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Ratan Tata death: अमेरिका में सेटल होना चाहते थे रतन टाटा, इस वजह से लौटे भारत और बदल दी विकास की कहानी

नई दिल्ली: Ratan Tata death दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का बुधवार को देर रात निधन हो गया। 86 साल की उम्र में वे मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि वे पिछले कुछ दिनों से ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती थे। जहां इलाज के दौरान बुधवार को उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा बिजनेस मैन के साथ साथ वह एक नेकदिल के इंसान थे। कारोबार के साथ-साथ उन्होंने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाई। उनके दिल में न सिर्फ इंसान बल्कि जानवरों तक के लिए बेशुमार प्यार था। इस दुखद मौके पर आइए उनके जीवन से जुड़े कुछ पुराने किस्सों को फिर से याद करते हैं।

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Ratan Tata death रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को नवल और सूनु टाटा के घर में हुआ था। उसके बाद से ही दुनिया ने रतन नवल टाटा के नाम से जाना। रतन टाटा की पढ़ाई अमेरिका से हुई है। जहां उन्होंने कॉरनेल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। यहीं पर उन्होंने आर्किटेक्चर और स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। 1955 से 1962 के दौरान वह अमेरिका में ही रहे। उन्होंने अमेरिका में कैलिफोर्निया और वेस्ट कोस्ट के लाइफस्टाइल से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए। उन्होंने लॉस एंजिलिस में रहने की भी तैयारी कर ली थी।

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दादी की वजह से लौटे भारत

रतन टाटा लॉस एंजिलिस में बसने की तैयारी कर ली थी। लेकिन अचानक से उनकी दादी लेडी नवजबाई आर. टाटा की हेल्थ बिगड़ने लगी। वे अपनी दीदी के प्रति बेहद प्यार करते थे। इसलिए वो अमेरिका छोड़कर भारत लौट गए।

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राष्ट्रपति मुर्मू और मोदी-राहुल समेत बिजनेस घरानों ने शोक जताया

राष्ट्रपति मुर्मू: भारत ने एक ऐसे आइकॉन को खो दिया है, जिन्होंने कॉरपोरेट ग्रोथ के साथ राष्ट्र निर्माण और नैतिकता के साथ उत्कृष्टता का मिश्रण किया। पद्म विभूषण और पद्म भूषण से सम्मानित रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की विरासत को आगे बढ़ाया है।

नरेंद्र मोदी: टाटा एक दूरदर्शी बिजनेस लीडर, दयालु आत्मा और एक असाधारण इंसान थे। उन्होंने भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित व्यापारिक घरानों में से एक को स्थिर नेतृत्व प्रदान किया। उनका योगदान बोर्ड रूम से कहीं आगे तक गया।

राहुल गांधी: रतन टाटा दूरदृष्टि वाले व्यक्ति थे। उन्होंने बिजनेस और परोपकार दोनों पर कभी न मिटने वाली छाप छोड़ी है। उनके परिवार और टाटा कम्युनिटी के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं।

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