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मई में होने वाली लोकसभा चुनाव में इस बार भी आसान नहीं दुर्ग में भाजपा की राह

जबर्दस्त गुटबाजी के कारण चयनित प्रत्याशी को स्वस्फूर्त समर्थन पर संदेह

भिलाई। दुर्ग लोकसभा में इस बार भी भाजपा की राह आसान नहीं रहेगी। भाजपा में नीचे से ऊपर तक बनी गुटबाजी की दरारों से ऐसी संभावना नजर आ रही है। फिलहाल भाजपा के लिए लोकसभा के चुनाव में योग्य प्रत्याशी का चयन करना ही सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है। इसके बाद चयनित प्रत्याशी को पार्टी पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं के स्वस्र्फूत  समर्थन मिलने पर भी गुटबाजी की वजह से संदेह की लकीर उभर आई है।

दुर्ग लोकभा में पिछले बार देश भर में चली मोदी लहर के बावजूद भाजपा को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। पांच साल बाद भी जिस तरीके की परिस्थितियां बनी हुई है उससे ऐसा नहीं लग रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में सकारात्मक परिणाम आएगा। पिछला लोकसभा चुनाव हार चुकी सुश्री सरोज पांडेय फिलहाल पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही राज्यसभा सदस्य के रूप में केन्द्र की राजनीति में सक्रिय है। लिहाजा तय है कि दुर्ग लोकसभा में इस बार भाजपा किसी नये चेहरे को सामने लाएगी। विधानसभा चुनाव में पराजित या फिर टिकट से वंचित किए गए नेताओं पर भी दांव खेला जा सकता है। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा को दुर्ग लोकसभा में जीत का लक्ष्य तय करने से पहले योग्य और जनाधार वाले प्रत्याशी का चयन करना बेहद चुनौती भरा साबित होगा। अगर प्रत्याशी चयन में किसी तरह बड़े नेताओं में सहमति बन भी जाती है तो उसकी जीत के लिए गुटों में बिखरे कार्यकर्ताओं का समर्थन किस हद तक परिणाम को सकारात्मक बनाने में रहेगा, इस भी संदेह बरकरार है।

गौरतलब रहे कि लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने प्रदेश को तीन कलस्टर में बांटकर प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं। रायपुर, दुर्ग राजनांदगांव और महासमुन्द लोकसभा को एक कलस्टर में रखकर पूर्व मंत्री राजेश मूणत को प्रभारी बनाया गया है। इसके अलावा दुर्ग लोकसभा के लिए संतोष पाडेंय को प्रभारी तथा प्रहलाद रजक को संयोजक का दायित्व सौंपा गया है। कलस्टर प्रभारी मूणत के साथ ही लोकसभा प्रभारी संतोष पाडेंय और संयोजक प्रहलाद रजक के लिए गुटो में बंटे कार्यकर्ताओं को एकता की डोर में बांधना आसान नहीं होगा।

दरअसल भिलाई-दुर्ग में भाजपा के संगठन पर सुश्री सरोज पांडेय समर्थकों का एकतरफा कब्जा है। वहीं संगठन से बाहर जितने भी नेता व कार्यकर्ता है उनकी सरोज पांडेय गुट से बिल्कुल भी बनती नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद सरोज पांडेय को मिली हार की वजह इसी गुटबाजी को भी माना गया था। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी दुर्ग लोकसभा के नौ में से आठ सीट पर भाजपा प्रत्याशियों की पराजय में गुटबाजी का भी अहम किरदार रहा है। बावजूद इसके पार्टी में व्याप्त गुटबाजी को खत्म करने की दिशा में आला नेताओं की ओर से ठोस पहल नहीं होने से दुर्ग लोकसभा के आसन्न चुनाव में सकारात्मक परिणाम की उम्मीद किया जाना व्यर्थ होगा। ऐसे में इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है कि विकल्पों के अभाव के बावजूद भाजपा किसी को प्रत्याशी बना भी देती है तो उसे गुटबाजी के शिकार कार्यकर्ताओं का स्वस्फूर्त समर्थन शायद ही मिल सकेगा।

फेल हो चुके हैं राजेश मूणत

कांग्रेस की सरकार बनने से पहले तक लोकसभा कलस्टर प्रभारी बनाए गए राजेश मूणत दुर्ग जिले के प्रभारी मंत्री रह चुके हैं। इस दौरान श्री मूणत दुर्ग जिले में भाजपा की गुटबाजी को कम या पुरी तरह से खत्म करने के मामले मेें फेल हो गए। पिछले पांच साल के दौरान दुर्ग लोकसभा से प्रेमप्रकाश पांडेय, श्रीमती रमशीला साहू और दयालदास बघेल के रूप में तीन मंत्री थे। लेकिन इन तीनो ही दिग्गजों की राहें संगठन के मामले में अलग-अलग रही। वहीं स्थानीय संगठन में सुश्री सरोज पांडेय समर्थकों का दबदबा रहने से भी पार्टी के मंत्री व विधायकों के साथ तालमेल कभी नजर ही नहीं आया। खासकर भिलाई-दुर्ग में सुश्री सरोज पांडेय और तात्कालीन मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय के समर्थक एक-दूसरे को दुश्मन की तरह देखते थे। अभी भी उसी तरह के हालात बरकरार है। जिले के प्रभारी मंत्री के रूप में राजेश मूणत को भाजपा नेताओं की गुटबाजी को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए था। लेकिन ऐसा वे कर नहीं सके। अब लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी ने एक बार फिर राजेश मूणत को मौका दिया है। लेकिन बिना गुटबाजी खत्म किए दुर्ग लोकसभा में कमल खिलाना उनके लिए आसान नहीं रहेगा।

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