One Nation-One Election: देश में एक साथ सभी चुनाव कराने JPC की पहली बैठक आज, 39 सदस्यीय समिति को प्रावधानों की जानकारी देंगे विधि मंत्रालय के अधिकारी

नई दिल्लीः One Nation-One Election अब देश में सभी चुनाव एक साथ होंगे। बीतें शीतकालीन सत्र के दौरान इससे संबंधित दो बिल संसद पेश कर दिए हैं। बिल की समीक्षा के लिए बनी जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) आज पहली बैठक करेगी। इस दौरान विधि एवं न्याय मंत्रालय के अधिकारी लोकसभा के 21 और राज्यसभा को 10 सांसद वाली समिति के सदस्यों को प्रस्तावित कानूनों के प्रावधानों के बारे में जानकारी देंगे। हालांकि, कई पार्टियों की तरफ से JPC में शामिल किए जाने के अनुरोध के बाद सरकार ने समिति में 8 सदस्य बढ़ा दिए। अब इस समिति में 27 सांसद लोकसभा से और 12 सांसद राज्यसभा से हैं।
One Nation-One Election सूत्रों के मुताबिक यह प्रारंभिक जानकारी देने वाली बैठक होगी। इस बैठक में अधिकारी दो महत्वपूर्ण विधेयकों के बारे में जानकारी देंगे। ये विधेयक हैं- संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और संघ राज्य क्षेत्र (कानून) संशोधन विधेयक। इन दोनों विधेयकों का मकसद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए जरूरी बदलाव करना है। यह कदम भाजपा द्वारा लंबे समय से किए जा रहे वादे का हिस्सा है।
संसद में बिल पेश करने के लिए सरकार को बहुमत नहीं मिला
One Nation-One Election कानून मंत्री मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में एक देश-एक चुनाव को लेकर संविधान संशोधन बिल रखा था। विपक्षी सांसदों ने इसका विरोध किया। इसके बाद बिल पेश करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग कराई गई। कुछ सांसदों की आपत्ति के बाद वोट संशोधित करने के लिए पर्ची से दोबारा मतदान हुआ। इस वोटिंग में बिल पेश करने के पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट पड़े। इसके बाद कानून मंत्री ने बिल दोबारा सदन में रखा। लोकसभा की 543 सीटों में एनडीए के पास अभी 292 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 362 का आंकड़ा जरूरी है। वहीं, राज्यसभा की 245 सीटों में एनडीए के पास अभी 112 सीटें हैं, वहीं 6 मनोनीत सांसदों का भी उसे समर्थन है। जबकि विपक्ष के पास 85 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए 164 सीटें जरूरी हैं।
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क्या है एक देश-एक चुनाव?
भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। एक देश-एक चुनाव का मतलब लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एकसाथ ही हुए थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद दिसंबर, 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।
ऐसे समझे पूरी खबर
“एक देश-एक चुनाव” का क्या मतलब है?
“एक देश-एक चुनाव” का मतलब है कि भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक ही दिन, एक ही समय पर कराए जाएंगे। इससे चुनाव प्रक्रिया को सरल और खर्चों में कमी आएगी।
क्या “एक देश-एक चुनाव” का सिस्टम पहले भी लागू हुआ था?
हां, 1952, 1957, 1962, और 1967 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। लेकिन इसके बाद कुछ विधानसभाओं के भंग होने से यह परंपरा टूट गई थी।
क्या “एक देश-एक चुनाव” के लिए संविधान में बदलाव की आवश्यकता है?
हां, इस व्यवस्था को लागू करने के लिए संविधान में बदलाव की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक पेश किया है।
क्या “एक देश-एक चुनाव” से चुनावों की लागत कम होगी?
हां, अगर यह व्यवस्था लागू होती है, तो चुनावों का खर्च कम होगा और प्रशासनिक कामकाज में भी सुधार होगा।
क्या विपक्षी दल “एक देश-एक चुनाव” के पक्ष में हैं?
विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है, क्योंकि उनका मानना है कि इससे राज्य सरकारों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।