभी आपने पूर्व सीएम के भाषा की आलोचना करते नहीं सुना होगा. जिस व्यक्ति के भाषा और व्यवहार की प्रशंसा देश भर में है, या यूं कहें कि शालीनता ही जिनका वैशिष्ट्य है, उनकी भाषा पर सवाल उठाना आश्चर्यजनक है.

इसके उलट जिस कथित ‘आम किसान परिवार’ के अपने बॉस के संबंध में आपने भाषा का जिक्र किया उनकी भाषा पर कभी आप गौर करते तो आश्चर्य लगता आपको कि किसी सीएम की ऐसी भी भाषा हो सकती है! भारत के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री आदि तक के लिए जिस भाषा में आपके बॉस बोलते रहे हैं, कोई भी लजा जाए उस पर. जिस व्यक्ति के खिलाफ देश के किसी अदालत में कोई आरोप शेष नहीं है, उन्हें ‘तड़ीपार’ जैसा संबोधन देना किसी सीएम को अगर शोभा देता हो तो और क्या कहें भला? और वह भी ऐसे सीएम के द्वारा, जो स्वयं न केवल एक संज्ञेय अपराध में चार्जशीटेड हैं बल्कि अभी ज़मानत पर बाहर हैं, जेल हो आये हैं और सीबीआई जिनकी जांच कर रही है. इसके अलावा भी अन्य प्रकरण जिनपर दर्ज हैं. कांग्रेस की भाषा पर शोध हो सकता है कि ऐसे शब्द सभ्य समाज में कैसे स्वीकार्य हो सकते हैं भला? आप स्वयं उत्तर प्रदेश में छग के सीएम के साथ चुनाव प्रचार में थे. वहां उन्होंने भाजपा की सम्माननीय नेत्री के लिए जैसे शब्दों का उच्चारण किया, उसे दुहराने की ज़रूरत नहीं है, आपको स्मरण आ गया होगा. अगर आप सब सामंती नहीं होते तो पूर्व सीएम के पत्र पर, अपना अनुभव साझा करने के लिए आप धन्यवाद देते. न कि एक वरिष्ठतम नेता की भाषा पर आपको सवाल उठाना पड़ता. बहरहाल.

जहां तक वैश्विक महामारी ‘कोविड-19’ का सवाल है तो यह कहना होगा कि आपकी सरकार ने मीडिया की सुर्खी बटोरने के अलावा इस मामले में सचमुच कुछ भी नहीं किया है. अगर आज आप संपादक होते तो निश्चय ही अपने संपादकीय में छग सरकार की तारीफ के बजाय उस महान ‘एम्स’ का जिक्र करते जो आज संजीवनी साबित हो रहा है छत्तीसगढ़ के लिए. आज कोरोना जैसे गंभीर संक्रमण से ग्रस्त मरीज़ वहां जाते हैं और शत-प्रतिशत सफलता के साथ वहां से घर वापस जाते हैं. निश्चय ही आपका पत्रकार रूप कोरोना से संबंधित लेख में अटल जी, सुषमा स्वराज जी और डा. रमन सिंह जी के विजन की तारीफ़ करता, जिसके कारण आज छत्तीसगढ़ इस विपदा में भी लगभग सुरक्षित है. आज सबसे ज्यादा कमी विश्व में पीपीपीई किट की है लेकिन एम्स रायपुर को दो हज़ार किट्स केंद्र सरकार ने उपलब्ध कराये हैं, और यह भरोसा भी दिया है कि दवा, साजो-सामान जिस भी चीज़ की ज़रूरत होगी, एम्स को उपलब्ध कराया जाएगा. किसी भी चीज़ की आज इस अप्रत्याशित और दुरूह समय में भी एम्स रायपुर में कमी नहीं है, और न होने दी जायेगी, मोदी सरकार की छत्तीसगढ़ के संबंध में यह उपलब्धि है.

हां, छत्तसीगढ़ शासन का एक भी महत्वपूर्ण व्यक्ति एम्स झांकने नहीं गया है, इसलिए नहीं पता हो तो बात दूसरी है. वैसे भले गए कोई नहीं हों लेकिन रोज के स्वास्थ्य बुलेटिन में एम्स के कार्यों का जबरन क्रेडिट लेने में अवश्य कांग्रेस सरकार आगे है. जबकि स्वयं राज्य सरकार मेरी जानकारी के अनुसार एक कोरोना मरीज़ का स्वयं इलाज़ नहीं करा पायी है. तो यह श्रेय केंद्र और भाजपा को देने के बदले आप पता नहीं क्या-क्या लिख गए.

निस्संदेह बार-बार कहना होगा कि अजीब ही केजुअल एप्रोच रहा है कांग्रेस सरकार का इस वैश्विक महामारी के मामले में. कांग्रेस की सरकारों से बेहतर तो भीलवाड़ा की वह सरपंच साबित हुई है, जिसका क्रेडिट हड़पने में केन्द्रीय कांग्रेस जुट गयी थी! रुचिर जी, क्या यह तथ्य नहीं है कि कोरोना संबंधित प्राथमिक बैठकों में विभागीय यानी स्वास्थ्य महकमा के मंत्री श्री टी. एस. सिंह देव जी को ही नहीं बुलाया गया, जिस पर सरेआम नाराजगी भी जाहिर की थी उन्होंने? क्या यह सही नहीं है कि इस महामारी के दौरान स्वास्थ्य मंत्री स्वयं लम्बे समय अनुपस्थित रहे. बाद में शासकीय विशेष विमान से उन्हें लाया गया और फिर उन्हें संगरोध में रहना पड़ा. क्या इस पर सवाल उठाना मुख्य विपक्षी दल के रूप में भाजपा का अधिकार और इससे भी अधिक उसका कर्त्तव्य नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि बाकायदा पत्र जारी कर विभागों को बैठक तक करने से रोक दिया गया है कि सीएम/मुख्य सचिव की अनुमति से ही ऐसा करना होगा? ऐसे वन मैंन शो के खिलाफ भाजपा का आवाज़ उठाते रहना सामंती आचरण हो गया?

क्या भाजपा इस बात को कहना छोड़ दे कि तबलीगी ज़मात के मामले में राज्य सरकार ने आपराधिक लापरवाही का परिचय दिया गया है? क्या यह नहीं कहा जाय कि कथित ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ पर सरकार डींग हांकती रही और देखते ही देखते ‘कठघोरा मॉडल’ ने एम्स के आदरणीय चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों द्वारा जीती गयी लड़ाई को फिर से संघर्ष में धकेल दिया गया. क्या इस पर सवाल उठाना अपराध माना जाएगा आपके राज में? क्या यह सही नहीं है कि दो-दो बार हाईकोर्ट को ज़मात के संबंध में शासन को आदेश देना पड़ा. इसे अक्षमता नहीं माना जाय? क्या यह सही नहीं है कि शराब बेचने संबंधित कमिटी पर भी हाईकोर्ट को निर्देश देना पड़ा? क्या इसे शासन की विफलता नहीं कहा जाय? और तो और, समूचे प्रदेश में स्वयंसेवी संगठनों का, भाजपा जैसे दल के द्वारा अपने स्तर पर चलाये गए राहत कार्य ही दिख रहे हैं. पता नहीं किस खीझवश उसे भी बंद कराना चाहती हैं कांग्रेस सरकार. तो क्या इसका विरोध नहीं किया जाय? राज्य सरकार हर पंचायतों में चावल भेजने की ख़बरें चला कर पीठ ठोक रही है. क्या यह सही नहीं है कि पंचायतों से उस चावल की करीब 33 रूपये प्रति किलो कीमत वसूल रही है सरकार. क्या भाजपा इस ‘शासकीय कालाबाजारी’ पर सवाल नहीं करे? कितने दुर्भाग्य की बात है कि सामान्य दिनों में छत्तीसगढ़ की माननीय जनता को 1 रूपये तक किलो चावल मिलता है, वहां इस भयावह संकट के दौरान पंचायतों से इससे 32 गुना ज्यादा कीमत वसूला जा रहा है, और चावल देने का अहसान भी जताया जा रहा है. क्या मुख्य विपक्षी दल के नाते भाजपा को ये सवाल उठाने के अधिकार नहीं हैं? आज लॉकडाउन के बावजूद सब्जी आदि के बाजारों में मेला जैसा लग रहा. सब्जी विक्रेता और क्रेताओं को भी सहूलियत हो, ऐसी कोशिश करने के बदले केवल शिगूफा छोड़ते रहना कहां की बुद्धिमानी है भला? क्या-क्या कहा जाय!

जहां तक केंद्र का सवाल है तो जिस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के प्रयासों की आज ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ तक तारीफ़ कर रहा है. दुनिया भर के देश जहां ऐसी विपदा में भारत की तरफ देख रहे हैं. आज चीन का पड़ोसी होने के बावजूद (तबलीगी और केजरीवाल और कांग्रेस के बावजूद भी) हम अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में देश भर में हैं, तो इसका श्रेय भाजपा क्या छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार को दे दे? जहां तक मदद का सवाल है तो पहले ही देश भर के लिए 1 लाख 70 हज़ार करोड़ का पैकेज केंद्र ने घोषित किया है, इसके अलावा तमाम आर्थिक राहतों का क्रम जारी है. छत्तीसगढ़ के लिए भी मनरेगा की राशि तुरंत ज़ारी करने की बात हो या जीएसटी में हिस्से का, ऐसी तमाम सहायता केंद्र द्वारा जारी की गयी है. ऐसे में आखिर कैसे आपने निष्कर्ष निकाल लिया कि केंद्र कुछ नहीं कर रहा है? भाजपा ने उद्योगपतियों को मना किया हुआ है कि वह छत्तीसगढ़ को पैसे नहीं दे, आखिर कैसे कूद कर आप इस नतीजे पर पहुंच गए? ऐसी बात आपके बॉस कहते तो फिर भी समझ में आती है, कहते रहते हैं वे. लेकिन आप तो कम से कम तथ्यों पर आधारित बात करते.

फिर कहना होगा कि आपदा से निपटने के लिए कुछ टिप्स अगर डा. रमन सिंह जी ने दिए हैं तो पंद्रह वर्षों के सीएम, उससे पहले के केन्द्रीय मंत्री का दायित्व समेत अन्य अनुभवों के आधार पर ही उन्होंने दिया है. यहां तक कि आपदा से भी निपटने का डॉक्टर साहब का शानदार रिकॉर्ड है. आपको स्मरण होगा- उत्तराखंड में महाप्रलय आया था. छत्तीसगढ़ के हज़ारों धर्मप्रिय लोग और परिवार वहां फंसे हुए थे. अन्य राज्य जहां अपने मंत्री के परिवार तक को सुरक्षित नहीं रख पाये थे, वहां रमन सिंह जी की सरकार ने अपने लगभग सभी प्रदेशवासियों का रेस्क्यू कर लिया था. जब तक अन्य राज्य कुछ सोच पाते तब तक तो प्रदेश के लोगों को दिल्ली के छत्तीसगढ़ भवन में रख कर, समुचित उपचार आदि कराने के बाद उनके घर तक भेज दिया गया था. जैसे अब आपकी सरकार ने स्वयंसेवी संगठनों को राहत कार्य के लिए रोका है, वैसा ही तब उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार ने अंत में छत्तीसगढ़ को रोक दिया था लेकिन, तब तक छग का अपना मिशन पूरा हो गया था.

प्रसंगवश आपको याद दिला रहा हूं कि उसी समय उत्तराखंड आपदा के दौरान ही कांग्रेस की तरफ से कुछ राहत सामग्री दिल्ली से भेजी जानी थी बाकायदा सोनिया जी का फोटो लगा कर, जैसे आज आपकी सरकार सीएम का फोटो लगा रही है. लेकिन क्योंकि सोनिया गांधी जी उपलब्ध नहीं थी तो अनेक दिन तक राहत सामग्री के ट्रक कांग्रेस मुख्यालय में खड़े रह गए थे. सोचिये … समय से भेज कर आपदा पीड़ितों की कैसी सहायता की जी सकती थी. लेकिन उसके लिए नीयत चाहिए होता है. बहुत खराब रहा है कांग्रेस का रिकॉर्ड साहब इस मामले में. अविभाजित मध्यप्रदेश (छत्तीसगढ़ भी जिसका हिस्सा था) का भोपाल गैस दुर्घटना याद तो होगा ही. शायद पत्रकार के रूप उसे आपने कवर भी किया हो. याद कीजिये, खुद प्रदेश के कांग्रेसी सीएम तब हज़ारों लोगों की जघन्य ह्त्या के अपराधी वारेन एंडरसन को विशेष विमान से दिल्ली तक छोड़ने गए थे. तब के कांग्रेसी पीएम ने उस दुर्दांत अपराधी को अमेरिका भेजा था. आज तो अमेरिका ने केवल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन क्या माँगा, इतने में भी आप सब बुरा मान गए. दुखद यह कि यह ज़रूरी औषधि भी कांग्रेस सरकार यहां उचित भंडारण नहीं कर पायी है, ऐसी खबर थी पिछले दिनों. आपदा के लिए ज़रूरी टेंडर तक निरस्त कर दिए गए हैं. यानी सामान्य खरीदी तक नहीं कर पा रही है कांग्रेस सरकार. इस पर भाजपा विरोध करेगी तो आप बुरा मान जायेंगे?खैर.

निजी तौर पर आहत करने की रत्ती भर भी अपनी मंशा नहीं है रुचिर जी. लेकिन हाथ जोड़कर आग्रह है कि वैश्विक संकट के समय में राजनीति का प्रपंच छोड़ अपने बॉस को काम करने की सलाह दीजिये प्लीज़. अभी समय राजनीति में हाथ आजमाने का नहीं है, काम करने का है.

 

 

 

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