छत्तीसगढ़

बिना वेतन के मजदूर, पत्रकार आज हालात के आगे मजबूर, शासन प्रशासन की मदद कोसो दूर

*बिना वेतन के मजदूर, पत्रकार आज हालात के आगे मजबूर, शासन प्रशासन की मदद कोसो दूर

देवेन्द्र गोरलेसबका संदेस न्यूज़ छत्तीसगढ़-

डोंगरगढ पत्रकार जिसे देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है लेकिन उस स्तंभ की नींव को कोरोना वायरस ने इन दिनों कमजोर कर दी है उसके बावजूद इन जड़ो में एक बूंद पानी डालने के लिए आज कोई सामने नहीं आ रहा है। जिन पत्रकारों के सामने लोग अपनी फोटो खिंचवाने और समाचार लगवाने के लिए आगे-आगे आते थे आज उन्हीं पत्रकारों की मदद के लिए कोई आगे नहीं

 

आना चाहता फिर चाहे वह राज्य सरकार हो, केन्द्र सरकार या फिर कोई सामाजिक एवं राजनीतिक संगठन कोई भी यह पूछना भी मुनासिब नहीं समझ रहा है कि लाकडॉउन् के दौरान उन्हें अपने परिवार के पालन पोषण में कोई परेशानी तो नहीं हो रही हैं। चूंकि पत्रकार नाम सुनते ही लोगों को यह लगता है कि साधन संपन्न व्यक्ति लेकिन लोग यह भूल जाते है कि पत्रकार जगत में साधन संपन्न वही होता है जो मालिक होता है लेकिन अखबार या टीवी चैनल केवल मालिक से नहीं चलता उसे चलाते हैं रिपोर्टर, ऑपरेटर, कैमरा मैन, जिले, नगर व ग्रामीण क्षेत्र के संवाददाता, हॉकर तब जाकर कोई भी अखबार या चैनल पर सभी क्षेत्रों की खबरे प्रकाशित व दिखाई जाती है। चूंकि नगरीय क्षेत्र के संवाददाता हो या ग्रामीण क्षेत्र इन्हें ना तो अखबार के मालिक द्वारा कोई वेतन दिया जाता है और ना ही राज्य या केन्द्र सरकार के द्वारा। यह संवाददाता बेचारे बिना वेतन के ही अपने क्षेत्र में खबरों की तलाश में भटकते है और अपना ही पेट्रोल, डीजल खर्च कर पूरी उमंग और उत्साह के साथ खबरों का संकलन कर जनता तक पहुंचाते है कुछ ऐसा ही कार्य लाकडॉउन् के दिनों में कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाकडॉउन् के दौरान प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को समाचारों के संकलन के लिए छूट तो दी है पर संकलन के दौरान संक्रमण का शिकार होने पर जवाबदारी किसी ने नहीं ली है और ना ही इनके परिवार के भविष्य के बारे में किसी ने सोचा है इसलिए जो उच्च वर्ग के पत्रकार हैं वे तो अपने घर अपने परिवार के बीच लाकडॉउन् के दिन गुजार रहे हैं किन्तु जो गरीब वर्ग के पत्रकार हैं जो रोज कमाने रोज खाने वाली श्रेणी में आते हैं ऐसे पत्रकार ही अपनी जान जोखिम में डालकर कार्यक्षेत्र में जा रहे हैं और कोरोना से सम्बंधित सभी जानकारियां लोगों तक पहुंचाकर उन्हें जागरूक कर रहे हैं। एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदी से लेकर स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन पत्रकारों व मीडियाकर्मी को कोरोना वारियस कहकर उनका सम्मान करते हैं लेकिन दूसरी तरफ उन्ही पत्रकारों व उनके परिवार के बारे में कोई चिंता नहीं करते हैं कि कम से कम पत्रकारों का बीमा किया जाये या उन्हें आर्थिक मदद दी जाये जिससे लाकडॉउन् के दिनों में उनके परिवार के पालन पोषण में परेशानी ना हो। चूंकि लाकडॉउन् के दिनों में उच्च वर्ग के लोगों के पास धन संचय होने के कारण वे अपने दिन आराम से बिता रहे हैं और निम्न वर्ग के लोगो के लिए शासन प्रशासन व अन्य संगठनों के द्वारा सूखा राशन व पका हुआ भोजन बांटकर उनकी चिंता दूर की जा रही हैं किन्तु इन सबके बीच में मध्यम वर्गीय परिवार कहाँ जाये जिनके लिए ना तो शासन प्रशासन सोच रहा है और ना ही कोई संगठन कि आखिर वे भी अपना काज छोड़कर घर पर बैठे हैं ऐसे में उनका परिवार कैसे चलेगा। पत्रकार जगत भी इसी मध्यम वर्गीय परिवार में आता है क्योंकि मध्यम वर्गीय परिवार अपने आत्म सम्मान के साथ जीना पसंद करता है इसलिए वह निम्न वर्ग की तरह संगठनों की राह नहीं देखता इसलिए संकट की इस घड़ी में वह शासन प्रशासन की ओर उम्मीद से देख रहा है कि उन्हें किसी तरह की आर्थिक मदद मिले जिससे वह आत्म सम्मान के साथ अपने परिवार का पालन पोषण कर सके।

 

 

 

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