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Shani Janm Katha : पिता और पुत्र की आपस में क्यों नहीं बनती? क्यों शनि देव के जन्म के बाद सूर्य देव ने मचाया बवाल?

Shani janm katha

Shani Janm Katha : शनि देव की जन्म कथा के अनुसार, उनके पिता सूर्य देव हैं और माता छाया (संज्ञा की परछाई) हैं। शनिदेव को कर्मफल दाता भी कहा जाता है, अर्थात वे व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। आज शनि जयंती मनाई जा रही है, जो ज्येष्ठ अमावस्या को शनि देव के जन्म का प्रतीक है। सूर्य देव के तेज से बचने के लिए उनकी पत्नी संज्ञा ने अपनी परछाई (छाया) को उनके पास छोड़ दिया, जिससे शनि देव का जन्म हुआ।

Shani Janm Katha

शनिदेव को सूर्यदेव का सबसे बड़ा पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी, शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियाँ और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है।

Shani Janm Katha : आईये यहाँ प्रस्तुत हैं शनि देव की जन्म कथा

शनि देव कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य देव से हुआ था और सूर्य से विवाह के बाद संज्ञा उनके प्रचंड तेज को सह नहीं पा रही थी। ऐसे में सूर्य देव के ताप से बचने के लिए संज्ञा ने चुपचाप अपनी प्रतिकृति छाया को सूर्य देव के पास छोड़ दिया था और वह अश्व रूप लेकर पृथ्वी पर चली गई थीं। यहां वह तपस्या करने लगी थीं। वहीं छाया सूर्य देव की सेवा करती थीं और सूर्य देव को इसका पता नहीं था।

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पुराणों के अनुसार, भगवान सूर्य का विवाह देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ था। विवाह के बाद संज्ञा ने यम और यमुना को जन्म दिया। यम ने तपस्या करके धर्मराज का पद प्राप्त किया और यमुना धरती पर नदी के रूप में बहने लगी।
– सूर्यदेव का तेज बहुत प्रबल था, जिसे सह पाना संज्ञा के लिए कठिन होता जा रहा था। तब एक दिन संज्ञा ने अपनी परछाई, जिसका नाम छाया था को सूर्यदेव को सेवा में छोड़ दिया और स्वयं तपस्या करने चली गई। ये बात सूर्यदेव को पता नहीं चली।

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धर्मग्रंथो के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ, जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तब छाया भगवान शंकर की भक्ति में इतनी ध्यान मग्न थी की उसने अपने खाने पिने तक सुध नहीं थी जिसका प्रभाव उसके पुत्र पर पड़ा और उसका वर्ण श्याम हो गया। शनि के श्यामवर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया की शनि मेरा पुत्र नहीं हैं। तभी से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे।

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शनि देव ने अपनी साधना तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य की भाँति शक्ति प्राप्त की और शिवजी ने शनि देव को वरदान मांगने को कहा, तब शनि देव ने प्रार्थना की कि युगों युगों में मेरी माता छाया की पराजय होती रही हैं, मेरे पिता सूर्य द्वारा अनेक बार अपमानित किया गया हैं। अतः माता की इच्छा हैं कि मेरा पुत्र अपने पिता से मेरे अपमान का बदला ले और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बने। तब भगवान शंकर ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा। मानव तो क्या देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे।

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