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दुग्ध उत्पादों की घटी मांग, किसानों पर ऐसे पड़ रही दोहरी मार, 22 रुपये लीटर बेचने को मजबूर हैं प्योर दूध, Coronavirus Side effect in Indian dairy industry milk demand down upto 50 percent-farmers income hit-dlop | business – News in Hindi

नई दिल्ली. शहर में आप गाय के प्योर दूध (Cow Milk) के लिए कोई भी दाम देने को तैयार हैं, लेकिन गांवों में यह औने-पौने दाम पर ही बिक रहा है. 23 अप्रैल को यूपी के अंबेडकर नगर में किसानों को गाय के दूध का सिर्फ 21.84 रुपये प्रति लीटर दाम मिला. इस  वक्त पूरे देश के दुग्ध उत्पादकों का यही हाल है. उनके दाम में 30 फीसदी तक की कमी हो गई है. जबकि आपको दूध 50 से 60 रुपये लीटर में ही मिल रहा है.  दरअसल, ये हालात लॉकडाउन ने पैदा किए हैं. दुग्ध उत्पादकों पर इसकी दोहरी मार पड़ी है. एक तरफ पशुओं को खिलाना-पिलाना महंगा हो गया है तो दूसरी ओर सहकारी समितियों ने दूध का पहले जैसा दाम देना बंद कर दिया है.

लॉकडाउन की वजह से दूध (Milk) की खपत में भारी कमी हो गई है. कुछ लोगों ने दूध लेना कम कर दिया है तो चाय और मिठाई की दुकानें बंद होने से खोवा, पनीर, मिठाई और मक्खन का बाजार ठंडा पड़ गया है. तमाम शहरों से लोगों का गांवों की ओर पलायन हुआ है इसलिए पैकेज्ड दूध लेने वाले कम हुए हैं. डेयरी क्षेत्र से जुड़े लोग बता रहे हैं कि दूध की मांग में 40 से 50 फीसदी तक की रिकॉर्ड गिरावट हुई है.

किसानों पर दोहरी मार

कृषि क्षेत्र के जानकार और किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि लॉकडाउन के कारण एक तरफ किसानों को पहले के मुकाबले दूध का 30 फीसदी कम रेट मिल रहा है तो दूसरी ओर खल, बिनौला, छिलका, मिश्रित पशु-आहार आदि बनाने वाली मिलें बंद होने या कम क्षमता पर काम करने के कारण इनके दाम 25 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. इससे किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है. इसका सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. इसीलिए अब किसान संगठन मांग कर रहे हैं कि सरकार फरवरी के रेट पर किसान का सारा उपलब्ध दूध खरीदे.ताकि ग्रामीणों की आय पर बुरा असर न पड़े.राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद के मुताबिक इसका सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. गांवों में दूध बिक्री पर आश्रित किसानों की आय गिर गई है. क्योंकि दूध की मांग में इतनी बड़ी गिरावट कभी नहीं देखी गई थी. इस गिरावट के कारण किसानों को पहले के मुकाबले 25 से 30 फीसदी कम पैसा मिल रहा है. दुग्ध सहकारी समितियां पैसा नहीं दे रही हैं. जबकि दूध का उत्पादन (Milk production) जस का तस है.

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यूपी में 23 अप्रैल को गाय का दूध मुश्किल से 22 रुपये लीटर बिका

 

दूध की मांग घटी लेकिन क्या है विकल्प?

दूध की मांग कितनी घट गई है इसकी तस्दीक प्रादेशिक कॉपरेटिव डेयरी फेडरेशन उत्तर प्रदेश को गोरखपुर मंडल से दूध भिजवाने वाले प्रतिनिधि अनुज यादव ने की. उन्होंने बताया कि रोजाना 12 हजार लीटर की जगह अब सिर्फ 5000 लीटर दूध लिया जा रहा है, क्योंकि खपत ही नहीं है. दूध लेकर आखिर करेंगे क्या?

तो फिर समाधान क्या है? सरप्लस दूध को खपाने का बेहतर विकल्प ये है कि इसका मिल्क पाउडर बनाकर रखा जाए. लेकिन डेयरी क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि दूध को पाउडर में कन्वर्ट करने की भी एक निश्चित क्षमता है. क्योंकि लॉकडाउन जैसा वक्त आएगा यह पहले किसी ने नहीं सोचा था.

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किसानों को अब दूध का पहले जैसा रेट नहीं मिल रहा

सरप्लस दूध का बनवा रहे हैं मिल्क पाउडर

झारखंड मिल्क फेडरेशन के प्रबंध निदेशक सुधीर कुमार सिंह ने न्यूज18 हिंदी से बातचीत में कहा कि दूध की मांग 40-50 फीसदी कम हो गई है. हमारे प्लांट की क्षमता रोजाना 1.30 लाख लीटर दूध के खपत की है. लेकिन अब हम सिर्फ 1 लाख लीटर ही किसानों से ले पा रहे हैं. उसमें से भी काफी दूध का पाउडर बनवा रहे हैं ताकि किसानों को दिक्कत न हो.

पाउडर बनवाने के लिए दूध लखनऊ भेज रहे रहे हैं क्योंकि हमारे यहां मिल्क पाउडर बनाने का प्लांट नहीं है. इससे ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी बढ़ रहा है. दूध को पाउडर में कन्वर्ट करने के लिए भी काफी पैसा ब्लॉक हो रहा है. हालात ये है कि अगर हम पूरी तरह से दूध लेना शुरू कर दें तो प्रति दिन 2.5 लाख लीटर आ जाएगा क्योंकि चाय और मिठाई की दुकानें भी बंद हैं.

बिहार में एक दिन में 12 लाख लीटर दूध को पाउडर में कन्वर्ट करने की क्षमता है. जबकि गुजरात में एक ही प्लांट में 16 लाख लीटर को पाउडर में बदलने की क्षमता है. वहां पर ऐसे 25 प्लांट हैं.  लेकिन सब जगह ऐसा नहीं है.

हालांकि, प्रमुख दूध आपूर्तिकर्ता कंपनी मदर डेयरी (Mother Dairy) के एमडी संग्राम चौधरी यह नहीं मान रहे कि दूध की खपत 50 फीसदी कम हो गई. हमसे बातचीत में उन्होंने  कहा कि लॉकडाउन की वजह से दूध की मांग करीब 15 फीसदी कम हुई है. क्योंकि दूध, दही और पनीर की खपत के जितने भी सोर्स हैं वो खत्म हो गए हैं. लोगों का शहरों से गांवों की ओर पलायन हो गया है.

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मिल्क प्लांट अब दूध का पाउडर बनवा रहे हैं

हरियाणा में सरप्लस दूध भी खरीदने का दावा

हरियाणा सरकार ने माना है कि ढाबों, चाय की दुकानों, होटलों, रेस्तराओं और कैटररों के प्रतिष्ठान बंद होने के कारण दूध की बिक्री घटी है. लेकिन सरकार ने यह तय किया है कि सरप्लस दूध की खरीद डेयरी सहकारी समितियों के माध्यम से की जाएगी. हरियाणा डेयरी विकास सहकारी प्रसंघ के मैनेजिंग डायरेक्टर, ए.श्रीनिवास ने कहा कि वीटा दूध और दूध उत्पादों की आपूर्ति में कोई व्यवधान नहीं होगा.

हरियाणा डेयरी प्रति दिन 8.00 लाख लीटर दूध खरीद रही है जो पिछले वर्ष से 40 प्रतिशत अधिक है. आवश्यक वस्तु श्रेणी के तहत दूध को कवर किया जा रहा है. डेयरी फेडरेशन ने पंचकूला, फरीदाबाद और गुरुग्राम क्षेत्र में वीटा दूध और दूध उत्पादों की ऑनलाइन डिलीवरी के लिए ‘स्विगी’ के साथ समझौता किया है.

दूध उत्पादन में भारत

यहां सालाना 180 मिलियन टन दूध का उत्पादन (Dairy farming) होता है. इस मामले में भारत पहले स्थान पर हैं. यूपी, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं कर्नाटक भारत के सबसे बड़े दूध उत्पादक राज्य हैं.

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डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड से जुड़ा एक मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट

प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता में हरियाणा नंबर वन  

यूपी, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं कर्नाटक भारत के सबसे बड़े दूध उत्पादक राज्य हैं. नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के मुताबिक 2018-19 में भारत में प्रति व्यक्ति प्रति दिन दूध की औसत उपलब्धता 394 ग्राम थी. इस मामले में हरियाणा सबसे आगे है जहां प्रति व्यक्ति औसत दूध 1087 ग्राम है.

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