भिलाई का शास्त्री अस्पताल स्वास्थ्य विभाग द्वारा उपेक्षा का शिकार
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सात लाख की आबादी वाले शहर में मरीजों के लिए है यह अस्पताल वरदान
रोज आते हैं तीन से चार सौ मरीज फिर भी नही है किसी भी बीमारी के विशेषज्ञ डॉक्टर
भिलाई। नगर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल लाल बहादुर शास्त्री चिकित्सालय लगातार उपेक्षा का शिकार होता जा रहा है। यह अस्पताल यहां के गरीब लोगों के लिए वरदान साबित होता है सात लाख की आबादी वाले भिलाई में प्रतिदिन तीन सौ से लेकर चार सौ मरीज इस अस्पताल में अपना उपचार कराने आते है, लेकिने शासन यहां हडडी रोग को छोड़कर किसी भी विशेषज्ञ चिकित्सकों को नही भेजा। एक तो यहां शुरू से ही बेहद स्टाफ की कमी है, कई बार धरना, प्रदर्शन के बाद भी शासन उसे पूरा नही कर रहा है। इसके कारण मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वहीं एक दंत विशेषज्ञ है तो हल्का फुल्का देख लेते है, दांत उखाडऩे तक की यहां व्यवस्था नही है न ही दांत की कोई बिमारी हो तो उसके आपरेशन की ही व्यवस्था है। यहां थोड़ा भी गंभीर बिमारी वाले मरीज आ जाते हैं तो उन्हें तुरंत दुर्ग अस्पताल रिफर करना पड़ता है। यहां नाक,कान,गला विशेषज्ञ डॉ. ए के गणवीर पिछले कुछ सालों से थे जिनका स्थानांतरण एक वर्ष पहले ही दुर्ग हो चुका है, उसके बाद यहां कोई भी नाक,कान और गला का विशेषज्ञ डॉक्टरों की पोस्टिंग नही हुई। चर्म रोग, गुप्त रोग सहित अन्य कई प्रकार के बिमारियों के लोग यहां उपचार कराने आते तो हैं लेकिन यहां इन बिमारियों के उपचार के लिए कोई भी विशेषज्ञ चिकित्सक नही है। उन्हें मजबूरीवस जनरल मेडिसीन के चिकित्स्कों से उपचार कराना पड़ता है और आराम नही होने पर मजबूरी बस उन्हें प्राईवेट डॉक्टरों के पास जाकर तीन सौ से चार सौ रूपये उनको फीस देते है और पांच सात सौ की दवाईयां अलग खरीदनी पड़ती है। स्वास्थ्य विभाग यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति के बजाय जिला अस्पताल के विशेषज्ञों को सप्ताह में एक दिन यहां रोटेशन में डयूटी लगा रहा है, यदि किसी मरीज को किसी बीमारी के विशेषज्ञ डॉक्टरों से चेअपक कराना है तो एक साप्ताह तक उसका इंतजार करना पड़ रहा है। इसके कारण यहां लोगों में भारी रोष है। मौसमी संक्रामक बीमारी के दिनों में यहां आने वाले मरीजों की संख्या करीब डेढ़ गुना हो जाती है। कहने को तो यह सौ बिस्तर अस्पताल है, मगर विशेषज्ञ चिकित्सक और सुविधाएं नहीं होने के कारण यहां केवल प्राथमिक उपचार ही हो पाता है। बाकी यह रेफरल सेंटर बनकर रह गया है। ऐसे में मरीज व उनके परिजनों को परेशानी उठानी पड़ती है। यहां तक कि दवाइयां भी मरीजों के पैसे (दस रुपए शुल्क) से खरीदनी पड़ती है।
सौ बिस्तर अस्पताल की घोषणा के साथ ही यहां सेटअप में अस्थि रोग विशेषज्ञ का पद रखा गया। इसके पीछे मंशा यह थी कि राष्ट्रीय राजमार्ग में आए दिन हादसे होते रहते हैं। हड्डी आदि फ्रैक्चर होने पर जीई रोड के बिलकुल किनारे लगे इस अस्पताल से त्वरित चिकित्सा सुविधा मिल सकेगी, लेकिन आज तक अस्थि रोग विशेषज्ञ की पोस्टिंग नहीं हो सकी है। पीजीएमओ के रूप में डॉ. डीके पटेल की नियुक्ति की गई है। वे भी अभी फेलोशिप के लिए लंबे अवकाश पर हैं।
इस अस्पताल में वर्तमान में प्रभारी डॉ. संजय वालवंद्रे और डॉ. सुरेश अग्रवाल दो ही मेल डॉक्टर हैं। नाइट शिफ्ट ड्यूटी में असमाजिक तत्वों द्वारा मारपीट करने की घटना के बाद एक डॉक्टर ने अपना तबादला जिला अस्पताल करवा लिया है। इनके अलावा महिला चिकित्सकों में डॉ. रचना दवे, डॉ. बबीता सक्सेना, डॉ. बीएन वाहने, डॉ. मंजू राठौर, डॉ. अंकिता कामड़े और डॉ. विलियम (अटैच ) हैं। ये सभी पीजीएमओ या एमओ हैं।
वैसे तो यहां 11 चिकित्सकों की पोस्टिंग है, मगर एक भी स्पेशलिस्ट नहीं है। यहां एमडी मेडिसिन, स्त्री रोग विशेषज्ञ, शिशुुरोग विशेषज्ञ, अस्थिरोग विशेषज्ञ की जरूरत है। लाल बहादुर शास्त्री शासकीय अस्पताल सुपेला के प्रभारी डॉ. संजय वालवंद्रे ने बताया कि विशेषज्ञ चिकित्सक और सुविधाओं की जरूरत तो है, लेकिन फिर भी उपलब्ध संसाधनों से ही लोगों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराने पूरा प्रयास किया जा रहा है। सभी चिकित्सक व स्टाफ की भरसक कोशिश रहती है कि यहां आने वाले मरीज स्वस्थ होकर लौटे।