माँ ने हमें ध्रुव जी का चरित्र सुनाया था-शङ्कराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती
पण्डित देव दत्त दुबे
शङ्कराचार्य जी के परम् कृपापात्र
सहसपुर लोहारा-कवर्धा(छ.ग.) सबका संदेश न्यूज छत्तीसगढ़-माता गिरिजा महामहोत्सव कार्यक्रम के आयोजक ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज श्री के शिष्य प्रितिनिधि दण्डी स्वामी श्री
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अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने बताया कि, माता गिरिजा महामहोत्सव कार्यक्रम के आठवें दिन 09 दिसंबर 2019 सोमवार को आठवें दिन के श्रीमद् भागवत की कथा के क्रम में जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री
स्वरूपानन्द सरस्वती जी ने आगे की कथा क्रम में बताया कि माँ के अनेक संस्मरण हो सकते हैं ,पर हम अधिक उनमें न जाना चाहेंगे। हम नहीं चाहते कि भागवत जी की कथा में कोई आत्मकथा आ जाए, पर माताजी के सन्दर्भ में कुछ सुनाने के
आप लोगों के आग्रह को ध्यान में रखकर हम वह प्रसंग सुनाते हैं जो भागवत जी से ही सम्बंधित है। पूज्या माता जी ने हमें ध्रुव जी का चरित्र सुनाया था, हमें याद है कि हम ,वह सुनकर रो पड़े थें ।
पूज्य महाराज श्री ने विस्तार से बताया कि किस तरह विमाताओं ने ध्रुव और राम जी को कष्ट दिये थें।
भारतीय संस्कृति में माता का है सर्वोच्च स्थान!
हम जब किसी का नाम लेते हैं तो माता का स्मरण पहले करते हैं। सीताराम, राधेश्याम और गौरीशंकर आदि नाम इसके उदाहरण हैं। यह इसलिए क्योंकि भारतीय संस्कृति में माता को सर्वोच्च सम्मान प्राप्त है! उन्होंने आगे कहा कि भगवान् आदि शङ्कराचार्य जी जो कि सनातन शास्त्रों के परम आराधक थे , ने भी मातृतत्व को सर्वश्रेष्ठ माना है। उन्होंने तो एक जगह पर श्रीकृष्ण को भी अपनी माँ के रूप में देखा हैं।
माँ ही है जो बेटे में दोष नहीं देखती!
पूज्य शङ्कराचार्य जी ने आगे बताया कि संसार में लोग स्वयं तो अपराध करते हैं ,पर वही दूसरा कर दे तो उसे सहन नहीं करते हैं। केवल माँ ही एक है जो बेटे के दोष को नहीं देखती। गाय को जब बछड़ा होता है, तब उसके शरीर में गन्दगी लगी रहती है। वह यह नहीं कहती कि तुम नहा धोकर आओ तब मैं तुम्हें चाटकर प्यार दिखाऊँगी। इसलिए अनेक भक्त परमात्मा की उपासना देवी माँ के रूप में करते हैं। भगवान् आदि शंकराचार्य कहते हैं कि पुत्र- कुपुत्र हो सकता है ,पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती।
कलयुगी बेटों ने माँ का महत्व किया कम!
शङ्कराचार्य जी ने कलयुगी बेटों को माता का महत्व कम करने वाला बताते हुए कहा कि, कलियुगी बेटे माँ के महत्व को नहीं समझते। तुलसीदास जी ने कहा है कि ,कलियुग में बेटे पत्नी के आने के बाद माता का निरादर करेंगे। पूज्य महाराज श्री ने मार्मिक कथानकों के माध्यम से आज के बेटों की कथा सुनाई और कहा कि ऐसे बेटे कभी सुख-शान्ति से नही रह सकते। पूज्य महाराज श्री ने प्रश्न उठाया कि, क्या कोई बेटा गर्भ में नौ महीने किराया देकर मातृ ऋण से उऋण हो सकता है ?
09 दिसंबर का विशेष आकर्षण, 56 सपत्नीक लोग – 56 भोग
माता गिरिजा महामहोत्सव में 09 दिसंबर का विशेष आकर्षण 56 सपत्नीक लोग 56 भोग रहा ,जो पराम्बा ललिताम्बा के निमितिक् शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी की उपस्थिति ,एवं दण्डी स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के निर्देशन में बनाया गया था, मंत्रोचार के साथ वैदिक ब्राम्हणों की उपस्थिति में माँ ललिताम्बा को भोग अर्पित किया गया ।
शङ्कराचार्य जी हैं सनातन धर्म के सजग प्रहरी!
नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा कि 700 किमी. की यात्रा कर मैं केवल इस कार्यक्रम में भाग लेने आया हूँ। इस तरह के कार्यक्रमों से ही सनातन धर्म सुरक्षित है और उससे सत्प्रेरणायें प्राप्त होती हैं। उन्होंने तामसिक भोजन से लोगो को दूर रहने की सलाह दी और कहा कि तामसी भोजन हमारे तमोगुण को बढ़ाता है ,जो हमारे दुःख का कारण बनता है। उन्होंने कार्यक्रम में सम्मिलित होने को अपना सौभाग्य बताया और पूज्य महाराज श्री के चरणों मे अपनी श्रद्धा अभिव्यक्त की और कहा कि वे स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर आजतक देश, समाज और धर्म की रक्षा के लिए सर्वदा संबद्ध दिखाई देते हैं।
बगासपुर का नाम ‘माता गिरिजा धाम’करने की मांग
बगासपुर गाँव के सरपंच प्रेमशंकर पटेल ‘शंकू’ ने ग्रामवासियों की ओर से सभा मे बगासपुर गाँव का नाम बदलकर ‘माता गिरिजाधाम’ करने, ग्राम के दोनों ओर सड़क पर ‘माता गिरिजा धाम’ द्वार स्थापित करने और जोंक तालाब को ‘माता गिरिजा सरोवर’ नामित कर सुन्दरीकरण करने का प्रस्ताव रखा।
बगासपुर का नाम परिवर्तित होकर गिरिजापुर हो -अपील
शङ्कराचार्य जी के परम् कृपापात्र पण्डित देव दत्त दुबे सहसपुर लोहारा-कवर्धा छत्तीसगढ़ ने भी बगासपुर का नाम परिवर्तन कर “गिरिजापुर” किये जाने का निवेदन ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य जी के शिष्य प्रितिनिधि दण्डी स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज श्री से चल भाष के माध्यम से, कार्यक्रम के बिच में की है । माता जी का नाम “गिरिजा” के साथ “पुर” होने पर और भी अच्छा लगेगा इसलिए बगासपुर गांव का नाम परिवर्तन कर “गिरिजापुर” किये जाने का निवेदन शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द जी से की है ।
माता गिरिजा महामहोत्सव कार्यक्रम के आठवें दिन 09 दिसंबर को माता ललिताम्बा को 56 भोग एव नगर भण्डारे का आयोजन किया गया था कार्यक्रम में मध्यप्रदेश सहित देश देशान्तर से हजारों की संख्या में धार्मिक श्रधालु एवं शङ्कराचार्य जी के शिष्य अनुयायी शामिल रहे ।
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