छत्तीसगढ़

मैं , मेरा और तू , तेरा से होता है दुःखों का आरंभ-शङ्कराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती

मैं , मेरा और तू , तेरा से होता है दुःखों का आरंभ-शङ्कराचार्य स्वरूपानन्द सरस्वती

पण्डित देव दत्त दुबे
शङ्कराचार्य के परम् कृपापात्र
सहसपुर लोहारा-कवर्धा सबका संदेश न्यूज छत्तीसगढ़- ग्राम बगासपुर- मध्यप्रदेश में आयोजित माता गिरिजा मामहोत्सव कार्यक्रम के आयोजक , ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज श्री के , शिष्य प्रतिनिधि दण्डी स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने बताया कि माता गिरिजा

महामहोत्सव कार्यक्रम के सातवें दिन 08 दिसंबर 2019 रविवार को सातवें दिन के श्रीमद् भागवत की कथा के क्रम में जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी से पूर्व दण्डी स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी सहित, अनेकों मूर्धन्य विद्वानों ने भी श्रीमद् भागवत पर प्रवचन किये । मध्यप्रदेश शासन की ओर विधानसभा अध्यक्ष

सहित, अनेकों विधायक और जन प्रतिनिधि भी शामिल रहे । दण्डी स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने आगे बताया कि ,माता गिरिजा महामहोत्सव कार्यक्रम में श्रधालुओं और श्रोताओं की नित्य अपार भीड़ बढ़ती जा रही है। जिसके चलते भव्य विशाल कथा पांडाल भी, छोटा पड़ता जा रहा है । जो आज तक के इतिहास में ऐतिहासिक और अपने आप में भव्य है ।

https://youtu.be/0WQCD5cE-zY

 

धर्म का फल भोग नही अपितु मोक्ष है-स्वामी सदानन्द सरस्वती जी

आनन्द या सुख की इच्छा सब में है। पर उसको प्राप्त करना सबको नही आता । व्यक्ति केवल इच्छाओं की पूर्ति को सुख का साधन मानकर तदनुसार ही प्रयास करता दिखाई

 

देता है पर इच्छाओं का अंत नहीं, इसलिए अन्तिम रूप से सुख कभी मिल नहीं पाता, क्योंकि एक इच्छा की पूर्ति से हुआ सुख अगली इच्छा के उत्पन्न होते ही समाप्त हो जाता है। इसलिए धर्म का फल भोग नहीं अपितु मोक्ष है, क्योंकि मोक्ष वह अवस्था है जहाँ इच्छाओं का उदय ही नहीं होता। श्रीमद्भागवतादि ग्रन्थ इसी प्रक्रिया को बताते हैं, जिसे जानकर लोग असीम आनन्द प्राप्त कर लेते हैं।

बगासपुर बना परमहंसी, मनाया गया पाटोत्सव

 

आज इतिहास ने करवट ली। ईसवी सन् 1982 से लेकर आजतक परमहंसी स्थित राजराजेश्वरी माता का पाटोत्सव ,वहीं मन्दिर में मनाया जाता था । दूसरे दिन रथयात्रा निकलती थी पर आज 27 साल में पहली बार, उसी दिन भगवती का रथ बगासपुर आया और उनका पाटोत्सव धूम धाम से मनाया गया।

बगासपुर में निकली भव्य शोभायात्रा

भगवती राजराजेश्वरी का रथ 08 दिसंबर को दोपहर 2 बजे जैसे ही झोंतेश्वर, श्रीनगर होते हुए परमहंसी से बगासपुर पहुँचा, हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों ने भगवती का बड़े उल्लास से स्वागत किया । जगह-जगह आरती उतारी और उपहार चढ़ाये। शोभायात्रा में हाथी, घोड़े, रथों के अलावा कई बैण्ड बाजे और सामाजिक बाजे शामिल थें। निरंजनी और अग्नि अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर सहित आचार्य रविशंकर द्विवेदी और इंदुभुवानन्द ब्रह्मचारी रथों पर चल रहे थें। बड़ी सुन्दर छटा थी । जिसने लोगों का मन मोह लिया।

मैं-मेरा और तू- तेरा से होता है दुःखों का आरंभ जगद्गुरु शंकराचार्य जी
आत्मा आनन्दस्वरूप है। उसमें दुःख का लेश भी नही है। जब दुःख नही तो सुख भी नही ,क्योंकि दुःख-सुख दोनों परस्पर सापेक्ष है। मनुष्य जब से अपने देह को मैं और देह के सम्बन्धियों को मेरा और इसी तरह दूसरे के देह को तू और उसके सम्बन्धियों को तेरा समझने लगता है, तब से हीं दुःखों का आरम्भ हो जाता है। जिससे वह जीवन भर बच नहीं पाता।
उक्त उद्गार पूज्यपाद ज्योतिष एवं द्वारिकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने नरसिंहपुर मध्यप्रदेश के गाँव बगासपुर मे आयोजित ‘माता गिरिजा महामहोत्सव कार्यक्रम’ के सातवें दिन 08 दिसंबर 2019 का प्रवचन करते हुए व्यक्त किये।

गीता देती है हमें जीवन जीने के सूत्र

पूज्य शंकराचार्य जी ने कहा कि आज 08 दिसंबर रविवार को मार्गशीर्ष महीने की एकादशी तिथि है । जिस दिन को गीता जयन्ती मनाई जाती है। इसी दिन परमहंसी में स्थापित भगवती राजराजेश्वरी देवी का पाटोत्सव भी होता है। राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी के आसन में पाँच देवता है। ब्रह्मा, विष्णु ,रूद्र ,ईश्वर चार पाये हैं और सदाशिव का फलक है । जिनकी नाभि कमल में भगवती विराजती है। इसका तात्पर्य यह है कि उपर्युक्त देवों में पराम्बा की ही शक्ति विराजमान है। इसी तरह समस्त ब्रह्माण्ड में एक ही शक्ति का वास है। उसी का अनुभव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता इन्ही सूत्रों को हमारे समक्ष प्रस्तुत करती है।

हमनें श्रीराम जन्मभूमि में मूर्ति रखी थी मस्जिद में नहीं-पूज्य शङ्कराचार्य जी महाराज

पूज्य शङ्कराचार्य जी ने प्रसंगवश अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि के बारे में बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने यह बात रखी गई थी कि, जन्मभूमि हमारा देवता है और रामलला किसी मस्जिद में नही अपनी जन्मभूमि में विराजित देखा गया था। हिन्दू कभी किसी मस्जिद में मूर्ति नहीं रख सकता अतः यह कहना उचित नहीं होगा कि ,दिसम्बर 1950 में मस्जिद में मूर्ति रख दी गई।

भव्य आरती और जसगान से मनाया राजराजेश्वरी देवी का पाटोत्सव-

झोंतेश्वर की त्रिपुरसुन्दरी का भव्य पाटोत्सव आज ग्राम बगासपुर में मनाया गया। रथपर सवार होकर देवी जी की मूर्ति बगासपुर पहुँची जहाँ भव्य स्वागत और शोभायात्रा निकाले गये। तत्पश्चात् भव्य मंच पर देवी जी विराजित हुईं जहाँ श्री संदीप तिवारी आदि कलाकारों ने दिव्य जस गाये और भव्य आरती सम्पन्न हुई। पूज्य महाराज श्री सहित अनेक विद्वानों ने माता के दिव्य चरित्र का बखान किया।

माता गिरिजा महामहोत्सव कार्यक्रम का सफल संचालन,जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज श्री के शिष्य प्रतिनिधि दण्डी स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने की , विधानसभा अध्यक्ष सहित अनेक नेताओं ने लिया आशीर्वाद-
माता गिरिजा महामहोत्सव के सातवें दिन क्षेत्रीय विधायक और म. प्र. विधानसभा अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद प्रजापति सहित ,अनेक नेताओं ने भी महोत्सव में सम्मिलित होकर ,पूज्य महाराज श्री का आशीर्वाद लिया। उनमें विधानसभा उपाध्यक्ष सुश्री हिना कांवरे, पाडुर्णा विधायक नीलेश उइके, छिन्दवाड़ा से गंगा तिवारी लखनादौन विधायक सहित अनेक लोग रहें।

कुछ लोगों के कारण हिन्दू आज बदनाम हो रहा है-
जगद्गुरु शङ्कराचार्य जी महाराज श्री ने कहा कि कुछ लोगों ने धावा बोलकर, अयोध्या में भगवान् श्रीराम का मन्दिर तोड़ दिया। उसी के साथ शिव पंचायतन, सीता रसोई, बराह भगवान् की मूर्ति और रामचबूतरा तोड़ दिया। हिन्दुओं की क्षति हुई ,पर पूरे विश्व मे माना यह गया कि वह ढाँचा मस्जिद था ,अन्यथा हिन्दू गुस्से में उसे कैसे तोड़ देता। कुछ लोग आज गोडसे का महिमामंडन कर रहे हैं। जिसके कारण हिन्दुओं को खतरनाक माना जा रहा है। यह प्रवृत्ति किसी भी रुप में ठीक नहीं कही जा सकती। आज इन्ही लोगों से हिन्दुओं की पहचान बताई जा रही, जबकि हिन्दुओं की पहचान आदि शंकराचार्य से थी ,जो समाज के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित किये थे। पूज्य शंकराचार्य जी ने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री जी जब विदेश जाते हैं ,तो कहते हैं मैं बुद्ध के देश से आया हूँ। श्रीराम और श्रीकृष्ण न होते तो आज न्याय दुर्लभ होता और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का तो कोई प्रश्न ही न होता। लोग अहिंसा परमो धर्म: कहकर बैठे रहते और देश मे विदेशियों का राज हो जाता।

 

 

 

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